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कोविड संकटों ने, लोकतंत्र की मज़बूती को उजागर किया है, यूएन प्रमुख

मतदान करने पर अक्सर उंगलियों पर नीले रंग की स्याही से निशान छोड़े जाते हैं जिससे मतदान में गड़बड़ी को रोकने में मदद मिलती है.
UNDP/Rochan Kadariya
मतदान करने पर अक्सर उंगलियों पर नीले रंग की स्याही से निशान छोड़े जाते हैं जिससे मतदान में गड़बड़ी को रोकने में मदद मिलती है.

कोविड संकटों ने, लोकतंत्र की मज़बूती को उजागर किया है, यूएन प्रमुख

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने दुनिया भर से, भविष्य में संकटों का सामना करने के लिये, लोकतांत्रिक सहनक्षमता मज़बूत करने की ख़ातिर, पिछले 18 महीनों के दौर व घटनाओं से सबक सीखने का आग्रह किया है.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुरेटेश ने बुधवार को, अन्तरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के मौक़े पर अपने सन्देश में, कोविड-19 का सन्दर्भ दिया है. 

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उन्होंने कहा है कि सबक सीखने के प्रयासों में ऐसी अच्छी प्रशासनिक गतिविधियों या नीतियों की पहचान करना शामिल है जिनके ज़रिये, तमाम तरह की आपदाओं का मुक़ाबला किया जा सके, चाहे वो सार्वजनिक स्वास्थ्य की हों, पर्यावरणीय या वित्तीय.

यूएन प्रमुख ने कहा, “इसका मतलब ये है कि दुनिया भर में मौजूद, भयावह अन्यायों से निपटा जाए जो महामारी ने उजागर किये हैं.

इनमें लैंगिक विषमताओं और अपर्याप्त स्वास्थ्य प्रणालियों से लेकर वैक्सीन, शिक्षा, इण्टरनेट और ऑनलाइन सेवाओं की असमान उपलब्धता शामिल हैं.”

यूएन प्रमुख के अनुसार, सर्वाधिक निर्बल लोगों द्वारा भयावह मानवीय क़ीमत अदा करने के साथ-साथ, लम्बे समय से जारी ये ऐतिहासिक विषमताएँ, ख़ुद लोकतंत्र के लिये भी ख़तरा हैं.

सर्वजन की भागीदारी

यूएन महासचिव ने तर्क दिया है कि लोकतंत्र को मज़बूत किये जाने का ये मतलब भी कि निर्णय – प्रक्रिया में भागीदारी को अपनाया जाए, जिसमें शान्तिपूर्ण प्रदर्शन भी शामिल हैं. और ऐसे लोगों और समुदायों की आवाज़ों को स्थान दिया जाए जिन्हें, परम्परागत रूप में अलग-थलग रखा गया है. 

एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “महिलाओं, धार्मिक व नस्लीय अल्पसंख्यकों, आदिवासी समुदायों, विकलांगता वाले लोगों, मानवाधिकार पैरोकारों और पत्रकारों की आवाज़ें ख़ामोश किया जाना, स्वस्थ समाजों के निर्माण में, एक बड़ी बाधा है.”

उनकी नज़र में, “सिविक आज़ादी व स्थान की अनुपस्थिति में, लोकतंत्र जीवित ही नहीं रह सकता, समृद्धि के साथ उसके क़ायम रहने की बात तो दूर है.”

आपात शक्तियाँ

एंतोनियो गुटेरेश ने अपने सन्देश में, सरकारों की आपातकालीन शक्तियों और उनके क़ानूनी उपायों को, चरणबद्ध रूप में ख़त्म करने की महत्ता पर भी ज़ोर दिया है. ये आपातकालीन शक्तियाँ कुछ मामलों में दमनकारी बनते हुए देखी गई हैं और मानवाधिकार क़ानून का उल्लंघन करती हैं.

उन्होंने कहा कि कछ देश व सुरक्षा क्षेत्र के संस्थान, आपातकालीन शक्तियों का सहारा लेते हैं क्योंकि वो ‘शॉर्टकट’ मुहैया कराती हैं. 

मगर उन्होंने सावधान करते हुए ये भी कहा कि समय गुज़रने के साथ “ऐसी शक्तियाँ, क़ानूनी ढाँचों में अपनी जगह बना सकती हैं और स्थाई बन सकती हैं.

ऐसा होने से विधि के शासन की अहमियत कम होती है और बुनियादी स्वतंत्रताओं व मानवाधिकारों पर गाज गिरती है, जोकि लोकतंत्र की बुनियाद होते हैं.” 

यूएन प्रमुख ने आगाह करते हुए कहा, ”हर एक संकट, लोकतंत्र के लिये जोखिम प्रस्तुत करता है क्योंकि लोगों के अधिकार बड़ी आसानी से नज़रअन्दाज़ किये जा सकते हैं, ख़ासतौर से, सर्वाधिक निर्बल लोगों के आधिकार.” 

ऐसे में जबकि दुनिया, महामारी से आगे के समय पर नज़रें टिकाना शुरू कर रही है, एंतोनियो गुटेरेश ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से “समानता, भागीदारी और एकजुटता के सिद्धान्तों की हिफ़ाज़त करने के लिये प्रतिबद्धता जताने” का आहवान किया है, ताकि, दुनिया भविष्य में आने वाले संकटों का सामना, बेहतर तरीक़े से करने में सक्षम बन सके.