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यमन: युद्ध तुरन्त रोके जाने की पुकार, मानवीय सहायता ज़रूरतों में भारी बढ़ोत्तरी

यमन में हिंसा के कारण भारी संख्या में लोग विस्थापन का शिकार हुए हैं.
UNOCHA/Giles Clarke
यमन में हिंसा के कारण भारी संख्या में लोग विस्थापन का शिकार हुए हैं.

यमन: युद्ध तुरन्त रोके जाने की पुकार, मानवीय सहायता ज़रूरतों में भारी बढ़ोत्तरी

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत हैन्स ग्रण्डबर्ग ने, यमन के हालात के बारे में, गुरूवार को सुरक्षा परिषद के सदस्यों को ताज़ा जानकारी से अवगत कराते हुए कहा है कि यूएन समर्थित राजनैतिक प्रक्रिया भी  देश में जारी युद्ध के एक टिकाऊ समाधान का हिस्से हो सकती है.

विशेष दूत हैन्स ग्रण्डबर्ग ने वर्चुअल माध्यम से एक बैठक में शिरकत करते हुए, अपनी तीन दिन की यमन यात्रा के बारे में बताया जिस दौरान उन्होंने तायज़ गवर्नरेट का दौरा किया और स्थानीय पदाधिकारियों के साथ मुलाक़ातें कीं. साथ ही, हिंसा का तुरन्त ख़ात्मा करने की तात्कालिक ज़रूरत के बारे में भी बातचीत हुई. 

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हैन्स ग्रण्डबर्ग ने एक वक्तव्य में कहा है, “इन यात्राओं से, तायज़ में आम लोगों पर, युद्ध का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप में देखने को मिला है, जिनमें आम लोगों को दैनिक जीवन में हो रही मुश्किलों का भी अहसास होता है.”

इन यात्राओं के दौरान, विशेष दूत को, यमन के पुरुषों, महिलाओं और युवाओं के साथ सीधी बातचीत करने का मौक़ा मिला है कि संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाली राजनैतिक प्रक्रिया, किस तरह, तायज़ की परिस्थितियों का हल निकालने में, युद्ध के एक टिकाऊ समाधान का हिस्सा हो सकती है. 

सम्वाद

विशेष दूत हैन्स ग्रण्डबर्ग ने तायज़ शहर और तुरबाह में स्थानीय गवर्नर नबील शमशाँ, राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों, सिविल सोसायटी, संसद के सदस्यों, कारोबारी हस्तियों और पत्रकारों से भी मुलाक़ातें कीं.

प्रतिनिधियों ने रिहायशी इलाक़ों में, आम आबादी को निशाना बनाए जाने और सड़कें व रास्ते लगातार बन्द रहने के कारण, लोगों और सामान की सुरक्षित व मुक्त आवाजाही पर लगी पाबन्दियों के बारे में चिन्ताएँ व्यक्त कीं. 

विशेष दूत हैन्स ग्रण्डबर्ग ने व्यापक समाधान और समावेशी राजनैतिक सम्वाद की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है. उन्होंने तमाम पक्षों से, राजनैतिक, सैन्य और आर्थिक मुद्दों पर, बातचीत में शिरकत करने का आहवान किया है क्योंकि ये मुद्दे सभी यमनी लोगों से सम्बन्धित हैं. 

विशेष दूत हैन्स ग्रण्डबर्ग ने मोखा में भी, स्थानीय प्रशासन व राजनैतिक प्रतिनिधियों के साथ मुलाक़ातें कीं.

मानवीय स्थिति

मानवीय सहायता मामलों के कार्यवाहक सहायक महासचिव और आपदा राहत मामलों के उप संयोजक रमेश राजसिंघम ने भी सुरक्षा परिषद को जानकारी मुहैया कराई.

रमेश राजसिंघम के अनुसार, लगभग 50 मोर्चों पर लड़ाई जारी है जिनमें माआरिब भी शामिल है जहाँ, सितम्बर से, कम से कम 35 हज़ार लोगों को विस्थापित होना पड़ा है.

मानवीय सहयाता समुदाय ने मदद पहुँचाने का काम तेज़ किया है, मगर ये गति, मानवीय ज़रूरतों की बढ़ती रफ़्तार से पीछे छूट रही है.

संयुक्त राष्ट्र इस बात को लेकर बहुत चिन्तित है कि स्थिति बहुत तेज़ी से और ज़्यादा बिगड़ सकती है. अगर लड़ाई, माआरिब शहर तक पहुँच सकती है तो एजेंसियों का अनुमान है कि अतिरिक्त, साढ़े चार लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ सकता है. 

संयुक्त राष्ट्र ने माआरिब आक्रमण को तत्काल रोकने जाने और एक राष्ट्रीय युद्धविराम की पुकार लगाई है.

सहायता एजेंसियों को, इस वर्ष ज़रूरतमन्द लोगों तक मदद पहुँचाने के लिये जितनी धनराशि की ज़रूरत है, उसका केवल 55 प्रतिशत हिस्सा ही, अभी तक प्राप्त हुआ है. इससे अकाल को टालने और अन्य महत्वपूर्ण नतीजे हासिल करने में मदद मिली है, मगर धन बहुत तेज़ी से ख़त्म हो रहा है.

पत्रकार की हत्या

विशेष दूत ने एक अलग वक्तव्य जारी करके, अदन में, एक यमनी पत्रकार राशा अब्दुल्लाह अल हराज़ी की हत्या की निन्दा की है. वो गर्भवती थीं और उनके पति भी गम्भीर रूप से घायल हैं.

विशेष दूत हैन्स ग्रण्डबर्ग ने कहा, “मैं पीड़ित परिवार के साथ गहन शोक और सम्वेदना व्यक्त करता हूँ और न्याय व जवाबदेही निर्धारित किये जाने की अपनी पुकार दोहराता हूँ. पत्रकारों के लिये, हर जगह अपना काम, बदले की किसी कार्रवाई के डर के बिना, करने के अनुकूल हालात होना बेहद ज़रूरी है.”

पत्रकार राशा अब्दुल्लाह अल हराज़ी की कार में एक बम विस्फोट होने के कारण उनकी मौत हो गई. उस समय उनके पति भी कार में उनके साथ थे. वो दोनों ही खाड़ी स्थित एक टेलीविज़न चैनल के लिये काम करते थे.

संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने भी इस हमले की कड़ी निन्दा और भर्त्सना की है. उन्होंने ध्यान दिलाया कि राशा, वर्ष 2019 के दौरान, यूनेस्को की एक प्रशिक्षु रही थीं. 

ऑड्री अज़ूले ने कहा कि पत्रकारों पर हमले होने से, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आमजन को सूचित रखने की मीडिया की क्षमता कमज़ोर होती है, जोकि संघर्ष या युद्ध के दौर में बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकती है.”

उन्होंने कहा कि जन सम्वाद को फलने-फूलने, नफ़रत का विरोध करने और संघर्ष समाधान में योगदान करने के लिये भी, सूचना व जानकारी बहुत ज़रूरी होती है.