'2025 तक बाल श्रम उन्मूलन के लिये, अभी ठोस कार्रवाई ज़रूरी'

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन (FAO) के प्रमुख क्यू डोंग्यू ने मंगलवार को कहा है कि अगर बाल मज़दूरी को वर्ष 2025 तक ख़त्म करना है तो कारगर कार्रवाई और मज़बूत नेतृत्व की ज़रूरत है. उन्होंने बाल श्रम पर वैश्विक समाधान फ़ोरम के उदघाटन के दौरान ये बात कही है.
दो दिन की इस वर्चुअल बैठक का उद्देश्य, टिकाऊ विकास लक्ष्यों की तर्ज़ पर, बाल मज़दूरी का ख़ात्मा करने के लिये समाधानों की पहचान और उनका विस्तार करना है. ध्यान रहे कि बाल मज़दूरी एक गम्भीर मानवाधिकार उल्लंघन है.
🔸Poverty 🔸Hunger 🔸Outdated ways of farming ... are the main causes of child labour. Many actors in the agricultural sector can help address these causes & #EndChildLabour.Join @FAO's Global Solutions Forum on 2-3 November to learn more👉https://t.co/yP4LVwDe1U pic.twitter.com/weIO0UOTx3
FAOKnowledge
दुनिया भर में लगभग 16 करोड़ लड़कों और लड़कियों को बाल मज़दूरी करनी पड़ती है और ये संख्या, औसतन हर 10 बच्चों में से एक बच्चे की है.
काम करने के लिये मजबूर कुल बच्चों में से लगभग 11 करोड़ 20 लाख, यानि क़रीब 70 प्रतिशत, फ़सल उत्पादन, मवेशियों की देखभाल, जंगलों से सम्बन्धित कामकाज, मछली पालन व उससे सम्बन्धित क्षेत्रों में काम करते हैं.
क्यू डोंग्यू ने कहा कि बाल मज़दूरी का ख़ात्मा करने के लिये निर्धारित समय सीमा 2025 बहुत नज़दीक है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि दुनिया भर में कृषि क्षेत्र से सम्बन्धित हितधारकों द्वारा, कारगर कार्रवाई और मज़बूत व टिकाऊ नेतृत्व की सख़्त ज़रूरत है.
खाद्य व कृषि संगठन का कहना है कि बाल श्रम एक गम्भीर मानवाधिकार हनन है. ये लड़कों व लड़कियों को उनके बचपन, उनकी सम्भावनाओं व क्षमताओं और गरिमा से वंचित कर देता है. बाल श्रम साथ ही, उनके शारीरिक व मानसिक विकास के लिये भी हानिकारक होता है.
यूएन एजेंसी का कहना है कि वैसे तो बच्चों द्वारा किया जाने वाला हर काम, बाल श्रम की श्रेणी में नहीं आता है, मगर इसमें से अधिकतर काम, आयु की ज़रूरतों के अनुरूप नहीं होता है. और विशेष रूप में, ग्रामीण इलाक़ों में निर्बल हालात वाले बहुत से परिवारों के पास अन्य कोई विकल्प भी नहीं होते हैं.
बच्चों को श्रम करने के लिये मजबूर करने वाले कारकों में परिवारों की कम आमदनी, आजीविका के कम विकल्प, शिक्षा तक सीमित पहुँच, श्रम से बचाने वाली टैक्नॉलॉजी की अपर्याप्त उपलब्धता, और खेतीबाड़ी के काम में बच्चों को लगा देने के बारे में पारम्परिक नज़रिया शामिल हैं.
कोविड-19 ने, इन कारकों और मुद्दों में इज़ाफ़ा कर दिया है.
भारत के एक सामाजिक सुधारक और वर्ष 2014 के नोबेल शान्ति पुरस्कार के सह - विजेता कैलाश सत्यार्थी ने बाल मज़बूरी के विनाशकारी प्रभावों का ख़ाका पेश किया.
कैलाश सत्यार्थी ने भारत में बाल मज़दूरी का ख़ात्मा करने के लिये व्यापक अभियान चलाया है जिसके लिये उन्हें मलाला यूसुफ़ज़ई के साथ नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
उन्होंने कहा, “किसी बच्चे के सपनों की मौत होने जैसा, अन्य कुछ भी घातक नहीं है. हमें ये अपनी ये नैतिक ज़िम्मेदारी समझनी होगी कि हमें इन बच्चों के सपनों को पूरा करना है.”
कैलाश सत्यार्थी के साथ एक इण्टरव्यू यहाँ उपलब्ध है...
ये वैश्विक समाधन फ़ोरम का आयोजन, अन्तरराष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन वर्ष के सन्दर्भ में किया गया है.
इसमें विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों, सरकारी मंत्रियों, किसान संगठनों, श्रमिक समूहों के प्रतिनिधियों, और विकास बैंकों, व्यवसायों, और बच्चों, युवा पैरोकारों, व पूर्व बाल श्रमिकों ने शिरकत की है.
खाद्य व कृषि संगठन ने इस फ़ोरम का आयोजन, अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) व अन्य अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर किया है.
श्रम संगठन के महानिदेशक गाय राइडर ने ज़ोर देकर कहा कि बाल मज़दूरी का अनिश्चितकाल तक जारी रहना क़तई ज़रूरी नहीं है.
उन्होंने कहा, “बाल मज़दूरी, निर्धनता से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है, बल्कि इसके उलट, बाल मज़दूरी के कारण ग़रीबी ज़्यादा लम्बी चलती है, इसके कारण, निर्धनता पीढ़ियों में जारी रहती है. हमें लोगों को, निर्धनता के इस कुचक्र से बाहर निकालना होगा, और ये कोई आसान काम नहीं है.”
यूएन बाल कल्याण एजेंसी – यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरीएटा फ़ोर ने कुछ ऐसे समाधान गिनाए जिनमें, निर्बल हालात वाले परिवारों को उनकी आय में मदद करना, बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं की उपलब्धता, और सामाजिक व बाल संरक्षण का दायरा बढ़ाना शामिल हैं.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “अगर हम बाल श्रम का ख़ात्मा करने में कुछ ठोस नतीजे हासिल करना चाहते हैं तो हमें इन क्षेत्रों व मुद्दों पर ज़्यादा ध्यान केन्द्रित करना होगा – ग्रामीण इलाक़ों में, ऐसे परिवारों की मदद करने के लिये, जहाँ आजीविकाओं का मुख्य स्रोत कृषि व उससे सम्बन्धित गतिविधियाँ हैं.”