वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

कॉप26 – अभी तक हमें क्या मालूम है, और ये क्यों अहम है: आपके लिये यूएन न्यूज़ गाइड

यूएन जलवायु सम्मेलन - कॉप26, ब्रिटेन में स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में आयोजित हो रहा है.
Unsplash/Stephen O'Donnell
यूएन जलवायु सम्मेलन - कॉप26, ब्रिटेन में स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में आयोजित हो रहा है.

कॉप26 – अभी तक हमें क्या मालूम है, और ये क्यों अहम है: आपके लिये यूएन न्यूज़ गाइड

जलवायु और पर्यावरण

महामारी से अस्त-व्यस्त हो चुके विश्व में, और जलवायु त्रासदी टालने के लिये, तेज़ी से हाथ से निकल रहे समय के बीच, अति महत्वपूर्ण यूएन जलवायु सम्मेलन – कॉप26, रविवार को, स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो शहर में शुरू हो रहा है – जिसमें बहुत कुछ दाँव पर लगा हुआ है.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने यह सम्मेलन शुरू होने के मौक़े पर कहा है, “निर्णायक कार्रवाई के बिना, हम दरअसल, हवा का रुख़ पलट देने के लिये मौजूद आख़िरी मौक़ा भी गँवा देने का जुआ खेल रहे हैं.” मगर ये हमारा आख़िरी अवसर क्यों है?

यहाँ पेश हैं, कुछ ऐसे सवालों के जवाब, जो सभी के दिमाग़ों में घूम रहे होंगे.

आइये, शुरुआत, कुछ बुनियादी तथ्यों के साथ करते हैं, कॉप26 क्या है?

आसान शब्दों में कहें तो कॉप26, इस ग्रह पर, जलवायु सम्बन्धी सबसे विशाल और सर्वाधिक महत्वपूर्ण सम्मेलन है.

वर्ष 1992 में, संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रमुख कार्यक्रम आयोजित किया था जिसका नाम था – पृथ्वी सम्मेलन. उस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन पर, संयुक्त राष्ट्र फ़्रेमवर्क कन्वेन्शन (UNFCCC) अपनाया गया था.

इस सन्धि में, जलवायु प्रणाली पर इनसानी गतिविधिधियों के कारण ख़तरनाक हस्तक्षेपों को रोकने के लिये, देशों के बीच, वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की एकाग्रता का स्तर या मात्रा स्थिर किये जाने पर सहमति बनी थी. आज इस सन्धि पर 197 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं.

ये सन्धि 1994 में लागू हुई और उसके बाद से, संयुक्त राष्ट्र, पृथ्वी पर मौजूद लगभग सभी देशों को, वैश्विक जलवायु सम्मेलनों के लिये, एक साथ लाने की कोशिश करता रहा है. इन सम्मेलनों को Conference of the Parties – COP (कॉप) कहा जाता है.

इस वर्ष 27वाँ कॉप होना चाहिये था, मगर कोविड-19 महामारी के कारण, ये सम्मेलन एक साल देरी से हो रहा है क्योंकि मूल रूप से ये सम्मेलन वर्ष 2020 में होना था, इसीलिये ग्लासगो सम्मेलन का नाम कॉप26 है.

अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री जॉन कैरी, वर्ष 2016 में यूएन मुख्यालय में, अपनी पोती के साथ पैरिस समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए.
UN Photo/Amanda Voisard
अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री जॉन कैरी, वर्ष 2016 में यूएन मुख्यालय में, अपनी पोती के साथ पैरिस समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए.

तो, कॉप26 में क्या होगा? क्या जलवायु परिवर्तन मुद्दे पर, पहले ही काफ़ी बैठकें और सम्मेलन नहीं हो रहे हैं?

इन कॉप सम्मेलन के दौरान, यूएनएफ़ सीसीसी (सन्धि) के अनेक विस्तार किये जा चुके हैं. इनमें देशों के लिये ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की क़ानूनी मात्रा निर्धारित किया जाना भी शामिल है, साथ ही, इस क़ानूनी प्रावधान को लागू करने की प्रक्रिया को परिभाषित भी किया जाना है.

