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कोविड-19: योरोप में मामलों में बेतहाशा वृद्धि, वैक्सीन समता की भी पुकार

सोमालिया की राजधानी मोगादीशू स्थित एक अस्पताल में, एक स्वास्थ्यकर्मी कोविड-19 वैक्सीन का टीका तैयार करते हुए.
© UNICEF/Ismail Taxta
सोमालिया की राजधानी मोगादीशू स्थित एक अस्पताल में, एक स्वास्थ्यकर्मी कोविड-19 वैक्सीन का टीका तैयार करते हुए.

कोविड-19: योरोप में मामलों में बेतहाशा वृद्धि, वैक्सीन समता की भी पुकार

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि योरोप में गत सप्ताह, कोविड-19 के लगभग 20 लाख मामलों की ख़बर मिली और ये संख्या, महामारी शुरू होने के बाद से किसी एक सप्ताह में सबसे ज़्यादा थी.

पिछले सप्ताह योरोपीय क्षेत्र में, कोविड-19 के कारण, लगभग 27 हज़ार लोगों की मौत हुई. ये संख्या पूरी दुनिया में कोविड-19 के कारण हुई मौतों की आधी से भी कुछ ज़्यादा है.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम ने शुक्रवार को जिनीवा में पत्रकारों से बातचीत में बताया कि कोरोनावायरस, ना केवल ऐसे पूर्वी योरोपीय देशों में अपना सिर फिर उठा रहा है जहाँ वैक्सीन टीकाकरण की दर कम रही है, बल्कि पश्चिमी योरोप के कुछ ऐसे देशों में भी बढ़ रहा है जहाँ वैक्सीन टीकाकरण की दर, विश्व में सबसे ज़्यादा रही है.

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उन्होंने कहा, “ये एक और अनुस्मरण है, जैसाकि हम बार-बार कहते रहे हैं कि केवल वैक्सीन का टीका लगवाना ही, अन्य ऐहतियाती उपायों की जगह नहीं ले सकता. वैक्सीन का टीका लगवाने से, अस्पताल में जाने, इस बीमारी के गम्भीर होने और इससे मृत्यु होने का जोखिम कम होता है, मगर उनसे संक्रमण फैलाव पूरी तरह रुकता नहीं है.”

पहली ख़ुराक बनाम बूस्टर

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कोविड-19 से बचने के उपायों में टेस्ट, मुँह पर मास्क लगाना, सामाजिक दूरी बनाए रखना, हवा का मुक्त प्रवाह और अन्य उपाय शामिल हैं.

डॉक्टर टैड्रॉस ने कहा कि देशों को अपने यहाँ मिश्रित व सन्तुलित उपाय करके, संक्रमण को कम रखने और समाज व अर्थव्यवस्थाएँ खुले रखने के बीच सन्तुलन बनाना आसान होगा.

“कोई भी देश, केवल वैक्सीन टीकाकरण से ही, इस महामारी से बचने का रास्ता नहीं बना सकता.”

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के मुखिया ने कहा कि स्वस्थ लोगों को कोविड-19 की वैक्सीन का बूस्टर (तीसरी ख़ुराक) देने या फिर बच्चों का टीकाकरण करने का कोई औचित्य नहीं है, जबकि दुनिया भर में, स्वास्थ्यकर्मी, बुज़ुर्ग जन और उच्च जोखिम वाले समूह में शामिल लोग, अभी पहला टीका लगने का भी इन्तज़ार कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि हर दिन, निम्न आय वाले देशों में जितनी संख्या में पहले टीके लगते हैं, कुछ देशों में, उससे छह गुना ज़्यादा बूस्टर लगाए जा रहे हैं.

डॉक्टर टैड्रॉस ने इसे एक घोटाला बताया और कहा कि इसे तत्काल रोका जाना होगा.

कोवैक्स - वैक्सीन समता कार्यक्रम

स्वास्थ्य एजेंसी के मुखिया ने दुनिया भर में सभी को समानता के साथ वैक्सीन मुहैया कराने के लिये संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में चलाई जा रही वैश्विक पहल - कोवैक्स के बारे में भी ताज़ा जानकारी दी.

