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विश्व भर में क़रीब 24 करोड़ बच्चे हैं विकलांग, बुनियादी ज़रूरतें पूरी कर पाना चुनौतीपूर्ण

जॉर्डन के ज़ाआतारी शरणार्थी शिविर में बनाए गए एक समावेशी स्कूल में, एक 9 वर्षीय बच्ची, अपनी सहेलियों के साथ खेलते हुए.
UNICEF/Herwig
जॉर्डन के ज़ाआतारी शरणार्थी शिविर में बनाए गए एक समावेशी स्कूल में, एक 9 वर्षीय बच्ची, अपनी सहेलियों के साथ खेलते हुए.

विश्व भर में क़रीब 24 करोड़ बच्चे हैं विकलांग, बुनियादी ज़रूरतें पूरी कर पाना चुनौतीपूर्ण

एसडीजी

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि विश्व भर में 24 करोड़ बच्चे, यानि हर 10 में से एक बच्चा - विकलांगता की अवस्था में रह रहे हैं और स्वास्थ्य, शिक्षा व संरक्षण समेत बाल कल्याण के अधिकतर पैमानों पर, आम बच्चों की तुलना में बहुत पीछे हैं. 

​बताया गया है कि विकलांग बच्चों की संख्या पहले जताए गए अनुमानों से कहीं अधिक है. नया आकलन विकलांगता की समावेशी व एक ज़्यादा अर्थपूर्ण समझ पर आधारित है.

इसमें कार्य करने में पेश आने वाली मुश्किलों के अलावा, बेचैनी व अवसाद के लक्षणों का भी ध्यान रखा गया है.

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यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरीएटा फ़ोर ने कहा, "शिक्षा की सुलभता से लेकर, घर पर रहकर शिक्षा हासिल करने तक; विकलांग बच्चों को लगभग हर पैमाने में शामिल किये जाने या सुने जाने की सम्भावना कम ही है."

"ऐसा अक्सर हो रहा है कि विकलांग बच्चों को पीछे छूटने दिया जा रहा है."

रिपोर्ट में 42 देशों से तुलनात्मक आँकड़े एकत्र किये गए हैं, जिनके ज़रिये बाल कल्याण के 60 से अधिक संकेतकों की मदद से आकलन किया गया है. इसमें पोषण व स्वास्थ्य, जल सुलभता, साफ़-सफ़ाई, हिंसा व शोषण से रक्षा और शिक्षा हैं.

रिपोर्ट में स्पष्टता से दर्शाया गया है कि विकलांगता के साथ रह रहे बच्चों को समाज में पूर्ण भागीदारी के लिये अनेक अवरोधों का सामना करना पड़ता है.

तुलनात्मक अध्ययन

इसके अक्सर नकारात्मक स्वास्थ्य व सामाजिक नतीजे दिखाई देते हैं. बिना विकलांगता के बच्चों की तुलना में, विकलांगता की अवस्था वाले बच्चों को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है:

- उनमें बुनियादी गणना और शिक्षा हासिल का कौशल होने की सम्भावना 42 फ़ीसदी कम होती है,

- पूर्ण रूप से विकसित ना हो पाने की सम्भावना 25 प्रतिशत अधिक, और नाटेपन का शिकार होने की सम्भावना 34 फ़ीसदी अधिक होती है,

- श्वसन तंत्र के संक्रमण के लक्षण सामने आने की सम्भावना 53 प्रतिशत अधिक होती है,

- कभी स्कूल ना जा पाने की सम्भावना 49 फ़ीसदी ज़्यादा होती है,

- प्राथमिक स्कूल के दायरे से बाहर होने की 47 प्रतिशत ज़्यादा सम्भावना, निम्नतर-माघ्यमिक स्कूल से बाहर रह जाने की सम्भावना 33 फ़ीसदी अधिक होती है, जबकि उच्चतर माध्यमिक स्कूल से बाहर रहने की सम्भावना 27 प्रतिशत अधिक है,

- अपने साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार महसूस करने की सम्भावना 41 प्रतिशत अधिक है,

हालाँकि रिपोर्ट के मुताबिक़ विकलांगता के अनुभव में भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं, और विकलांगता के प्रकार, रहने के स्थान, सेवाओं की सुलभता से भी इस अवस्था के कारण उत्पन्न जोखिमों और नतीजे प्रभावित होते हैं.

इसके मद्देनज़र, विषमताओं पर पार पाने के लिये लक्षित समाधानों की अहमियत पर बल दिया गया है.

बाल अधिकार व बुनियादी सेवाएँ

रिपोर्ट में विकलांग बच्चों के लिये शिक्षा की सुलभता सहित अन्य अनेक विषयों की पड़ताल की गई है. शिक्षा के महत्व पर व्यापक सहमति के बावजूद, विकलांग बच्चे इसमें पीछे छूट रहे हैं.

बातचीत कर पाने या अपना ख़याल रखने में जिन बच्चों को मुश्किलें पेश आती हैं, उनके स्कूल के दायरे से बाहर रह जाने की सम्भावना सबसे अधिक है.

अनेक विकलांगताओं का सामना करने वाले बच्चों के लिये भी स्कूली शिक्षा से वंचित रह जाने की दर अधिक है, और यह विकलांगता की गम्भीरता के आधार पर भी प्रभावित होती है.

यूनीसेफ़ अपने साझीदार संगठनों के साथ मिलकर, वैश्विक व स्थानीय स्तर पर विकलांग बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिये प्रयासरत है.

संगठन का कहना है कि बच्चों के जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर, उनकी आवाज़ भी सुनी जानी चाहिये और उन्हें अपने अधिकारों व सम्भावनाओं को साकार करने के अवसर मिलने चाहियें.

इस क्रम में यूनीसेफ़ ने देशों की सरकारें से विकलांग बच्चों को समान अवसर उपलब्ध कराने, समाज से उन्हें बाहर रखने वाले शारीरिक, संचार समेत अन्य अवरोधों को दूर करने और स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा व जल सहित अन्य सहायक टैक्नॉलॉजी की सुलभता सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.

साथ ही, विकलांग बच्चों व उनके परिवारों की विशिष्ट ज़रूरतों का ख़याल रखने, समावेशी सेवाएँ व गुणवत्तापरक शिक्षा मुहैया कराने पर ज़ोर दिया गया है.