अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के एक नए विश्लेषण के अनुसार, कोरोनावायरस संकट की वजह से, वर्ष 2021 के दौरान कामकाजी घण्टों में हुआ नुक़सान, पहले जताए गए अनुमानों से कहीं अधिक है. रिपोर्ट में सचेत किया गया है कि विकसित और विकासशील देशों में पुनर्बहाली, दो अलग-अलग रास्तों व रफ़्तार पर आगे बढ़ रही हैं, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये जोखिम पैदा हो रहा है.
यूएन श्रम एजेंसी का अनुमान है कि वैश्विक महामारी के पूर्व के स्तर की तुलना में, इस वर्ष कामकाजी घण्टों में 4.3 प्रतिशत की गिरावट आएगी. यह 12 करोड़ 50 लाख पूर्णकालिक रोज़गारों के समतुल्य है.
इससे पहले, जून महीने में जारी रिपोर्ट में 3.5 फ़ीसदी की गिरावट आने (10 करोड़ पूर्ण रोज़गार) की सम्भावना जताई गई थी.
‘ILO Monitor: COVID-19 and the world of work’ रिपोर्ट के आठवें संस्करण में चेतावनी जारी की गई है कि विकसित और विकासशील देशों के बीच, कामकाजी दुनिया में एक बड़ी दरार आकार ले रही है.
यूएन एजेंसी के मुताबिक़, ठोस वित्तीय और तकनीकी समर्थन के अभाव में इसके गहराने की आशंका है.
क्षेत्रीय भिन्नताएँ
वर्ष 2021 की तीसरी तिमाही के दौरान उच्च-आय वाले देशों में कुल कामकाजी घण्टों को, वर्ष 2019 की चौथी तिमाही (महामारी से पहले) से 3.6 प्रतिशत कम आंका गया है.
निम्न-आय वाले देशों में यह आँकड़ा 5.7 प्रतिशत और निम्नतर मध्य-आय वाले देशों में 7.3 प्रतिशत है.
क्षेत्रीय नज़रिये से, योरोप और मध्य एशिया में कामकाजी घण्टों में सबसे कम नुक़सान (2.5 प्रतिशत) दर्ज किया गया है.
इसके बाद, एशिया और प्रशान्त क्षेत्र है, जहाँ कामकाजी घण्टों में 4.6 प्रतिशत की कमी आई है.
अफ़्रीका, अमेरिका और अरब क्षेत्र में क्रमश: 5.6, 5.4 और 6.5 प्रतिशत की गिरावट नज़र आई है.
वैक्सीन और वित्तीय पैकेज
बताया गया है कि विकसित और विकासशील देशों में, अलग-अलग हालात की एक प्रमुख वजह, टीकाकरण की रफ़्तार और वित्तीय स्फूर्ति पैकेजों का इस्तेमाल है.
कुछ अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2021 की दूसरी तिमाही में, प्रति 14 व्यक्तियों के पूर्ण टीकाकरण की स्थिति में, वैश्विक श्रम बाज़ार में एक पूर्णकालिक समतुल्य रोज़गार जोड़ा गया है.
इससे आर्थिक पुनर्बहाली में काफ़ी हद तक मदद मिली है.
मगर, वैक्सीन के अभाव की स्थिति में, 2021 की दूसरी तिमाही में कामकाजी घण्टों में नुक़सान लगभग छह फ़ीसदी रहने की आशंका थी, जोकि फ़िलहाल 4.8 प्रतिशत दर्ज किया गया है.
कोविड-19 टीकों का वितरण भी एक बड़ी वजह है, जिसका सबसे सकारात्मक असर उच्च-आय वाले देशों में हुआ है, निम्नतर मध्य-आय वाले देशों में यह बेहद मामूली है, निम्न-आय वाले देशों में यह ना के बराबर है.
न्यायोचित टीकाकरण
यूएन एजेंसी के अनुसार, इन असन्तुलनों को कोरोनावायरस वैक्सीन के वितरण में वैश्विक एकजुटता के ज़रिये तेज़ी से दूर किया जा सकता है.
श्रम संगठन का मानना है कि यदि निम्न-आय वाले देशों के लिये न्यायोचित ढँग से वैक्सीन मुहैया कराई जाती हैं, तो कामकाजी घण्टों में स्थिति बेहतर होगी.
एजेंसी ने अपने अनुमान में, एक तिमाही के दौरान उनके, धनी देशों के स्तर तक पहुँच जाने की उम्मीद जताई है.
आर्थिक स्फूर्ति के लिये पेश किये गए पैकेजों से भी पुनर्बहाली की रफ़्तार पर असर हुआ है, मगर यहाँ भी धनी और निर्धन देशों के बीच की खाई बरक़रार है.
यूएन एजेंसी के महानिदेशक गाय राइडर ने विषमतापूर्ण वैक्सीन वितरण और वित्तीय पैकेज की क्षमताओं की अहमियत का उल्लेख करते हुए ध्यान दिलाया है कि दोनों चुनौतियों से तत्परता से निपटा जाना होगा.
अधिकाँश वित्तीय पैकेजों, लगभग 86 प्रतिशत, को उच्च-आय वाले देशों में पेश किया गया है. इस संकट से उत्पादकता पर भी असर हुआ है, जिससे विषमताएँ और पैनी हुई हैं.
अग्रणी और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच उत्पादकता की खाई, वर्ष 2005 के बाद पहली बार सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच जाने का अनुमान है.