कोवैक्स के तहत, 144 देशों और क्षेत्रों में, कोविड-19 वैक्सीन की 50 करोड़ ख़ुराकें पहुँचाई जा चुकी हैं. केवल इरिट्रिया और उत्तर कोरिया के अलावा, बाक़ी सभी देशों ने अपने यहाँ टीकाकरण शुरू भी कर दिया है.  

ज़्यादातर देशों में लोग, अपनी बाँहों में टीका लगवाने के लिये तत्पर हैं, मगर उन्हें इसके लिये वैक्सीन की ख़ुराकों की ज़रूरत है.

इस वर्ष के अन्त तक दुनिया की कम से कम 40 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण करने के लिये, अभी क़रीब 55 करोड़ ख़ुराकों की दरकार है, जोकि केवल 10 दिन की उत्पादन क्षमता है.

खसरा टीकाकरण अभियान

डॉक्टर टैड्रॉस ने बताया कि कोरानावायरस महामारी के फैलाव और प्रभावों के कारण, अन्य टीकाकरण अभियानों पर भी असर पड़ा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिका के रोग नियंत्रण व रोकथाम केन्द्र (CDC) की इस सप्ताह जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था दुनिया भर में वर्ष 2020 के दौरान, लगभग दो करोड़ 20 लाख शिशुओं को, खसरा से बचाने वाला पहला टीका नहीं लग सका था. वर्ष 2019 की तुलना में ये संख्या 30 लाख ज़्यादा थी, निष्कर्षतः पिछले दो दशकों में ये सबसे ज़्यादा संख्या रही.

महामारी के कारण, 23 देशों में, कुल मिलाकर 24 खसरा टीकाकरण अभियान स्थगित करने पड़े, जिसके कारण, नौ करोड़ 30 लाख लोग, जोखिम के दायरे में रह गए हैं.

हालाँकि, वर्ष 2019 की तुलना में, मामलों में 80 प्रतिशत की कमी भी दर्ज की गई.

डॉक्टर टैड्रॉस ने कहा कि मगर मामले दर्ज किये जाने में ये कमी, एक चिन्ता की बात है, नाकि जश्न मनाने की. इस कमी में, कोविड-19 की रोकथाम के लिये अपनाए गए उपायों का योगदान हो सकता है और प्रयोगशालाओं में जाँच के लिये भेजे गए नमूनों की संख्या, एक दशक में सबसे कम रही.  

डायबटीज़ - इंसुलिन के 100 साल

रविवार, 14 नवम्बर को, इंसुलिन के आविष्कार के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं. ध्यान रहे कि इंसुलिन ने डायबटीज़ जैसी जानलेवा बीमारी के बावजूद, ज़िन्दगी जीते रहने लायक़ बनाया है. लगभग 90 लाख लोग टाइप 1 डायबटीज़ के साथ जीवन जी रहे हैं.

दुनिया भर में छह करोड़ से भी ज़्यादा लोगों को, टाइप 2 डायबटीज़ के साथ ज़िन्दगी जीनी पड़ रही है और उनमें गुर्दों के नाकाम होने, अन्धेपन और अंग-भंग का जोखिम कम करने के लिये, इंसुलिन का सेवन बहुत ज़रूरी है.

डॉक्टर टैड्रॉस ने कहा कि जिन वैज्ञानिकों ने एक सदी पहले इंसुलिन की खोज की थी, उन्होंने अपने इस आविष्कार से मुनाफ़ा कमाने से इनकार कर दिया था और इसका पैटेण्ट केवल एक डॉलर में बेच दिया था.

“दुर्भाग्य से, एकजुटता की वो भावना, अब अरबों-खरबों डॉलर वाले कारोबार के तले दबकर रह गई है जिसके कारण ज़रूरत व उपलब्धता के बीच गहरी खाई बन गई है.”

टाइप 2 के मरीज़ - दो लोगों में से केवल एक को ही इंसुलिन मिल पाती है, यानि लगभग 50 प्रतिशत मरीज़ों को इंसुलिन उपलब्ध नहीं है.