इनमें 1997 में हुआ क्योटो प्रोटोकोल भी प्रमुख है जिसमें, विकसित देशों के लिये, उत्सर्जन की एक ख़ास सीमा या मात्रा का लक्ष्य, वर्ष 2012 तक हासिल करना था. इसी के तहत वर्ष 2015 में पारित हुआ था - पैरिस समझौता, जिसमें विश्व के तमाम देश, तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये प्रयास तेज़ करने पर सहमत हुए थे. साथ ही, जलवायु कार्रवाई के लिये, वित्तीय संसाधनों का प्रबन्ध करने पर भी सहमति हुई.

इस तरह, यहाँ आकर कॉप26 और भी ज़्यादा रुचिकर हो जाता है: सम्मेलन के दौरान, प्रतिनिधिगण, अन्य मुद्दों के साथ-साथ, पैरिस नियमावली (Paris Rulebook) को अन्तिम रूप देने की कोशिश करेंगे. ये दरअसल पैरिस समझौते को लागू करने के लिये दरकार, नियमों का पुलिन्दा है.

निष्कर्षतः पैरिस समझौते में मंज़िल या अन्तिम लक्ष्य निर्धारित है – वैश्विक तापमान वृधि को 2 (आदर्श रूप में 1.5) डिग्री सैल्सियस तक सीमित रखना, मगर ग्लासगो में होने वाला कॉप26 सम्मेलन, इस लक्ष्य को वास्तविकता में बदलने के लिये आख़िरी मौक़ा है.

बांग्लादेश में बाढ़ से तटीय इलाक़ों की रक्षा के लिये प्रयास किये जाते हुए.
IMF/K. M. Asad
बांग्लादेश में बाढ़ से तटीय इलाक़ों की रक्षा के लिये प्रयास किये जाते हुए.

तो, इसके साथ ही हम, हमारे शुरुआती सवाल पर पहुँचते हैं: ये आख़िरी मौक़ा क्यों है?

जलवायु परिवर्तन को अगर ऐसा विशाल शरीर वाला साँप कहा जाए जो अपने शिकार को आहिस्ता-आहिस्ता दबोचकर और दम घोंटकर, मौत की तरफ़ धकेलता है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. जलवायु परिवर्तन ने, पिछले तीन दशकों के दौरान, उससे भी आगे का ख़तरनाक रूप धारण कर लिया है, जहाँ अब इसने निचले स्तर के असुविधाजनक मुद्दे से आगे बढ़कर, जीवन के लिये जोखिम पैदा करने वाली एक वैश्विक आपदा का रूप ले लिया है.

देशों ने वैसे तो कॉप26 सम्मेलन के आयोजन से पहले ही नए और संवर्धित संकल्प व्यक्त किये हैं, मगर फिर भी दुनिया, इस सदी के अन्त तक, लगभग 2.7 डिग्री सैल्सियस की एक ख़तरनाक वैश्विक तापमान वृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ रही है, अगर, पैरिस समझौते के लक्ष्य हासिल भी कर लिये जाते हैं तो भी.

विज्ञान स्पष्ट है: इस शताब्दी के अन्त तक इस स्तर की तापमान वृद्धि होने का मतलब है कि अन्य चीज़ों के अलावा, उत्तरी गोलार्द्ध में गर्मियों के मौसम में, जंगली आगों की चपेट में आने वाले क्षेत्र का दायरा 62 प्रतिशत और बढ़ जाएगा, दुनिया भर में स्तनपाई जीवों के रहने के ठिकानों में लगभग एक तिहाई कमी हो जाएगी, और चार से 10 महीने तक चलने वाला सूखा बहुत जल्दी-जल्दी पड़ेगा.

यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने इन हालात को, बेबाक शब्दों में “जलवायु त्रासदी” क़रार दिया है, जोकि दुनिया के कमज़ोर हालात वाले बहुत से क्षेत्रों में पहले ही, घातक स्तर पर देखी जा रही है. इनमें सब-सहारा अफ़्रीका और लघु द्वीपीय देश शामिल हैं जहाँ समुद्रों के बढ़ते जल स्तर से भारी तबाही देखी जा रही है.

जलवायु परिवर्तन के बिगड़ते मिज़ाज से बढ़ रही प्राकृतिक आपदाओं के कारण, पहले से ही करोड़ों लोग विस्थापित हो रहे हैं.

मंगोलिया के उलानबाटर में कोयला-चालित बिजली संयंत्रों में उत्सर्जन से वायु प्रदूषित हो रही है.
ADB/Ariel Javellana
मंगोलिया के उलानबाटर में कोयला-चालित बिजली संयंत्रों में उत्सर्जन से वायु प्रदूषित हो रही है.

एंतोनियो गुटेरेश की नज़र में, और जलवायु परिवर्तन पर अन्तर-सरकारी पैनल (IPCC) से सम्बद्ध सैकड़ों वैज्ञानिकों की नज़र में, वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का परिदृश्य ही, “मानवता के लिये जीवन योग्य भविष्य” हो सकता है.

समय टिक-टिक करके आगे बढ़ रहा है , और तापमान वृद्धि को सीमित करने के इस अवसर का लाभ उठाने के लिये, विश्व को, अगले आठ वर्षों के दौरान, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की मात्रा घटाकर कम से कम आधी करनी होगी.

ये एक बहुत विशालकाय लक्ष्य है और ये तभी प्राप्त किया जा सकता है जब कॉप26 में शिरकत करने वाले नेतागण व प्रतिनिधि, नैट शून्य उत्सर्जन की स्थिति हासिल करने की ख़ातिर, कोयले का प्रयोग चरणबद्ध तरीक़े से बन्द करने के लिये, ज़्यादा साहसिक, समय निर्धारित और तैयार योजनाओं के साथ शिरकत करें.

हम्म, मगर क्या चीन और अमेरिका जैसे देश, नैट शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य के लिये, पहले ही संकल्प व्यक्त नहीं कर चुके हैं?

संयुक्त राष्ट्र की सर्वाधिक ताज़ा – उत्सर्जन अन्तर रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल 49 देशों और योरोपीय संघ ने, नैट शून्य लक्ष्य के लिये प्रतिबद्धता घोषित की है.

इसके दायरे में लगभग आधा वैश्विक घरेलू ग्रीन हाउस उत्सर्जन, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का आधे से ज़्यादा हिस्सा और वैश्विक आबादी का एक तिहाई हिस्सा आता है. 11 लक्ष्यों को क़ानूनों में जगह दी गई है जो वैश्विक उत्सर्जनों के 12 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं.

यह पढ़ने और सुनने में बहुत शानदार नज़र आता है? मगर इसमें कुछ पेंच भी हैं: बहुत से संकल्पों में कार्रवाई को 2030 तक स्थगित करने की बात कही गई है, जिससे ये सन्देह पनपते हैं कि नैट शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य क्या हासिल भी किया जा सकेंगे. साथ ही, इनमें से बहुत से संकल्प “अस्पष्ट” हैं और आधिकारिक रूप में जमा कराए गए राष्ट्रीय निर्धारित संकल्पों (NDCs) से मेल नहीं खाते हैं.

मैड्रिड में हुए कॉप-25 सम्मेलन में शुक्रवार के दिन की एक झलक
UNFCCC
मैड्रिड में हुए कॉप-25 सम्मेलन में शुक्रवार के दिन की एक झलक

इससे एक बार फिर ये मालूम होता है कि कॉप26 सम्मेलन, इतना महत्वपूर्ण क्यों है: जैसाकि एंतोनियो गुटेरेश ने, इसी सप्ताह, यूएन महासभा को सम्बोधित करते हुए चेतावनी दी, “मनभावन कूटनैतिक बर्ताव दिखाने का समय गुज़र चुका है... अगर देशों की सरकारें – विशेष रूप में जी20 देशों की सरकारें, अगर मुस्तैदी के साथ खड़ी नहीं होती हैं और इस प्रयास की अगुवाई नहीं करती हैं तो, हम सभी, एक घातक मानवीय तबाही की तरफ़ बढ़ रहे हैं.”

