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रोज़गार वृद्धि व निर्धनता उन्मूलन के लिये कार्रवाई बढ़ाने की पुकार

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, दुनिया भर में, लगभग एक अरब लोगों को पर्पाय्त सामाजिक संरक्षा हासिल नहीं है जिनमें बहुत से दिहाड़ी विक्रेता भी शामिल हैं.
ILO Photo/Marcel Crozet
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, दुनिया भर में, लगभग एक अरब लोगों को पर्पाय्त सामाजिक संरक्षा हासिल नहीं है जिनमें बहुत से दिहाड़ी विक्रेता भी शामिल हैं.

रोज़गार वृद्धि व निर्धनता उन्मूलन के लिये कार्रवाई बढ़ाने की पुकार

आर्थिक विकास

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने मंगलवार को कहा है कि कोविड-19 महामारी शुरू हुए, लगभग दो वर्ष पूरे होने वाले हैं, और इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट से उबरने के प्रयासों में भटकाव, वैश्विक विश्वास व एकजुटता पर नकारात्मक असर डाल रहा है. यूएन प्रमुख ने रोज़गार व आमदनी वाले कामकाज की स्थिति और निर्धनता उन्मूलन पर अपने नीति-पत्र में ये बात कही है.

यूएन प्रमुख द्वारा मंगलवार को जारी – Policy brief on jobs and poverty eradication में आगाह करते हुए ये भी कहा गया है कि महामारी ने पहले से मौजूद विषमताओं को ना केवल उजाकर किया है बल्कि उन्हें और बढ़ा भी दिया है.

नीति-पत्र के अनुसार रोज़गारों और आय वाले कामकाजों, सामाजिक संरक्षा के कार्यक्रमों और एक नैट शून्य कार्बन वाले भविष्य की ओर न्यायसंगत बदलाव में संसाधन निवेश करने से, इन विषमताओं को और ज़्यादा गहरा होने से रोकने में मदद मिल सकती है, विशेष रूप में निम्न व मध्यम आय वाले देशों में.

एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “वैश्विक एकजुटता, अभी तक तो पूरी तरह से अपर्याप्त रही है. एक नए सिरे से की गई सामाजिक सम्विदा...पुनर्बहाली के लिये केन्द्रीय महत्व की होनी चाहिये.”

गहरे भटकाव वाली पुनर्बहाली

नीति-पत्र के अनुसार, वर्ष 2020 के दौरान, मार्च से लेकर दिसम्बर तक, अत्यन्त निर्धनता की स्थिति में, लगभग 11 करोड़ 90 लाख से लेकर 22 करोड़ 40 लाख लोगों की वृद्धि हुई है, जोकि पिछले 21 वर्षों के दौरान इस तरह की पहली वृद्धि है.

इन नव निर्धन लोगों की तीन चौथाई से ज़्यादा संख्या, मध्यम आय वाले देशों में है.

दूसरी तरफ़, अरबपतियों की सम्पत्ति में 3.9 ट्रिलियन डॉलर से भी ज़्यादा का इज़ाफ़ा हुआ है.

रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि महामारी के कारण, वर्ष 2021 के दौरान, अनुमानतः साढ़े सात करोड़ रोज़गार व आमदनी वाले कामकाज कम रहे.

म्याँमार के यंगून शहर में, एक बेघर परिवार, जिसे ऐसी कोई भरोसेमन्द व्यवस्था शायद ही उपलब्ध है, जो उसकी मदद कर सके.
ILO Photo/Marcel Crozet
म्याँमार के यंगून शहर में, एक बेघर परिवार, जिसे ऐसी कोई भरोसेमन्द व्यवस्था शायद ही उपलब्ध है, जो उसकी मदद कर सके.

यह कमी, स्वास्थ्य संकट शुरू होने से पहले के हालात की तुलना में दर्ज की गई है. वर्ष 2022 के दौरान भी लगभग दो करोड़ 30 लाख रोज़गार कम होने की सम्भावना व्यक्त की गई है.

रिपोर्ट में ये अनुमान भी व्यक्त किया गया है कि वर्ष 2020 के दौरान कुल कामकाजी घण्टों में 8.8 प्रतिशत का नुक़सान हुआ.

वास्तविकता में ये आँकड़ा – साढ़े 25 करोड़ पूर्णकालिक कामकाजियों द्वारा, एक वर्ष तक काम करने के बराबर था. ये आँकड़ा, कामकाजी आमदनी में लगभग 3.3 ट्रिलियन डॉलर की रक़म के बराबर नुक़सान था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर आमदनी वाले कामकाज व रोज़गार उन्मुख पुनर्बहाली हासिल करनी है और एक न्यायसंगत बदलाव लाना है तो, श्रम बाज़ार को, इस स्वास्थ्य संकट के झटकों से उबारने के लिये, कम से कम 982 अरब डॉलर की रक़म की तत्काल आवश्यकता है.

सार्वभौमिक सामाजिक संरक्षण का लक्ष्य

यूएन महासचिव ने सार्वभौमिक सामाजिक संरक्षण, वर्ष 2030 तक हासिल करने का आहवान किया है जिसमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, आय संरक्षण, शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण भी शामिल हों, विशेष रूप में, महिलाओं और लड़कियों के लिये.

उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि पिछले लगभग एक वर्ष के दौरान जो अनेक अस्थाई उपाय लागू किये गए हैं, उन्हें बुनियाद बनाकर आगे बढ़ा जा सकता है.

यूएन प्रमुख ने कहा कि निम्न व मध्य आय वाल देशों क लिये सार्वभौमिक सामाजिक संरक्षण का ये लक्ष्य हासिल करने के लिये, हमें काफ़ी बड़ी मात्रा में सार्वजनिक और निजी संसाधन निवेश बढ़ाना होगा – लगभग 1.2 ट्रिलियन डॉलर के बराबर.

रोज़गार सृजन में वृद्धि

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए, अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के सहयोग से, एक न्यायसंगत बदलाव की ख़ातिर, रोज़गार सृजन और सामजिक संरक्षण पर एक नया वैश्विक तेज़ी कार्यक्रम भी शुरू किया है.

इस वृद्धि कार्यक्रम का उद्देश्य, वर्ष 2030 तक लगभग 40 करोड़ रोज़गार उत्पन्न करना है जोकि मुख्य रूप से हरित व देखभाल अर्थव्यवस्थाओं में होंगे. 

साथ ही, वर्ष 2025 तक सामाजिक संरक्षण का दायरा बढ़ाकर, लगभग 50 प्रतिशत ऐसे लोगों को इस दायरे में शामिल किया जाएगा जो अभी इससे बाहर हैं.