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वैश्विक खाद्य क़ीमतों में भारी उछाल, पिछले एक दशक में उच्चतम स्तर पर

पेरू के बाज़ार में आलू बेचती एक महिला.
© IFAD/P. Vega
पेरू के बाज़ार में आलू बेचती एक महिला.

वैश्विक खाद्य क़ीमतों में भारी उछाल, पिछले एक दशक में उच्चतम स्तर पर

आर्थिक विकास

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ़एओ) ने कहा है कि विश्व खाद्य क़ीमतों में तेज़ बढ़ोत्तरी हुई है और अब ये, जुलाई 2011 के बाद अपने उच्चतम स्तर पर हैं. 

विभिन्न खाद्य वस्तुओं की अन्तरराष्ट्रीय क़ीमतों पर नज़र रखने वाला, FAO फ़ूड प्राइस इण्डैक्स सितम्बर से लगातार तीसरे महीने बढ़कर, 3.9 प्रतिशत पर पहुँच गया है.

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कैनेडा, रूस और अमेरिका सहित प्रमुख निर्यातक देशों में कम फ़सल होने के कारण अनाज की क़ीमतों में कुल मिलाकर 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिनमें गेहूँ में पाँच प्रतिशत की वृद्धि देखी गई.

साथ ही, अन्य प्रमुख अन्न की क़ीमतों में भी बढ़ोत्तरी हुई.

वनस्पति तेल सूचकांक, अब तक के सबसे ऊँचे स्तर पर, 9.6 प्रतिशत ऊपर चला गया है,  और जैसे-जैसे ख़रीदार दोबारा भण्डारण की कोशिश कर रहे हैं, मक्खन, कम वसा वाले दुग्ध पाउडर व वसायुक्त दूध पाउडर की बढ़ती मांग के कारण, दुग्ध उत्पादों में 2.6 अंकों की वृद्धि हुई है.

इसके विपरीत पनीर की क़ीमतें स्थिर रहीं.

चीन से सूअर के माँस के उत्पादों की कम ख़रीद और ब्राज़ील से गोमाँस में तेज़ गिरावट के बीच, लगातार तीसरे महीने माँस सूचकांक में गिरावट आई. वहीं, मुर्ग़ी-पालन और भेड़ों की क़ीमतें बढ़ीं.

छह महीने की लगातार वृद्धि के बाद, सीमित वैश्विक मांग और निर्यात के लिये बड़े अधिशेष के कारण, चीनी की क़ीमतों में भी 1.8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई.

रिकॉर्ड अनाज उत्पादन

पिछले वर्ष की तुलना में, 2021 में वैश्विक अनाज उत्पादन में वृद्धि होने और यह उत्पादन लगभग 279 करोड़ टन के एक नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचने का अनुमान है.

2021/22 के लिये विश्व अनाज की खपत 1.7 प्रतिशत की वृद्धि की ओर बढ़ रही है, जिसका कारण गेहूँ की वैश्विक खाद्य खपत में अनुमानित बढ़ोत्तरी है, जो बढ़ती वैश्विक आबादी के साथ बढ़ रही है.

भोजन और जलवायु

ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) के दौरान गुरूवार को जारी इस नई रिपोर्ट के अनुसार, इस सभी खाद्य पदार्थों के उत्पादन, वितरण और खपत में, दुनिया की कुल ऊर्जा का लगभग एक तिहाई हिस्सा इस्तेमाल होता है.

विश्व आबादी के लिये भोजन की उपलब्धता भी, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग एक तिहाई हिस्से के लिये ज़िम्मेदार है, जिससे यह मुद्दा, जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई में प्राथमिकता बन जाता है.

’कृषि-खाद्य प्रणालियों के लिये अक्षय ऊर्जा - टिकाऊ विकास लक्ष्यों और पेरिस समझौते की ओर’ ( Renewable energy for agri-food systems – Towards the Sustainable Development Goals and the Paris Agreement) नामक यह रिपोर्ट,  इस बात के कई उदाहरण पेश करती है कि ये लक्ष्य किस तरह हासिल किये जा सकते हैं.

उदाहरण के लिये, सौर सिंचाई के ज़रिये, पानी तक उपलब्धता बनाने में सुधार किया जा सकता है, कई फ़सल चक्रों को सक्षम किया जा सकता है, और वर्षा के बदलते रूपों के बावजूद सहनक्षमता बढ़ाई जा सकती है.

भारत में, सौर सिंचाई पम्पों के उपयोग से उन किसानों की आय में कम से कम 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिनके पास बारिश ही एकमात्र विकल्प था. रवाण्डा में, छोटे किसानों की फ़सल उपज लगभग एक तिहाई बढ़ी है.

एफ़एओ के महानिदेशक, क्यु डोंग्यू ने एक वीडियो सन्देश में, बताया कि रिपोर्ट से "स्पष्ट है कि कृषि-खाद्य प्रणालियों में अक्षय ऊर्जा समाधान लागू करने के अनेक अवसर मौजूद हैं."

समन्वय पर बल

इस रिपोर्ट में, नवीकरणीय ऊर्जा निवेशों को निर्देशित करने के लिये बेहतर डेटा संग्रह, वित्त तक बेहतर पहुँच और जागरूकता बढ़ाने व क्षमता निर्माण पर अधिक ध्यान देने जैसी सिफ़ारिशें भी पेश की गई हैं.

ना केवल एक तिहाई कृषि-खाद्य उत्सर्जन, ऊर्जा के उपयोग (उदाहरण के लिये कृषि मशीनरी के लिये ईंधन) की उपज है, बल्कि 2000 और 2018 के बीच, इस संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट के अनुसार, यह बढ़ोत्तरी मुख्य रूप से एशिया में सिंचाई पम्प, कृषि मशीनरी, प्रसंस्करण उपकरण और उर्वरक जैसे मशीनीकरण के कारण हुई है.

वैश्विक आबादी के लगभग 15 प्रतिशत हिस्से - अफ़्रीका के लिये भोजन उत्पादन में ऊर्जा का उपयोग काफ़ी हद तक स्थिर रहा है, और यह वैश्विक खपत का केवल 4 प्रतिशत है.

यह रिपोर्ट एफ़एओ और अन्तरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) ने संयुक्त रूप से तैयार की है.