WHO: कोविड महामारी से पुनर्बहाली के लिये, ठोस जलवायु कार्रवाई है ज़रूरी

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में आयोजित होने वाले जलवायु सम्मेलन (कॉप26) के सम्बन्ध में, सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि तमाम देशों द्वारा, कोविड-19 महामारी से स्वस्थ, हरित और टिकाऊ पुनर्बहाली के लिये, महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताएँ अति महत्वपूर्ण हैं.
‘जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य’ विषय पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन की विशेष कॉप26 रिपोर्ट, ऐसे विभिन्न शोधों पर आधारित है जिनमें जलवायु और स्वास्थ्य के बीच, अविभाज्य सम्बन्ध होने की पुष्टि की गई है.
#ClimateCrisis harms our health!#ClimateCrisis harms our health!#ClimateCrisis harms our health!Limiting global warming to 1.5°C isn't only the right thing to do but also a shared responsibility for health.🆕 WHO #COP26 Special Report explains why 👉https://t.co/WXMdMgPSWv pic.twitter.com/r8NFs1oI37
WHO
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से लोगों की रक्षा करने के लिये, ऊर्जा से लेकर परिवहन, और प्रकृति से लेकर खाद्य प्रणालियों, सभी सैक्टरों में व्यापक बदलाव वाली कार्रवाइयाँ किये जाने की ज़रूरत है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के मुखिया डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा है, “कोविड-19 महामारी ने, इनसानों, जानवरों और हमारे पर्यावरण के बीच बहुत घनिष्ठ व नाज़ुक कड़ी को उजागर कर दिया है. जो ख़राब व नुक़सानदेह विकल्प, हमारे ग्रह को तबाह कर रहे हैं, वही इनसानों के वजूद के लिये भी ख़तरा बन रहे हैं.”
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ये रिपोर्ट प्रकाशित होने के समय ही, वैश्विक स्वास्थ्य कार्यबल के लगभग दो तिहाई हिस्से ने, देशों के नेताओं और कॉप26 सम्मेलन में आने वाले प्रतिनिधियों से, जलवायु कार्रवाई बढ़ाने की पुकार लगाते हुए, एक खुला पत्र लिखा है.
यह पत्र लिखने वालों में 300 संगठन शामिल हैं जो दुनिया भर में, लगभग साढ़े चार करोड़ डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
स्वास्थ्य पेशेवरों के इस खुले पत्र में लिखा गया है, “हम दुनिया भर में, जहाँ कहीं भी, स्वास्थ्य देखभाल और आपात स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया कराते हैं – अस्पताल, क्लीनिक्स, और सामुदायिक चिकित्सा केन्द्र, उन सभी में, हम जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न स्वास्थ्य हानियों की स्थितियों का सामना कर रहे हैं.”
“हम तमाम देशों के नेतृत्व कर्ताओं और कॉप26 सम्मेलन में शिरकत करने वाले उनके प्रतिनिधियों से, वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का असर कम करने सम्बन्धी तमाम कार्रवाइयों के केन्द्र में, मानव स्वास्थ्य व समानता को रखकर, एक स्वास्थ्य त्रासदी को टालने की पुकार लगाते हैं.”
ये रिपोर्ट और खुला पत्र ऐसे समय में सामने आए हैं जब दुनिया के अनेक हिस्सों में, चरम मौसम की अत्यन्त गम्भीर घटनाएँ और अन्य जलवायु घटनाओं के असाधारण प्रभाव जगज़ाहिर हैं और इनसानों पर उनका व्यापक हानिकारक असर हो रहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ग्रीष्म हवा की लहरें यानि लू, तूफ़ान और बाढ़ की अनेक घटनाओं ने हज़ारों लोगों की ज़िन्दगियाँ ख़त्म कर दी हैं, और लाखों-करोड़ों अन्य लोगों के जीवन में अनेक तरह के व्यवधान खड़े किये हैं. साथ ही, स्वास्थ्य प्रणालियों के लिये भी ऐसे समय जोखिम उत्पन्न किया है जब उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत रही है.
मौसम और जलवायु में हो रहे बदलावों के कारण, खाद्य सुरक्षा के लिये जोखिम उत्पन्न हो रहा है और मलेरिया जैसी खाद्य-जल आधारित बीमारियाँ और ज़्यादा फैला रही हैं, जबकि जलवायु प्रभाव, मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर भी डाल रहे हैं.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है, “जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल हम सबको मौत के मुँह में धकेल रहा है. पूरी इनसानियत के सामने सबसे बड़ा स्वास्थ्य जोखिम, जलवायु परिवर्तन है.”
रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य प्रभावों से कोई भी इनसान अछूता नहीं है, मगर “सबसे कमज़ोर और वंचित हालात वाले लोग, सबसे व्यापक और विनाशकारी रूप में प्रभावित होते हैं.”