यमन: लगातार बढ़ रहा है भय का माहौल, सभी पक्ष हैं ज़िम्मेदार

संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक पैनल ने बुधवार को कहा है कि यमन में, छह साल से जारी गृहयुद्ध में कोई कमी होती नज़र नहीं आ रही है और युद्ध के कारण, आम आबादी में डर का माहौल लगातार बढ़ रहा है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने यह समझने के लिये एक रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया था कि पिछले 12 महीनों के दौरान, युद्ध की स्थिति कैसी रही है.
"We urge the parties and the international community to establish a credible political process to achieve peace in #Yemen"- Kamel Jendoubi, chair of the @UN Group of Experts on Yemen presenting its new report on "a nation abandoned"READ➡️https://t.co/xITiG96sys#YemenCantWait pic.twitter.com/9kJCdRIzCJ
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स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के इस पैनल ने अपनी इस रिपोर्ट में उसी तरह के मानवाधिकार हनन मामलों की भर्त्सना की है जो उनकी पहली रिपोर्ट में भी शामिल किये गए थे.
मानवाधिकार हनन के इन मामलों में सऊदी अरब के नेतृत्व वाले अन्तरराष्ट्रीय गठबन्धन द्रा समर्थित यमन सरकार द्वारा किये जाने वाले हवाई हमले और, मुख्य रूप से हूथी लड़ाकों द्वारा आम आबादी पर अन्धाधुन्ध गोलाबारी किया जाना भी शामिल हैं. मगर ये गोलाबारी यमन की सरकार और गठबन्धन के बलों ने भी की है.
ध्यान रहे कि यमन वर्ष 2015 से, सरकारी सेनाओं और हूथी विद्रोही समूह के बीच विभाजित रहा है.
यमन सरकार को सैनिक गठबन्धन का समर्थन हासिल है. दूसरी तरफ़ हूथी लड़ाकों के समूह को अन्सार अल्लाह आन्दोलन के नाम से भी जाना जाता है, जिसने यमन के ज़्यादातर उत्तरी इलाक़ों पर नियंत्रण कर रख है जिसमें राजधानी सना भी शामिल है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों की इस ताज़ा रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि दक्षिणी परिवर्तनकारी परिषद भी, मानवाधिकार हनन के अनेक मामलों के लिये ज़िम्मेदार रही है.
साथ ही ये भी कहा गया है कि यमन की सरकार के साथ, परिषद की सत्ता साझेदारी के बारे में हुआ समझौता, लागू नहीं हो सका है.
रिपोर्ट में ज़ोर देकर कहा गया है कि संघर्ष में शामिल सभी पक्ष, मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों के लिये ज़िम्मेदार रहे हैं, जिनमें से कुछ हनन मामले तो अन्तरराष्ट्रीय अपराधों की श्रेणी में भी आ सकते हैं.
रिपोर्ट में कुछ उदाहरण भी पेश किये गए हैं.
मसलन, खाद्य सामग्री और स्वास्थ्य देखभाल तक लोगों की पहुँच को बाधित करना या उसमें रोड़ अटकाना, मनमाने तरीक़े से लोगों को बन्दी बनाना, लोगों को जबरन लापता करना, यौन हिंसा सहित लिंग आधारित हिंसा; उत्पीड़न व क्रूरता के अन्य तरीक़े, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार किया जाना; निष्पक्ष क़ानूनी कार्रवाई के अधिकार से वंचित किया जाना; बुनियादी स्वतंत्रताओं का उल्लंघन; पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, अल्पसंख्यकों, पारवासियों और देश के भीतर ही विस्थापित हुए लोगों के अधिकारों का उल्लंघन; और बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले महीनों के दौरान, माआरिब मोर्चे पर व बहुत से अन्य स्थानों, किस तरह, हिंसक और विनाशकारी युद्धक गतिविधियाँ देखी गई हैं.
मानवाधिकार विशेषज्ञों के इस समूह ने इस पर खेद व्यक्त किया है कि गठबन्धन, रिपोर्ट में शामिल किये गए निष्कर्षों व उसके सैन्य अभियानों के संचालन पर पेश की गई सिफ़ारिशों पर गम्भीर ध्यान नहीं दे रहा है.
इन सिफ़ारिशों में, आम आबादी और नागरिक ठिकानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की ख़ातिर, ज़रूरी ऐहतियात बरतने का सिद्धान्त भी शामिल है.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के इस समूह के मुखिया कामिल जैण्दूबी ने कहा है, “प्रमुख पक्षों के बीच उच्चस्तरीय बातचीत और राजनैतिक सहमतियों के बावजूद, यमन में रहने वाले सभी लोगों के लिये भय, अराजकता और दण्डमुक्ति का माहौल और भी ज़्यादा ख़राब हुआ है.”
संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के इस समूह ने आगाह करते हुए कहा है कि यमन में अब बहुत से लोगों के लिये दैनिक जीवन असहनीय हो गया है क्योंकि युद्ध के अलावा, लोगों को कोविड-19 जैसी महामारी, बाढ़, आयात पर लगी पाबन्दियों, और एक आर्थिक व ईंधन संकट का भी सामना करना पड़ रहा है. साथ ही, मानवीय सहायता की उपलब्धता भी सीमित हो गई है.
कामिल जैण्दूबी ने कहा, “मौजूदा असहनीय स्थिति के बीच में, केवल युद्ध से सम्बद्ध पक्षों और उनके समर्थकों के साथ-साथ, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय में, एक वास्तविक इच्छाशक्ति ही, यमन की तकलीफ़ों का ख़ात्मा कर सकती है.”
मानवाधिकार विशेषज्ञों के इस समूह ने तमाम युद्धक गतिविधियों को तुरन्त रोके जाने और बाहरी पक्षों द्वारा यमन में, हथियारों की आपूर्ति रोके जाने का आग्रह किया है.
कामेल जैण्दूबी ने कहा, “युद्ध ने, यमन के लोगों पर जो क़हर बरपा किया है, उसे देखते हुए, ये कोई तुक नहीं बनती कि अन्य पक्ष या देश, संघर्ष में शामिल पक्षों को, युद्ध में इस्तेमाल करने क लिये, हथियारों की आपूर्ति जारी रखें. हथियारों की आपूर्ति को तुरन्त रोकना होगा.”
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ज़ोर देकर ये भी कहा कि मानवाधिकार हनन के लिये ज़िम्मेदार पक्षों की जवाबदेही तय की जानी होगी.
रिपोर्ट में सुरक्षा परिषद से भी ये सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया है कि यमन में मानवाधिकारों की स्थिति, उसके एजेण्डा में प्राथमिकता पर रहे जिसके लिये, मानवाधिकार विशेषज्ञों के इस समूह का शासनादेश एक और वर्ष के लिये बढ़ाया जाए; और ये भी सुनिश्चित किया जाए कि ज़रूरी मानव और वित्तीय संसाधन मुहैया कराए जाएँ.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने दोहराते हुए ये भी कहा है कि सुरक्षा परिषद को यमन में युद्ध के मानवाधिकार आयामों को, अपने एजेण्डा में पूर्ण रूप से समाहित करना चाहिये. साथ ही ये सुनिश्चित करने को भी कहा है कि सर्वाधिक गम्भीर अपराधों को अंजाम देने के लिये ज़िम्मेदार पक्ष, क़ानून के शिकंजे से बचे ना रह जाएँ.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के इस समूह में कामिल जैण्डूबी (ट्यूनीशिया) - अध्यक्ष, मेलिसा पर्के (ऑस्ट्रेलिया), और आर्डी इम्सीस (कैनेडा) शामिल हैं.