2020 में 62 पत्रकारों को, अपने पेशे के कारण खोनी पड़ी अपनी ज़िन्दगी
संयुक्त राष्ट्र के सांस्कृतिक संगठन – UNESCO के अनुसार, केवल वर्ष 2020 के दौरान ही, 62 पत्रकारों की हत्या, उनके कामकाज के कारण कर दी गई थी. ये संगठन मीडियाकर्मियों की सुरक्षा के लिये भी काम करता है. संगठन के अनुसार वर्ष 2006 और 2020 के बीच, 1200 से भी ज़्यादा मीडियाकर्मियों को, अपना कामकाज करने के लिये अपनी जान गँवानी पड़ी.
मीडियाकर्मियों की हत्याओं के 10 में से नौ मामलों में, हत्यारे, किसी क़ानूनी कार्रवाई और दण्ड का सामना नहीं करते हैं.
इस तरह के गम्भीर आँकड़ों को देखते हुए, इस बार 2 नवम्बर को मनाए जाने वाले – पत्रकारों के ख़िलाफ़ अपराधों के लिये दण्डमुक्ति के अन्तरराष्ट्रीय दिवस के मौक़े पर, अभियोजक सेवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को भी रेखांकित किया जा रहा है.
इन प्रयासों के तहत, मीडियाकर्मियों के हत्यारों को ना केवल न्याय के कटघरे तक पहुँचाने में बल्कि हिंसा की धमकियों व ख़तरों के लिये भी क़ानूनी कार्रवाई किये जाने में अभियोजन सेवाओं की महत्ता उजागर की जा रही है.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस दिवस पर अपने सन्देश में ध्यान दिलाया है कि बहुत से पत्रकारों को, संघर्ष वालों और युद्धरत इलाक़ों की कवरेज करते हुए अपनी जान गँवानी पड़ी है. मगर हाल के वर्षों के दौरान, संघर्ष वाले क्षेत्रों से बाहर काम करते हुए, अपनी जान गँवाने वाले पत्रकारों की संख्या बढ़ी है.
यूएन प्रमुख ने कहा, “बहुत से देशों में भ्रष्टाचार, तस्करी, मानवाधिकार हनन या पर्यावरणीय मुद्दों की खोजी पत्रकारिता करने के लिये ही, पत्रकारों की ज़िन्दगियाँ जोखिम में पड़ जाती हैं.”
असीम ख़तरे व जोखिम
पत्रकारों को अन्य अनगिनत जोखिमों व ख़तरों का सामना करना पड़ता है जिनमें अपहरण, उत्पीड़न और मनमाने तरीक़े से बन्दी बनाए जाने से लेकर, उनके बारे में झूठी व अपमानजनक जानकारी फैलाया जाना व ख़ासतौर से, डिजिटल स्थानों पर, उन्हें परेशान किया जाना तक शामिल हैं.
एंतोनियो गुटेरेश की नज़र में, पत्रकारों के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों का समाज पर बहुत व्यापक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि ये अपराध, लोगों को सही जानकारी व सूचना पर आधारित निर्णय लेने से रोकते हैं.
यूएन प्रमुख ने कहा, “कोविड-19 महामारी, और दुष्प्रचार व ग़लत जानकारी के फैलाव की महामारी ने भी दिखा दिया है कि तथ्यों और विज्ञान तक पहुँच नहीं होना, दरअसल जीवन और मृत्यु का मामला है.”

“जब सही सूचना तक पहुँच के लिये ही ख़तरा उत्पन्न होता है तो इससे एक व्यथित करने वाला ऐसा सन्देश फैलता जिससे लोकतंत्र व विधि के शासन की स्थिति व अहमियत कमज़ोर होती है.”
एंतोनियो गुटेरेश ने ये भी कहा कि महिला पत्रकारों को विशेष रूप में ज़्यादा ख़तरों का सामना करना पड़ता है.
महिला पत्रकारों के ख़िलाफ़ ऑनलाइन हिंसा के रुझानों की दिल दहला देने वाली बानगी नामक यूनेस्को की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, जिन महिला पत्रकारों की राय जानने के लिये सर्वे किया गया, उनमें से 73 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें उनके कामकाज के बारे में, धमिकियाँ मिली हैं, डराया-धमकाया गया है, और ऑनलाइन मंचों पर बेइज़्ज़त किया गया है.
यूएन महासचिव ने सदस्य देशों से दुनिया भर में, पत्रकारों के समर्थन में खड़े होने और पत्रकारों के ख़िलाफ़ अपराधों की जाँच कराने व क़ानूनी कार्रवाई के लिये राजनैतिक इच्छाशक्ति दिखाने का आग्रह किया है.
काम अभी बाक़ी है
यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने इस दिवस पर अपने सन्देश में कहा है कि बहुत से पत्रकारों को, सच्चाई के लिये आवाज़ उठाने के लिये, बहुत भारी क़ीमत चुकानी पड़ती है.
उनके अनुसार, जब पत्रकारों के ख़िलाफ़ होने वाले हमलों में क़ानूनी कार्रवाई नहीं होती और दोषियों को कोई दण्ड नहीं मिलता तो, इसका मतलब है कि हर जगह क़ानूनी प्रणाली और सुरक्षा ढाँचे नाकाम हो गए हैं.
“इसलिये, पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और उनके ख़िलाफ़ होने वाले हमलों के लिये दोषियों पर क़ानूनी कार्रवाई करना देशों की ज़िम्मेदारी है. प्रभावशाली व त्वरित आपराधिक व क़ानूनी प्रक्रिया सुनिश्चित करने में, विशेष रूप से, जजों और अभियोजकों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है.”
यूनेस्को ने, हाल के वर्षों में लगभग 23 हज़ार न्यायिक अधिकारों को प्रशिक्षित किया है जिनमें जज, अभियोजक और वकील शामिल हैं. इस प्रशिक्षण में, अभिव्यक्ति की आज़ादी में अन्तरराष्ट्रीय मानक और पत्रकारों की सुरक्षा जैसे विषय शामिल होते हैं.
इस प्रशिक्षण में, पत्रकारों के ख़िलाफ़ हमलों के दोषियों के, क़ानूनी कार्रवाई व दण्ड के दायरे से बाहर रहने के मुद्दे पर भी विशेष ज़ोर रहता है.