अन्तरराष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के लिये महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई की पुकार
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरश ने आगाह किया है कि जलवायु त्रासदियों से विश्व का कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को टालने के लिये समय तेज़ी से बीता जा रहा है.
यूएन प्रमुख ने गुरूवार को सुरक्षा परिषद में जलवायु परिवर्तन के कारण अन्तरराष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के लिये उपजते जोखिमों पर उच्चस्तरीय चर्चा को सम्बोधित किया.
महासचिव गुटेरेश ने पिछले महीने जलवायु परिवर्तन पर अन्तर-सरकारी आयोग (IPCC) द्वारा जारी रिपोर्ट का उल्लेख किया.
रिपोर्ट दर्शाती है कि मानवीय गतिविधियों के कारण व्यापक स्तर पर जलवायु व्यवधान पैदा हुआ है और गहन रूप धारण कर रहा है, जोकि चिन्ताजनक है.
“The effects of climate change are particularly profound when they overlap with fragility and past or current conflicts”, said @antonioguterres at the Security Council, noting that climate risks complicate efforts to prevent conflict and to sustain peace. https://t.co/Kco5KezVoo pic.twitter.com/kZnaASGoqW
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महासचिव गुटेरेश ने कहा कि यह रिपोर्ट मानवता के लिये एक गम्भीर चेतावनी है.
इसके मद्देनज़र, उन्होंने स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप26) से पहले निडर जलवायु कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित किया है.
यूएन प्रमुख ने आगाह किया है कि अन्तरराष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बनाये रखने के लिये यह ज़रूरी है, और कि इसकी अगुवाई जी20 समूह के देशों को करनी होगी.
“कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है. जंगलों में आग, बाढ़, सूखा और अन्य चरम मौसम की घटनाएँ हर महाद्वीप को प्रभावित कर रही हैं.”
उन्होंने जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण के कुप्रबन्धन को, जोखिम बढ़ाने वाला एक कारक बताते हुए सचेत किया, कि इनके प्रभाव, अतीत और वर्तमान के हिंसक संघर्षों के साथ मिलकर, और भी गम्भीर रूप धारण कर सकते हैं.
शान्ति व सुरक्षा के लिये जोखिम
महासचिव के मुताबिक़ सोमालिया में सूखे और बाढ़ की घटनाएँ पहले से कहीं ज़्यादा आवृत्ति के साथ हो रही हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ा है, सीमित संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है और सामुदायिक तनाव बढ़ रहा है, जिसका फ़ायदा चरमपंथी गुट अल शबाब गुट को पहुँचता है.
वहीं मध्य पूर्व और उत्तर अफ़्रीका दुनिया में, जलवायु दृष्टि से और जल संकट का सामना करने वाले क्षेत्रों में है. यहाँ चरम मौसम की घटनाएँ बढ़ने से जल और खाद्य सुरक्षा के लिये चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं.
बताया गया है कि पिछले वर्ष जलवायु-सम्बन्धी आपदाओं के कारण तीन करोड़ से ज़्यादा लोग विस्थापन का शिकार हुए.
इनमें से 90 फ़ीसदी शरणार्थी ऐसे देशों से आ रहे हैं, जो कि बेहद नाज़ुक हालात से जूझ रहे हैं और जिनमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने की क्षमता बहुत कम है.
यूएन प्रमुख ने स्पष्ट किया कि इन शरणार्थियों को जिन देशों में शरण मिली है, वे भी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से पीड़ित हैं, जिससे मेज़बान समुदायों और राष्ट्रीय बजटों के लिये चुनौती और गहरा रही है.
कोविड-19 महामारी के कारण हुई तबाही से, जलवायु त्रासदियों से निपटने और सहनक्षमता के निर्माण के लिये सरकारों की क्षमताओं पर असर पड़ा है.
यूएन प्रमुख ने सचेत किया कि ख़तरे स्पष्ट हैं और मौजूद भी. मगर, अन्तरराष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा में योगदान देने के लिये जलवायु कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिये देरी नहीं हुई है.
तीन बड़ी प्राथमिकताएँ
इस क्रम में महासचिव गुटेरेश ने जलवायु कार्रवाई के लिये तीन अहम प्राथमिकताएँ साझा की हैं.
पहला, जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों को टालने के लिये वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना.
उन्होंने कहा कि इसके लिये सभी देशों द्वारा, सुस्पष्ट संकल्प और विश्वसनीय कार्रवाई की आवश्यकता होगी.
महासचिव गुटेरेश ने सदस्य देशों से राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाओं को ज़्यादा महत्वाकांक्षी बनाने और वर्ष 2030 तक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 45 फ़ीसदी की कटौती पर बल दिया है.
दूसरा, विश्व भर में आम लोगों के जीवन व आजीविका पर जलवायु व्यवधान से हुए भीषण प्रभावों से निपटा जाना.
इसके लिये अनुकूलन कार्रवाई और जलवायु सहनक्षमता बढ़ाये जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है.
उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर जलवायु वित्त पोषण का कम से कम 50 फ़ीसदी हिस्सा, सहनक्षमता का निर्माण करने और अनुकूलन को सहारा देने पर केंद्रित रखना होगा.
साथ ही विकसित देशों से, कॉप26 सम्मेलन से पहले, विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई के लिये 100 अरब डॉलर की वार्षिक मदद के वादे को पूरा करने का आग्रह किया गया है.
तीसरा, जलवायु अनुकूलन और शान्तिनिर्माण एक दूसरे को मज़बूती प्रदान कर सकते हैं, और ऐसा किया जाना चाहिये.
महासचिव गुटेरेश ने पश्चिम और मध्य अफ़्रीका का उदाहरण देते हुए कहा कि सीमा-पार परियोजनाओं के ज़रिये सम्वाद व प्राकृतिक संसाधनों का ज़्यादा पारदर्शी प्रबंधन, सम्भव बनाया गया है. यह शान्ति के लिये बेहद अहम है.
वहीं लेक चाड क्षेत्र में, सम्वाद प्लैटफ़ॉर्म के ज़रिये प्राकृतिक संसाधनों के सहयोगपूर्ण ढंग से प्रबन्धन को शान्तिनिर्माण कोष से मदद मुहैया कराई जा रही है.
इससे वनों को फिर से आबाद करने और टिकाऊ आजीविकाओं की बेहतर सुलभता सुनिश्चित करने में सफलता मिल रही है.