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कृषि-सम्बन्धी समर्थन उपायों से मानव व पर्यावरण स्वास्थ्य को ख़तरा – यूएन रिपोर्ट

ऐमेज़ोन के जंगलों में विशाल क्षेत्र पर गन्ने और सोयाबीन की खेती की जा रही है और पर्यावरमीय दुष्प्रभावों को दरकिनार कर दिया गया है.
UNEP GRID Arendal/Riccardo Pravettoni
ऐमेज़ोन के जंगलों में विशाल क्षेत्र पर गन्ने और सोयाबीन की खेती की जा रही है और पर्यावरमीय दुष्प्रभावों को दरकिनार कर दिया गया है.

कृषि-सम्बन्धी समर्थन उपायों से मानव व पर्यावरण स्वास्थ्य को ख़तरा – यूएन रिपोर्ट

जलवायु और पर्यावरण

विश्व भर में कृषि उत्पादकों को दिये जाने वाले कुल 540 अरब डॉलर के सरकारी समर्थन में, क़रीब 87 फ़ीसदी धनराशि ऐसे रूपों में है, जो कि क़ीमतों को प्रभावित करते हैं और जिनसे प्रकृति व स्वास्थ्य को नुक़सान पहुँच सकता है. 

रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों को दी जाने वाली सब्सिडी, भूमि क्षरण, स्वास्थ्य पर दुष्प्रभावों और जल के प्रदूषित होने के लिये ज़िम्मेदार है.

संयुक्त राष्ट्र द्वारा मंगलवार को जारी एक नई रिपोर्ट में किसानों के लिये इन प्रोत्साहनकारी उपायों में बदलावों की पुकार लगाई गई है ताकि टिकाऊ विकास लक्ष्यों के 2030 एजेण्डा और पारिस्थितिकी तंत्रों की बहाली के यूएन दशक को साकार करने में मदद मिल सके.

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‘A multi-billion-dollar opportunity: Repurposing agricultural support to transform food systems’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट को खाद्य एवँ कृषि संगठन (FAO), यूएन विकास कार्यक्रम (UNDP) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने मिलकर तैयार किया है.

रिपोर्ट के मुताबिक किसानों को समर्थन देने के लिये सब्सिडी सहित अन्य प्रोत्साहनकारी उपाय, कुल कृषि उत्पादन मूल्य का 15 फ़ीसदी हैं. 
वर्ष 2030 तक इसके तीन गुना से भी अधिक होने, एक हज़ार 759 अरब डॉलर होने की सम्भावना है.

आर्थिक सहयोग एवँ विकास संगठन (OECD) के मुताबिक कृषि सम्बन्धी समर्थन से तात्पर्य, सरकारी नीतियों के परिणामस्वरूप, उपभोक्ता और करदाताओं से कृषि के लिये हस्तांतरित होने वाले कुल वार्षिक मौद्रिक मूल्य से है. 

समर्थन के लिये मौजूदा उपायों में मुख्यत: क़ीमतों में प्रोत्साहन, जैसे कि आयात शुल्क और निर्यात सब्सिडी, के साथ-साथ राजकोषीय छूट भी शामिल हैं, जो कि अक्सर विशिष्ट उत्पादों या आगत (Input) से जुड़ी होती है.

रिपोर्ट के अनुसार, ये उपाय दक्ष नहीं हैं, भोजन की क़ीमतों को तोड़ने-मरोड़ने और लोगों के ख़राब स्वास्थ्य के लिये ज़िम्मेदार हैं. 

साथ ही इनसे पर्यावरण को क्षति पहुँचती है और विषमतापूर्ण हालात उपजते हैं, जिनसे लघु किसानों के बजाय बड़े कृषि-व्यवसायों को फ़ायदा पहुँचता है. 

पिछले वर्ष, दुनिया भर में 81 करोड़ से अधिक लोग लम्बे समय से भुखमरी का शिकार थे, और हर तीन में से एक व्यक्ति (दो अरब 37 करोड़) के पास साल भर के लिये पर्याप्त भोजन सुलभ नहीं था. 

