वैश्विक अर्थव्यवस्था में खासी तेज़ वृद्धि का अनुमान
संयुक्त राष्ट्र के व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) ने कहा है कि इस वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था में फिर से अच्छी बेहतरी के साथ, लगभग 5.3 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद है, जोकि पिछले लगभग 50 वर्षों में सबसे तेज़ वृद्धि होगी.
संगठन ने बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि अलबत्ता, ये बेहतरी क्षेत्रीय, सैक्टरों और आय के स्तर पर बहुत असमान भी है.
यूएन एजेंसी को वर्ष 2022 के दौरान, वैश्विक वृद्धि कुछ धीमी होकर 3.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है जिससे विश्व आय का स्तर, महामारी शुरू होने के पूर्व के स्तर से, 3.7 प्रतिशत पीछे होगा.
रिपोर्ट में आगाह भी किया गया है कि नीति-निर्माताओं ने समझदारी से काम नहीं लिया या फिर, विनियमन और किफ़ायत बरतने की पुकारों पर अमल किया गया तो, वृद्धि की दर अनुमानों से कहीं कम भी हो सकती है.
वृद्धि दर में भिन्नता
रिपोर्ट में कहा गया है कि वैसे तो अनेक विकसित देशों में कोरोनावायरस महामारी से मुक़ाबला करने के प्रयासों में, सार्वजनिक व्यय पर पाबन्दियाँ ख़त्म कर दी गईं.
लेकिन अन्तरराष्ट्रीय नियमों और व्याहारिक गतिविधियों के कारण, विकासशील देश, अब भी महामारी पूर्व के दौर में ही फँसे हुए हैं. इससे आर्थिक दबाव की एक अर्द्ध-स्थाई स्थिति उत्पन्न हो गई है.
दक्षिण क्षेत्र के अधिकतर देश, महामारी के दौरान, इतना ज़्यादा प्रभावित हुए हैं, जितना कि वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भी नहीं हुए थे.
उन देशों के पास, भारी क़र्ज़ तले दबे होने के कारण, सार्वजनिक व्यय के ज़रिये, आगे का रास्ता बनाने के लिये, कम ही विकल्प मौजूद हैं.
बहुत सी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के पास वित्तीय स्वायत्तता की कमी होने और वैक्सीन तक पहुँच नहीं होने के कारण भी, उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.
इससे विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के साथ उनका अन्तर और बढ़ गया है, और एक अन्य ‘नुक़सान वाले दशक’ में दाख़िल होने का जोखिम उत्पन्न हो गया है.
अंकटाड की महासचिव रिबेका ग्रिन्सपैन का कहना है, “आन्तरिक और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ता ये अन्तर, ये याद दिलाता है कि अगर मौजूदा स्थितियों को ऐसे ही छोड़ दिया गया तो, सहनक्षमता और वृद्धि के फ़ायदे, बहुत कम ही देशों व लोगों को मिल पाएंगे.”
महामारी के सबक
अंकटाड ने, रिपोर्ट में अनेक प्रस्ताव भी शामिल किये हैं, जिन्हें महामारी से सीखे गए सबकों से लिया गया है.
इन प्रस्तावों में प्रमख रूप से शामिल हैं – सघन क़र्ज़ राहत और यहाँ तक कि कुछ मामलों में क़र्ज़ मुक्ति, वित्तीय नीति का पुनः आकलन, वृहद नीति समन्वय और वैक्सीन उपलब्धता में विकासशाली देशों को मज़बूत समर्थन व सहायता.
यूएन एजेंसी का कहना है कि अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था को कोई बड़ा झटका नहीं लगा तो, 2016-19 के स्तर वाली अर्थव्यवस्था दर, वर्ष 2030 तक ही लौटने का अनुमान है.
वर्ष 2008-09 में आए वैश्विक आर्थिक संकट के बाद, देशों के प्रमुख केन्द्रीय बैंकों द्वारा व्यापक पैमाने पर वित्तीय रियायतें और राहतें दिये जाने वाले दशक के बाद भी, मूल्य वृद्धि के लक्ष्य हासिल नहीं हो सके हैं.
यहाँ तक कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में मौजूदा मज़बूत पुनर्बहाली के बावजूद, मूल्यों में टिकाऊ वृद्धि के कोई संकेत नज़र नहीं आ रहे हैं.
खाद्य क़ीमतें और वैश्विक व्यापार
अंकटाड का मानना है कि मुद्रा स्फीति के मौजूदा स्तर के बावजूद, खाद्य पदार्थों की क़ीमतों में वृद्धि के कारण, दक्षिण क्षेत्र के देशों में, निर्बल आबादी के लिये गम्भीर जोखिम उत्पन्न हो सकता, जोकि स्वास्थ्य संकट के कारण, पहले ही वित्तीय रूप से बहुत कमज़ोर हो चुके हैं.
वैश्विक स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं में अन्तरराष्ट्रीय व्यापार, वर्ष 2020 के दौरान 5.6 प्रतिशत की गिरावट देखने के बाद, अब बेहतर हुआ है.
गिरावट की दर, अनुमानों से कहीं कम गम्भीर रही है, क्योंकि 2020 के अन्तिम हिस्से में, व्यापार की दर में लगभग उसी रफ़्तार से उछाल देखा गया जैसाकि उससे पहले उसमें गिरावट देखी गई थी.