तो, कॉप26 में दरअसल क्या हासिल होने की उम्मीद की जा रही है?

आधिकारिक वार्ताएँ लगभग एक पखवाड़े (दो सप्ताह) तक चलती हैं. पहले सप्ताह में, देशों के सरकारी अधिकारियों के दरम्यान तकनीकी वार्ताएँ होती हैं, उसके बाद दूसरे सप्ताह में, उच्च स्तरीय दौर चलते हैं जिनमें देशों के मंत्री स्तरीय व सरकारों के मुखिया शिरकत करते हैं, इसी स्तर पर कोई अन्तिम निर्णय लिये या नहीं लिये जाते हैं.

कॉप26 के मेज़बान देश ब्रिटेन के अनुसार, इस जलवायु सम्मेलन के दौरान, चार मुख्य बिन्दुओं पर चर्चा होगी:

  1. इस सदी के मध्य तक वैश्विक स्तर पर नैट शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना और 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य भी पकड़ के भीतर रखा जाना.

ऐसा करने के लिये, देशों को, कोयले का प्रयोग तेज़ी से घटाना होगा, जंगलों और वनों का दायरा बढ़ाना होगा, हरित अर्थव्यवस्थाओं के लिये तेज़ी से बदलाव करने होंगे. कार्बन बाज़ार प्रणालियाँ भी चर्चा का विषय होंगी.

  1. समुदायों और प्राकृतिक पर्यावासों की हिफ़ाजत के लिये और ज़्यादा अनुकूलन

चूँकि जलवायु परिवर्तन से पहले ही प्रभावित देशों में बहुत से बदलाव हो रहे हैं, इसलिये उन देशों को सुरक्षा मुहैया कराना, और पारिस्थितिकी तंत्रों को बहाल करना. साथ ही, रक्षा प्रणालियों और पूर्व चेतावनी देने वाली प्रणालियों के अलावा सहनसक्षम ढाँचा भी विकसित करना.

  1. वित्तीय संसाधन जुटाना

कॉप15 में, धनी देशों ने, कम धनी देशों को, वर्ष 2020 तक, हर वर्ष 100 अरब डॉलर की दर से धन मुहैया कराने का वादा किया था ताकि कमज़ोर देश जलवायु परिवर्तन का सामना करने में अनुकूलन प्रयास कर सकें और तापमान वृद्धि के प्रभावों का सामना करने के लिये भी तैयारियाँ कर सकें.

लेकिन इस वादे पर अमल नहीं किया गया है, और कॉप26, अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की मदद से, ये धन जुटाने के लिये एक महत्वपूर्ण पड़ाव होगा. साथ ही ऐसे नए जलवायु वित्तीय लक्ष्य निर्धारित करने के लिये भी ये एक अच्छा मौक़ा होगा जो 2025 तक हासिल किये जा सकें.

  1. लक्ष्य प्राप्ति के लिये एकजुट होकर काम करना

इसका मतलब होगा कि सरकारों, कारोबारों और सिविल सोसायटी के दरम्यान सहयोग और ज़्यादा बढ़ाना, और स्वभाविक रूप से, पैरिस समझौते को पूरी तरह से लागू किये जाने के लिये, पैरिस नियमावली को अन्तिम रूप दिया जाना.

कॉप-26 शिखर वार्ता ब्रिटेन के ग्लासगो शहर में 2020 में होनी थी जो कोविड-19 के कारण ऐहतियाती उपायों के कारण, नवम्बर 2021 में हो रही है.
Unsplash/Adam Marikar
कॉप-26 शिखर वार्ता ब्रिटेन के ग्लासगो शहर में 2020 में होनी थी जो कोविड-19 के कारण ऐहतियाती उपायों के कारण, नवम्बर 2021 में हो रही है.