2020, एक कठिन परीक्षा का साल - यूएन के कामकाज पर वार्षिक रिपोर्ट पेश
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि कोविड-19 महामारी की वजह से स्वास्थ्य-सम्बन्धी, सामाजिक, आर्थिक व मानवाधिकारों के लिये पैदा हुए संकटों ने ना सिर्फ़ बहुपक्षीय सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित किया है, बल्कि उनकी कठिन परीक्षा भी ली है.
यूएन प्रमुख ने गुरूवार को अपने संगठन के कामकाज पर वार्षिक रिपोर्ट को पेश किया है, जो दर्शाती है कि 75 वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से अब तक, कोविड-19 महामारी सबसे बड़ी साझा वैश्विक चुनौती है.
"The global health, social, economic & human rights crises triggered by the #COVID19 pandemic have underscored the importance of multilateral cooperation - and tested it to the limit." -- @antonioguterres in his annual report on the work of the UN: https://t.co/xEEEqF4kTn pic.twitter.com/7gT8UiNUPL
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महासचिव ने कहा कि व्यक्तियों व रोज़गारों की सुरक्षा से लेकर, टिकाऊ व न्यायोचित पुनर्बहाली सुनिश्चित करने में देशों की सरकारों को सहायता देने तक, संयुक्त राष्ट्र ने महामारी पर जवाबी कार्रवाई में एक केंद्रीय भूमिका निभाई है.
यूएन ने कोरोनावायरस संकट के स्वास्थ्य, मानवीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का सामना करने में क़रीब 160 देशों को समर्थन प्रदान किया है.
साथ ही दुनिया भर में 26 करोड़ छात्रों के लिये घर बैठकर पढ़ाई-लिखाई सम्भव बनाने में सहायता की है.
कोविड-19 महामारी के विषय में फैली भ्रामक जानकारियों व धारणाओं को दूर करने में, यूएन की ‘वैरीफ़ाइड’ नामक पहल ने, कम से कम 50 भाषाओं में एक हज़ार से अधिक डिजिटल सामग्री प्रकाशित की हैं.
संयुक्त राष्ट्र, विश्व भर में, शान्ति व सुरक्षा, सामाजिक स्थिरता, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वस्थ पर्यावरण के निर्माण के लिये प्रयासरत है, और इसके कामकाज के केंद्र में मानवाधिकार हैं.
संगठन ने 23 देशों में दासता के समकालीन रूपों के आठ हज़ार 594 पीड़ितों को सहारा दिया है,
भेदभावपूर्ण क़ानूनों में सुधार के लिये 89 सदस्य देशों के साथ साझीदारी की है, और 78 राष्ट्रों में यातना के 40 हज़ार से अधिक पीड़ितों को मदद प्रदान की.
2020: परीक्षा का साल
इस रिपोर्ट में, यूएन की राजनैतिक मामलों की प्रमुख रोज़मैरी डीकार्लो ने वैश्विक महामारी को राजनैतिक दबाव की एक परीक्षा क़रार दिया है.
उन्होंने कहा कि इस परीक्षा ने दिखाया है कि शान्ति स्थापना और उसे बनाए रखने के लिये राजनैतिक इच्छाशक्ति से, किसी भी अवरोध को पार किया जा सकता है, विशेष रूप अगर वैश्विक समुदाय से समर्थन हासिल हो.
संयुक्त राष्ट्र ने 81 हज़ार से अधिक देशविहीन व्यक्तियों को पहचान दिलाने और उनकी शिनाख़्त की पुष्टि करने में सहायता प्रदान की है.
साथ ही, युद्ध, अकाल और यातना से जान बचाकर भाग रहे आठ करोड़ 25 लाख लोगों को सहारा दिया है.
संयुक्त राष्ट्र में शान्तिरक्षा मामलों के प्रमुख ज्याँ-पियेर लाक्रोआ ने सामूहिक समर्पण की अहमियत को रेखांकित करते हुए बताया कि जो लोग संगठन के कामकाज पर निर्भर हैं, उन्हें इससे कम की आशा भी नहीं है.
वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र ने ऐसी तथ्य-आधारित नीतियों को आगे बढ़ाना जारी रखा है,
जिनसे देशों को महामारी से उबरने के साथ-साथ टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी मदद मिल सके.
ज़रूरतमन्दों की मदद
संयुक्त राष्ट्र ने संकट-प्रभावित 28 देशों में, 50 लाख से अधिक लोगों को कामकाज ढूँढने, 13 देशों में 12 लाख निर्बलों को कार्यकाल सम्बन्धी सुरक्षा प्राप्त करने और दो करोड़ 40 लाख लोगों की 22 देशों में वित्तीय सेवाओं तक पहुँच बनाने में मदद की है.
ज़मीनी स्तर पर, यूएन के रैज़ीडेण्ड कोऑर्डिनेटर और देशीय टीमों ने अति-आवश्यक सेवाओं को पाने में 24 करोड़ से अधिक लोगों की सहायता की है.
तीन करोड़ 60 लाख लोगों के लिये जल व साफ़-सफ़ाई सेवाओं और एक करोड़ 20 लाख से अधिक लोगों के लिये सामाजिक संरक्षा योजनाओं को सुनिश्चित किया गया है.
अफ़्रीका में कोविड-19 महामारी के विरुद्ध जवाबी कार्रवाई में त्वरित व एकीकृत समर्थन प्रयासों के तहत, स्वास्थ्य व मानवीय राहत हस्तक्षेपों पर ध्यान केंद्रित किया गया.
साथ ही निर्बल आबादियों की रक्षा के लिये उन्हें सामाजिक-आर्थिक सहायता मुहैया कराई गई.
महामारी के दौरान तालाबन्दी और घर तक ही सीमित रह जाने के आदेशों की वजह से घरेलू हिंसा और ऑनलाइन यौन उत्पीड़न का जोखिम बढ़ा है.
मौजूदा हालात में, समावेशन और न्याय तक पहुँच, अतीत की तुलना में पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है.
इस क्रम में, संयुक्त राष्ट्र ने हिरासत केंद्रों में कोविड-19 से निपटने की तैयारियों में योगदान दिया है.
इससे बन्दीगृहों में हालात को सुधारने, बन्दियों के लिये बुनियादी सेवाओं को बेहतर बनाने में मदद मिली है.
जलवायु संकट
जलवायु कार्रवाई के लिये संगठित प्रयासों के तहत, संयुक्त राष्ट्र ने विज्ञान-आधारित रिपोर्टों से लेकर सार्वजनिक पैरोकारी व निजी वार्ताओं में योगदान दिया है.
साथ ही, इस सदी के मध्य तक नैट शून्य कार्बन उत्सर्जन के लिये गठबंधन को साकार करने में अहम योगदान दिया है.
निवेशक समुदाय में भी जागरूकता बढ़ी है कि जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल जोखिम भरा है और कि यह विकल्प नवीकरणीय ऊर्जा से कहीं अधिक महंगा है.
पिछले वर्ष दिसम्बर में, जलवायु महत्वाकाँक्षा शिखर बैठक के दौरान, वर्ष 2010 के स्तर की तुलना में 2030 तक कार्बन उत्सर्जनों में 45 फ़ीसदी कटौती के लिये, 75 देशों ने अपनी योजनाओं व संकल्पों को साझा किया.