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खाद्य आयात बिल में उछाल, 2021 में रिकॉर्ड स्तर छूने का अनुमान

इटली की राजधानी रोम की एक दुकान पर खाद्य उत्पाद सजाकर रखे गये हैं. यह फ़ोटो मई 2017 की है.
©FAO/Alessia Pierdomenico
इटली की राजधानी रोम की एक दुकान पर खाद्य उत्पाद सजाकर रखे गये हैं. यह फ़ोटो मई 2017 की है.

खाद्य आयात बिल में उछाल, 2021 में रिकॉर्ड स्तर छूने का अनुमान

एसडीजी

खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने अपनी एक नई रिपोर्ट में, वैश्विक खाद्य व्यापार के, मात्रा और मूल्य, दोनों मामलों में अपने सबसे ऊँचे रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचने की सम्भावना जताई है. 
 

वर्ष 2021 के अन्त तक, वैश्विक खाद्य आयात बिल, एक हज़ार 750 अरब डॉलर का आँकड़ा पार कर जाने का अनुमान है.

यह पिछले वर्ष की तुलना में 14 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्शाता है, और पहले जताए गए अनुमानों से 12 फ़ीसदी अधिक है.

यूएन एजेंसी की नई ‘खाद्य परिदृश्य’ रिपोर्ट बताती है कि खाद्य वस्तुओं में व्यापार ने वैश्विक महामारी से उपजे व्यवधान के प्रति असाधारण सहनक्षमता दिखाई है. 

मगर, क़ीमतों में तेज़ बढ़ोत्तरी के कारण निर्धन देशों व उपभोक्ताओं के लिये चुनौतियाँ भी बढ़ी हैं. 

बताया गया है कि खाद्य व्यापार में वृद्धि की वजह, अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर विक्रय की जाने वाली खाद्य वस्तुओं की क़ीमतों का ऊँचा स्तर और मालढुलाई क़ीमतों में तीन गुना बढ़ोत्तरी है. 

विकासशील क्षेत्रों का कुल आँकड़े में हिस्सा 40 प्रतिशत है, और उनके खाद्य आयात बिल में पिछले वर्ष की तुलना में, 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होने की सम्भावना है.

निम्न आय और भोजन के अभाव से ग्रस्त देशों (Low-Income Food Deficit Countries) के लिये यह लागत और भी अधिक हो सकती है. 

उत्पादों के मामले में, विकासशील क्षेत्रों को, बुनियादी खाद्य वस्तुओं, जैसे कि अनाज, वनस्पति तेल, तिलहन के दामों की ऊँची क़ीमत से जूझना पड़ रहा है.

मुख्य कारक

विकसित क्षेत्रों में, उच्च-मूल्य वाली खाद्य वस्तुओं, जैसे फल, सब्ज़ी, मछली उत्पाद व पेय पदार्थ, मोटे तौर पर वृद्धि की मुख्य वजह हैं. मुख्य अनाजों के सम्बन्ध में पूर्वानुमान आशाजनक हैं, और मक्का व चावल की रिकॉर्ड उपज होने की सम्भावना है.

पेरू के बाज़ार में आलू बेचती एक महिला.
© IFAD/P. Vega
पेरू के बाज़ार में आलू बेचती एक महिला.

रिपोर्ट के अनुसार, तिलहन व उससे बनाए जाने वाले उत्पादों की आपूर्ति में हालात बेहतर होने की सम्भावना व्यक्त की गई है, मगर मौसम के अन्त तक उनका भण्डार, औसत से नीचे रह सकता है.

विश्व में शक्कर उत्पादन में भी फिर से तेज़ी आने की सम्भावना जताई गई है – पिछले तीन वर्षों से इसमें कमी दर्ज की गई थी. इसके बावजूद, यह वैश्विक स्तर पर खपत से कम रहेगी.

माँस उत्पादन में भी वृद्धि होने की सम्भावना है, और इसकी एक वजह, चीन में स्थिति में तेज़ी से आए सुधार को बताया गया है. 

व्यापार वृद्धि में मन्दी की सम्भावना भी व्यक्त की गई है, जिसका कारण अग्रणी आयातक क्षेत्रों में आई गिरावट है. ये मुख्य रूप से एशिया व योरोप हैं. 

दूध उत्पादन भी बढ़ने का अनुमान जताया गया है, और सभी मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में बढ़ोत्तरी की सम्भावना है. एशिया और उत्तर अमेरिका इसकी अगुवाई करेंगे.

मछली पालन में भी उत्पादन में दो फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी होने की सम्भावना है. माल ढुलाई की ऊँची क़ीमतों और लाने–ले जाने में होने वाली देरी के बावजूद, मछली व्यापार फिर से गति पकड़ रहा है.

नया सूचकांक

खाद्य वस्तुओं के दामों पर लागत क़ीमतों के असर की पड़ताल के लिये, यूएन एजेंसी के विशेषज्ञों ने एक नया सूचकांक, Global Input Price Index (GIPI) पेश किया है. 

रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2005 से GIPI सुचकांक और खाद्य मूल्य इण्डेक्स में समान उतार-चढ़ाव देखने को मिला है. यानि ऊँची लागत क़ीमतों से खाद्य वस्तुएँ भी महंगी हो जाती हैं.

इस वर्ष, अगस्त महीने तक, खाद्य मूल्य सूचकांक में 34 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि GIPI में 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.

नए विश्लेषण के अनुसार, ऐसे देशों की संख्या बढ़कर 53 हो गई है, जहाँ घर-परिवार अपनी आय का 60 फ़ीसदी से अधिक हिस्सा, भोजन, ईंधन, जल व आवास जैसी बुनियादी आवश्यकताओं पर ख़र्च करते हैं.