पर्यावरण कार्यकर्ताओं की रक्षा के लिये, नए तंत्र की स्थापना पर 'महत्वपूर्ण' सहमति
वृहद योरोपीय क्षेत्र में स्थित 46 देशों के समूह ने क़ानूनी रूप से बाध्यकारी, एक ऐसी ढाँचागत व्यवस्था स्थापित किये जाने पर सहमति जताई है, जिसके ज़रिये पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ताओं की रक्षा सम्भव हो सकेगी. योरोप के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग (UNECE) ने शुक्रवार को इस आशय की जानकारी दी है.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने त्वरित कार्रवाई व्यवस्था के इस उपाय का स्वागत करते हुए कहा कि यह सहमति, मानवाधिकारों के लिये उनके आहवान को आगे बढ़ाने में एक अहम योगदान है.
सहमति के अनुसार, नए तंत्र की स्थापना का दायित्व, संयुक्त राष्ट्र या फिर किसी अन्य अन्तरराष्ट्रीय संस्था को सौंपा जाएगा.
"20 years ago, the #AarhusConvention entered into force, bridging the gap between human & environmental rights. Today, as the devastating effects of #climatechange continue to ravage the world, the Convention’s core purpose has never been more critical" -🇺🇳@UN SG @antonioguterres pic.twitter.com/Ucw9TzPvvp
UNECE
बताया गया है कि पर्यावरण कार्यकर्ताओं की रक्षा के लिये पहली बार, अन्तरराष्ट्रीय सहमति प्राप्त यह औज़ार एक स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण के सार्वभौमिक अधिकार को मज़बूती प्रदान करेगा.
मानवाधिकार परिषद ने अक्टूबर महीने में स्वच्छ एवं स्वस्थ पर्यावरण की सुलभता को एक सार्वभौमिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है.
यूएन प्रमुख ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव, दुनिया को क्षति पहुँचा रहे हैं.
“20 वर्ष पहले, मानवता और पर्यावरणीय अधिकारों के बीच की खाई को पाटते हुए, आरहूस सन्धि प्रभाव में आई थी.”
इन हालात में, लोगों को अपने और भावी पीढ़ियों के कल्याण की रक्षा के लिये सामर्थ्यवान बनाना अहम है, और यही ‘आरहूस सन्धि’ का मूल उद्देश्य है.
पर्यावरण कार्यकर्ताओं की रक्षा
सूचना की सुलभता, निर्णय-निर्धारण में सार्वजनिक भागीदारी और पर्यावरणीय मामलों में न्याय सुलभता पर सन्धि (आरहूस सन्धि) के सम्बन्ध पक्षों की गुरूवार को बैठक हुई, जिसमें नया तंत्र स्थापित करने पर सहमति जताई गई.
योरोप में यूएन आयोग की प्रमुख ओल्गा ऐल्गायेरोफ़ा ने बताया, “यह ऐतिहासिक निर्णय, पर्यावरण कार्यकर्ताओं के लिये एक स्पष्ट संकेत है कि उन्हें बिना रक्षा के नहीं छोड़ा जाएगा.”
किसी ख़तरनाक बाँध के निर्माण का विरोध कर रहे समूहों से लेकर अपने स्थानीय समुदाय में हानिकारक कृषि के तौर-तरीक़ों के विरुद्ध आवाज़ उठा रहे व्यक्तियों तक, विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण में सभी की अहम भूमिका है.
आरहूस सन्धि में यह सुनिश्चित किया गया है कि सन्धि के प्रावधानों के अनुरूप अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने वाले लोगों को, उनकी गतिविधियों के लिये दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जाएगा.
इस तंत्र के तहत, एक विशेष रैपोर्टेयर (स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ) की व्यवस्था की जाएगी, जिसके ज़रिये कथित हनन के मामलों पर जल्द कार्रवाई और उन लोगों के लिये सुरक्षा उपाय किये जाएंगे, जिन्हें सन्धि के अन्तर्गत अपने अधिकारों के इस्तेमाल की वजह से दण्ड दिये जाने या प्रताड़ित किये जाने का ख़तरा है.
अधिकारों का इस्तेमाल
किसी भी आम नागरिक, आरहूस सन्धि के सम्बद्ध पक्ष या सचिवालय द्वारा, विशेष रैपोर्टेयर के पास एक गोपनीय शिकायत दर्ज कराई जा सकती है और ऐसा अन्य क़ानूनी उपायों को पूरी तरह आज़माए जाने से पहले भी किया जा सकता है.
पर्यावरण कार्यकर्ताओं के लिये अपने अधिकारों का आत्मविश्वासपूर्वक इस्तेमाल करना अहम है, मगर इस वजह से उनके रोज़गार छीने जाने, जुर्माना लगाए जाने, हिरासत में लिये जाने, अपराधी ठहराए जाने और यहाँ तक कि, मौत होने के मामले भी सामने आए हैं.
इसके अलावा, पर्यावरण कार्यकर्ताओं के विरुद्ध उत्पीड़न व हिंसा की घटनाएँ अक्सर होती रही हैं.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की स्थिति पर यूएन की विशेष रैपोर्टेयर मैरी लॉलोर ने मानवाधिकार परिषद में अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए बताया था कि वर्ष 2019 में मारे जाने वाले हर दो में से एक मानवाधिकार कार्यकर्ता, भूमि, पर्यावरण, और आदिवासी समुदाय के अधिकारों पर व्यावसायिक गतिविधियों के प्रभावों पर सक्रिय थे.
जनवरी 2017 से अब तक, आरहूस सन्धि के सम्बद्ध पक्षों में पर्यावरण कार्यकर्ताओं को उत्पीड़ित या दण्डित किये जाने के मामले 16 देशों में दर्ज किये गए हैं.