डिमेंशिया: बढ़ती स्वास्थ्य चुनौती से निपटने के लिये बेहतर समर्थन की दरकार
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में साढ़े पाँच करोड़ से अधिक लोग मनोभ्रंश (Dementia) की अवस्था में रह रहे हैं और इस संख्या का बढ़ना लगातार जारी है.
The new WHO report showcases the progress made in the global response to #dementia. It includes latest data on1⃣ dementia prevalence2⃣ societal costs of the condition3⃣ progress & challenges reported by countries.More details 👉https://t.co/nt5wPU7Hfq pic.twitter.com/ebZEOBf5NS
WHO
गुरूवार को जारी की गई रिपोर्ट बताती है कि महज़ एक-चौथाई सदस्य देशों के पास ही इस चुनौती से निपटने के लिये राष्ट्रीय नीतियाँ, रणनीतियाँ या समर्थन योजनाएँ तैयार हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ‘Global status report on the public health response to dementia’ दर्शाती है कि कारगर समर्थन प्रदान करने वाले देशों की आधी संख्या योरोपीय क्षेत्र में है.
इसके बावजूद, योरोप में बहुत सी योजनाओं की अवधि समाप्त हो रही है, या हो चुकी है, जो कि सरकारी स्तर पर नए सिरे से संकल्प लिये जाने की आवश्यकता को प्रदर्शित करता है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा, “डिमेंशिया लाखों लोगों से उनकी स्मृतियों, स्वतंत्रता व गरिमा को छीन लेता है, मगर यह बाक़ी हम सब से भी उन लोगों को छीनता है जिन्हें हम जानते और प्यार करते हैं.”
डिमेंशिया की अवस्था के लिये ऐसी अनेक प्रकार की बीमारियों व चोटों को वजह बताया गया है, जिनसे मस्तिष्क पर असर पड़ता है, जैसे कि अल्ज़ाइमर्स बीमारी या फिर स्ट्रोक.
इससे याददाश्त व संज्ञानात्मक (cognitive) क्षमता और रोज़मर्रा के जीवन में कामकाज करने की क्षमता पर असर पड़ता है.
महानिदेशक घेबरेयेसस ने बताया कि दुनिया, डिमेंशिया के साथ रह रहे लोगों का साथ छोड़ रही है और यह हम सभी को पीड़ा पहुँचाता है.
“चार वर्ष पहले, डिमेंशिया देखभाल को बेहतर बनाने के लिये सरकारें, स्पष्ट लक्ष्यों पर सहमत हुई थीं. मगर, ये लक्ष्य अपने आप में पर्याप्त नहीं हैं.”
डिमेंशिया सम्बन्धी विकलागंता को इस अवस्था से जुड़ी क़ीमतों की एक प्रमुख वजह बताया गया है.
बढ़ते मामले
रिपोर्ट बताती है कि डिमेंशिया के साथ रह रहे लोगों की संख्या बढ़ रही है. एक अनुमान के मुताबिक 65 वर्ष से अधिक उम्र की 8.1 प्रतिशत महिलाएँ और 5.4 प्रतिशत पुरुष इस अवस्था के साथ रह रहे हैं.
यह संख्या वर्ष 2030 तक सात करोड़ 80 लाख और 2050 तक 13 करोड़ 90 लाख पहुँचने का अनुमान है.
वर्ष 2019 में, डिमेंशिया पर वैश्विक ख़र्च को एक हज़ार 300 अरब डॉलर आंका गया था, जिसके 2030 तक बढ़कर एक हज़ार 700 अरब डॉलर पहुँच जाने की सम्भावना है.
देखभाल सम्बन्धी क़ीमतों को इसमें शामिल किये जाने पर यह आँकड़ा बढ़कर दो हज़ार 800 अरब डॉलर को छू सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि डिमेंशिया वाले लोगों की देखभाल और उनकी देखभाल में जुटे लोगों के लिये राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन को मज़बूती प्रदान की जानी होगी.
इनमें समुदाय-आधारित सेवाओँ के अलावा, विशेषज्ञ, दीर्घकालीन और पीड़ा हरने वाली देखभाल भी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ‘वैश्विक मनोभ्रंश वेधशाला’ (Global Dementia Observatory) को आँकड़े मुहैया कराने वाले 89 फ़ीसदी देशों का कहना है कि डिमेंशिया के लिये कुछ हद तक समुदाय-आधारित सेवाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं.
वहीं उच्च-आय वाले देशों में दवाएं, स्वच्छता सम्बन्धी उत्पाद, सहायक टैक्नॉलॉजी और अन्य प्रकार की सेवाएँ उपलब्ध हैं.
अनौपचारिक देखभाल
स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल क्षेत्र द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा के प्रकार और स्तर से ही अनौपचारिक समर्थन का स्तर निर्धारित होता है, जिसे आमतौर पर पारिवारिक सदस्यों द्वारा प्रदान किया जाता है.
सामाजिक देखभाल क़ीमतों का हिस्सा एक-तिहाई से अधिक है, डिमेंशिया पर होने वाले ख़र्च का क़रीब आधा हिस्सा अनौपचारिक देखभाल से आता है.
निम्न और मध्य आय वाले देशों में 65 फ़ीसदी क़ीमतों की वजह अनौपचारिक देखभाल को बताया गया है, जबकि अपेक्षाकृत धनी देशों में यह लगभग 40 प्रतिशत है.
रिपोर्ट बताती है कि सभी क्षेत्रों में स्थित देशों ने सार्वजनिक जागरूकता मुहिमों को लागू करने में प्रगति दर्ज की है. इन अभियानों का उद्देश्य डिमेंशिया के सम्बन्ध में बेहतर समझ विकसित करना है.