वर्ष 2019 में लगभग तीन अरब लोगों के लिये, दुनिया के हर क्षेत्र में, एक सेहतमन्द आहार को सुनिश्चित कर पाना सम्भव नहीं था.

बदलाव, उन्मूलन नहीं

रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि कृषि को दिये जाने वाले समर्थन उपायों का नकारात्मक असर होने के बावजूद, लगभग 110 अरब डॉलर से बुनियादी ढाँचे, शोध एवँ विकास को समर्थन मिलता है. 

इससे मोटे तौर पर भोजन एवँ कृषि सैक्टर को लाभ मिल रहा है.

रिपोर्ट बताती है कि कृषि सम्बन्धी उत्पादकों को दिये जाने वाले समर्थन में बदलाव की आवश्यकता है, उसे पूरी तरह ख़त्म करने की नहीं. 

इससे निर्धनता का अन्त करने, भुखमरी का उन्मूलन करने, खाद्य सुरक्षा हासिल करने, पोषण बेहतर बनाने, टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने, टिकाऊ खपत व उत्पादन को प्रोत्साहन देने, जलवायु संकट के प्रभावों को कम कर पाने और प्रकृति को बहाल करने, प्रदूषण घटाने व विषमताओं को दूर करने में मदद मिलेगी.

जलवायु परिवर्तन की चार प्रमुख वजहों में कृषि भी है. जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों, चरम गर्मी, बढ़ता समुद्री जलस्तर, सूखा, बाढ़ और टिड्डी दल के हमलों से प्रभावितों में किसान हैं.

रिपोर्ट बताती है कि समर्थन के मौजूदा उपाय जारी रखने से पृथ्वी पर मंडराता तिहरा संकट और गम्भीर होगा, जिससे अन्तत: मानव कल्याण के लिये ख़तरा है.

केनया के तवेता इलाक़े में, एक खेत में काम करती हुई महिला.
© FAO/Fredrik Lerneryd
केनया के तवेता इलाक़े में, एक खेत में काम करती हुई महिला.

जलवायु परिवर्तन पर पैरिस समझौते को पाने के लिये, विशाल आकार वाले माँस व दुग्ध उद्योग को दिये जाने वाले समर्थन में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया गया है – मुख्यत: उच्च आय वाले देशों में.  

इसे वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 14.5 प्रतिशत के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया है. वहीं निम्नतर-आय वाले देशों में, सरकारों से ज़हरीले कीटनाशकों व उर्वरकों के लिये समर्थन में बदलाव लाने पर विचार करने के लिये कहा गया है. 

भारत से ब्रिटेन तक

रिपोर्ट में अनेक उदाहरणों को साझा किया गया है, जैसे कि भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में शून्य बजट प्राकृतिक खेती (Zero Budget Natural Farming) नीति को अपनाया जाना.

वहीं ब्रिटेन के उदाहरण में एकल भुगतान योजना का उल्लेख है जिसमें राष्ट्रीय किसान संघ के साथ हुए समझौते के तहत सब्सिडी को हटा दिया गया है.

योरोपीय संघ में, फ़सलों में विविधता लाने के लिये प्रोत्साहन दिया गया है, जिसे साझा कृषि नीति में सुधार के ज़रिये सम्भव बनाया गया है. वहीं सेनेगल में भी एक कार्यक्रम के तहत किसानों को ज़्यादा विविध फ़सलों को उगाने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है.

इस रिपोर्ट को वर्ष 2021 की खाद्य प्रणाली शिखर बैठक से पहले पेश किया गया है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश द्वारा बुलाई गई यह बैठक न्यूयॉर्क में 23 सितम्बर को होनी है.

इस बैठक का लक्ष्य 17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर प्रगति के लिये निडर नई कार्रवाई को पेश करना है. ये लक्ष्य एक ज़्यादा स्वस्थ, ज़्यादा टिकाऊ और न्यायसंगत खाद्य प्रणालियों की प्राप्ति पर आधारित हैं.