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हिंसा, असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, कर रहे हैं करोड़ों लोगों को बेघर

बुर्कीना फ़ासो में, विस्थापित लोग, देश के पूर्वोत्तर हिस्से में एक क़स्बे में एकत्र.
WFP/Marwa Awad
बुर्कीना फ़ासो में, विस्थापित लोग, देश के पूर्वोत्तर हिस्से में एक क़स्बे में एकत्र.

हिंसा, असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, कर रहे हैं करोड़ों लोगों को बेघर

प्रवासी और शरणार्थी

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने कहा है कि ज़्यादा लोगों को हिंसा, असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण होने वाले प्राकृतिक हादसों से बचने के लिये भागना पड़ रहा है, तो दुनिया भर में, जबरन विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या आठ करोड़ 40 लाख से भी ज़्यादा हो गई है.

एंजेंसी ने इस वर्ष के पहले छह महीनों के दौरान विस्थान के रुझानों के बारे में जानकारी मुहैया कराने वाले आँकड़े, गुरूवार को जारी किये हैं. 

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इस छमाही रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसम्बर 2020 में जबरन विस्थापन के शिकार लोगों की संख्या लगभग आठ करोड़ 24 लाख थी. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के अनेक स्थानों पर बहुत सारे संघर्ष व लड़ाइयाँ जारी हैं और लोगों को उनसे बचने के लिये, अक्सर देशों के भीतर ही विस्थापित होना पड़ रहा है, इनमें अफ़्रीका क्षेत्र ख़ासतौर से ज़्यादा प्रभावित है.

रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि कोविड-19 की रोकथाम के उपायों के तहत लगी सीमा पाबन्दियों के कारण भी, बहुत से लोगों को अनेक सुरक्षित स्थानों पर शरण या पनाह लेने में बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

यूएन शरणार्थी एजेंसी – UNHCR के उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैण्डी ने कहा, “अन्तरराष्ट्रीय समुदाय, हिंसा, प्रताड़ना, अत्याचार, और मानवाधिकार हनन को रोकने में नाकाम हो रहा है, जिसके कारण, लोगों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ रहा है.”

आँकड़ों की नज़र से

रिपोर्ट कहती है कि इस वर्ष की पहली छमाही में, दुनिया भर में, लड़ाई झगड़ों, संघर्षों और हिंसा से बचने के लिये, अपने ही देशों के भीतर विस्थापित हुए लोगों की संख्या लगभग पाँच करोड़ 10 लाख थी. इनमें ज़्यादातर विस्थापित लोग अफ़्रीकी देशों में थे.

रिपोर्ट में बताया गया है कि काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य (डीआरसी) में लगभग 13 लाख लोग विस्थापित हुए तो, इथियोपिया में विस्थापितों की संख्या क़रीब 12 लाख थी.

इस बीच, म्याँमार और अफ़ग़ानिस्तान में हिंसा में बढ़ोत्तरी के कारण भी, अपने घर छोड़ने के लिये मजबूर होने वाले लोगों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है.

साथ ही, पहली छमाही में, शरणार्थियों की संख्या में वृद्धि होना जारी रहा, जोकि लगभग दो करोड़ 10 लाख थी.

यूएन शरणार्थी एजेंसी का कहना है कि शरणार्थियों की ज़्यादातर संख्या, मध्य अफ़्रीकी गणराज्य से दर्ज की गई जोकि 71 हज़ार 800 थी. उसके बाद दक्षिण सूडान के शरणार्थियों की संख्या 38 हज़ार 800, अफ़ग़ानिस्तान से 25 हजार 200 और नाइजीरिया के शरणार्थियों की संख्या 20 हज़ार 300 थी.

यूएन शरणार्थी उच्चायुक्त ने आगाह करते हुए कहा, “अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को, शान्ति बहाल करने के लिये अपने प्रयास दोगुना बढ़ाने होंगे, साथ ही, ये भी सुनिश्चित करना होगा कि विस्थापित लोगों व उनकी मदद करने वाले मेज़बान समुदायों के लिये भी पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों.”

विषैला मिश्रण

रिपोर्ट के अनुसार, युद्धक गतिविधियों, कोविड-19 महामारी, निर्धनता, खाद्य असुरक्षा और जलवायु आपदा के घातक मिश्रण ने, विस्थापित लोगों की तकलीफ़ें बहुत बढ़ा दी है. विस्थापितों में ज़्यादातर लोग विकासशील देशों में शरण लिये हुए हैं.

फ़िलिपो ग्रैण्डी ने कहा, “जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, उन इलाक़ों में लोगों की मौजूदा तकलीफ़ों में और ज़्यादा इज़ाफ़ा कर रहे हैं जहाँ जबरन विस्थापित लोग पनाह लिये हुए हैं.”

और जबरन विस्थापित हुई आबादी की मुश्किलों के समाधान नज़र नहीं आ रहे हैं.

इस वर्ष के पहले छह महीनों के दौरान, देशों के भीतर ही विस्थापितों में से दस लाख से भी कम लोग, और लगभग एक लाख 26 हज़ार शरणार्थी, अपने घरों को वापिस लौट सके थे. 

फ़िलिपो ग्रैण्डी ने कहा, “अक्सर, ऐसे समुदाय और देश, जबरन विस्थापित हुए लोगों और शरणार्थियों को अपने यहाँ पनाह देने का बोझ अपने कन्धों पर उठा रहे हैं, जिनके पास पहले ही, बहुत कम संसाधन हैं.”

“ये बहुत ज़रूरी है कि बाक़ी अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की तरफ़ से भी, विस्थापितों व शरणार्थियों की मदद करने वाले मेज़बान समुदायों और देशों को, ज़रूरी सहायता व समर्थन मुहैया कराया जाए.”