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मानवीय आपात स्थितियों में लिंग आधारित हिंसा रोकने के लिये कार्रवाई की पुकार

यूएन अधिकारियों का मानना है कि लिंग आधारित हिंसा की छाया कोविड-19 महामारी के पीछे छिपी है.
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यूएन अधिकारियों का मानना है कि लिंग आधारित हिंसा की छाया कोविड-19 महामारी के पीछे छिपी है.

मानवीय आपात स्थितियों में लिंग आधारित हिंसा रोकने के लिये कार्रवाई की पुकार

महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारियों ने यूएन महासभा के 76वें सत्र के दौरान, हाशिये पर मुलाक़ात की और दुनिया भर में जबरन विस्थापन जैसी मानवीय आपात स्थितियों में वृद्धि के दौरान होने वाली लिंग आधारित हिंसा (GBV) के ख़िलाफ़ मज़बूत कार्रवाई का आहवान किया. 

संयुक्त राष्ट्र की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी (यूएनएफ़पीए) के मुताबिक़, लिंग आधारित हिंसा (GBV) के अन्तर्गत वो कार्य आते हैं, जिनसे शारीरिक, यौन या मानसिक हानि पहुँचती हो - या अन्य तरह की पीड़ा पहुँचाना, ज़बरदस्ती करना व व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बन्दिशें लगाना शामिल हों – एवं उसके पीड़ितों के “यौन, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर लम्बे समय तक प्रभाव रहता हो.” 

संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, अकाल और असुरक्षा जैसी वजहों से, लड़कियाँ और महिलाएँ तेज़ी से इसका शिकार हो रही हैं. 

कार्रवाई की इच्छा

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यू एन एफ़ पी ए की कार्यकारी निदेशक, नतालिया कनेम ने ‘मानवीय संकटों के दौरान लिंग आधारित हिंसा के स्थानीयकरण’ पर, गुरूार को हुई बैठक में कहा कि शान्ति, न्याय और गरिमा "हर महिला व लड़की का जन्मसिद्ध अधिकार" है.

उन्होंने, 2021-2025 के लिये एजेंसी के "स्पष्ट और महत्वाकांक्षी" रोडमैप की बात की, जो एक साझा दृष्टिकोण दर्शाता है, और इन अधिकारों की सुनिश्चिता के लिये नए मार्ग प्रशस्त करने की आवश्यकता पर बल देता है.

नतालिया कनेम ने "स्वयं और एक-दूसरे के प्रति जवाबदेही” की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख एजेंसी के रूप में, "यू एन एफ़ पी ए, मज़बूती से खड़े रहने के लिये प्रतिबद्ध है."

उन्होंने कहा कि "लिंग आधारित हिंसा के बारे में कुछ करने के लिये." कार्रवाई की दृढ़ इच्छा दिखाई दी. उन्होंने महिलाओं की आवाज़ को "अपनी कार्रवाई के केन्द्र में" रखने के महत्व पर बल दिया.

नतालिया कनेम ने, यू एन एफ़ पी ए की मानवीय सहायता राशि का 43 प्रतिशत हिस्सा, राष्ट्रीय और स्थानीय महिला संगठनों को देने का संकल्प व्यक्त करते हुए कहा कि "अब उन्हें पहले से कहीं अधिक, हमारी आवश्यकता है."

अफ़ग़ानिस्तान: एक 'अहम' सबक़

आपातकालीन राहत समन्वयक, मार्टिन ग्रिफिथ्स ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति यह याद दिलाती है कि संकट में “महिलाओं और लड़कियों” पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है.

उन्होंने महिलाओं के नेतृत्व वाले स्थानीय समुदायों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, यह संकेत दिया कि संकट के समय सबसे पहले वही जवाबी कार्रवाई के लिये आगे आते हैं.

लिंग आधारित हिंसा का शिकार, इथियोपिया की एक लड़की.

इथियोपिया की हाल की यात्रा के दौरान, उन्होंने टीगरे क्षेत्र में, महिलाओं से बातचीत करके, उनपर हुए अत्याचारों के बारे में जानकारी प्राप्त की थी.

इस बारे में बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि स्थानीय समुदायों ने ही सबसे पहले इन अत्याचारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की, जिससे महिलाओं की बात सुनने व महिलाओं और लड़कियों की रक्षा करने की अहमियत उजागर होती है.

साथ ही, यह भी स्पष्ट होता है कि "स्थानीय समुदायों की रक्षा करना ज़रूरी है जिससे वो जो “स्वाभाविक रूप से जो कुछ करना चाहते हैं" वो कर सकें.

मार्टिन ग्रिफिथ्स ने कहा कि मानवीय कार्यक्रम के अन्तर्गत महिलाओं की सुरक्षा को सबसे कम वित्त-पोषिण मिलता है.

सेवाओं का प्रचार-प्रसार 

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ़) की कार्यकारी निदेशक, हेनरीएटा फोर ने कहा, "महत्वाकाक्षी कार्रवाई का आहवान" पूरा करने के लिये, ज़मीनी स्तर पर लड़कियों और महिलाओं तक उपलब्ध सेवाओं की जानकारी पहुँचाना ज़रूरी है.

उन्होंने कहा, "अब तक यह जानकारी बिल्कुल स्पष्ट नहीं है."

उन्होंने यूनीसेफ़ की रिपोर्ट, ‘We must do better’ (हमें बेहतर करना होगा) का उल्लेख किया, जो कोविड-19 के दौरान संगठनों का नेतृत्व करने वाली महिलाओं और लड़कियों के अनुभवों का वैश्विक नारीवादी मूल्यांकन प्रदान करती है.

रिपोर्ट में ख़ास ध्यान दिलाते हुए ये भी कहा गया है कि महिलाओं और लड़कियों की ज़रूरतों को या तो नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है या उन्हें आख़िरी स्थान पर रखा जाता है.

साथ ही, यह भी कहा गया है कि मानवीय संकटों की जवाबी कार्रवाई के दौरान अग्रिम पंक्ति में होने के बावजूद, महिलाओं को गम्भीरता से नहीं लिया जा रहा है.

हेनरीएटा फोर ने कहा, यद्यपि कोविड महामारी के दौरान लिंग आधारित हिंसा सम्बन्धी सेवाओं की मांग में वृद्धि हुई है, लेकिन संसाधन अब भी उतने ही हैं. इसलिये उन्होंने आहवान किया कि स्थानीय महिला समूहों को, आर्थिक सहायता समेत हर तरह की अधिक से अधिक सहायता दी जाए.

मदद मिलने में लालफ़ीताशाही

संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैण्डी ने प्रतिभागियों को आश्वासन दिया कि शरणार्थी एजेंसी (यू एन एच सी आर) के लिये लिंग आधारित हिंसा से लड़ना एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है, ख़ासतौर पर, ऐसे स्थानों पर, जहाँ जबरन विस्थापन की स्थितियों में, यह ज़्यादा पनपती है.

उन्होंने स्वीकार किया कि मानवीय संकट के दौरान जैसे-जैसे लोग, तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं, अक्सर स्थानीय महिला संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका की अनदेखी कर दी जाती है.

UNHCR के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि महिलाओं के नेतृत्व वाले, समुदाय-आधारित संगठनों को बिना किसी लालफ़ीताशाही के "महत्वपूर्ण, लचीला, प्रत्यक्ष और तेज़" संसाधन प्रदान करना, उन्हें सशक्त बनाने के "सबसे महत्वपूर्ण" तरीक़ों में से एक है.

हालाँकि उन्होंने स्वीकार किया, "यह करना काफ़ी कठिन है" क्योंकि मानवीय धनराशि "नौकरशाही" की प्रवृत्ति का शिकार हो जाती है.

बैठक की पूरी कार्यवाही देखने के लिये यहाँ क्लिक करें.