अफ़ग़ानिस्तान: यूएन, धन की कमी के बावजूद, मदद के लिये मुस्तैद

संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायता कर्मियों ने फिर दोहराया है कि वो अफ़ग़ानिस्तान में, ज़रूरमन्दों की मदद करने के लिये वहाँ रुकने का पक्का इरादा रखते हैं, जबकि ज़्यादातर पश्चिमी देशों की सरकारों ने, अफ़ग़ानिस्तान में अपनी मौजूदगी पूरी तरह ख़त्म कर दी है.
संयुक्त राष्ट्र की मानवीय सहायता एजेंसी (OCHA) के प्रवक्ता जेन्स लाएर्के ने मंगलवार को कहा कि उनके सहायता अभियान जारी हैं, और संयुक्त राष्ट्र वर्ष 2021 के दौरान पहले ही लगभग 80 लाख लोगों की मदद कर चुका है.
UNHCR and partners are committed to staying and delivering assistance and support to the Afghan people, so long as it is safe to do so.Now more than ever, the international community must stand together in solidarity. pic.twitter.com/A9nuO72hGb
Refugees
लेकिन प्रवक्ता ने आगाह करते हुए ये भी कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में ज़रूरमन्द लोगों की मदद करने के लिये, लगभग एक अरब 30 करोड़ डॉलर की रक़म जुटाने की जो राहत अपील जारी की गई थी, उसकी पुकार में, अभी पूरी रक़म नहीं मिली है और अब तालेबान के नियंत्रण वाले देश में, आपूर्ति की भी क़िल्लत है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी आगाह किया है कि सोमवार को, हवाई यातायात के ज़रिये, लगभग साढ़े 12 मैट्रिक टन चिकित्सा सामान की आपूर्ति की गई जोकि लगभग दो लाख लोगों की बुनियादी स्वास्थ्य ज़रूरतें पूरी करने के लिये काफ़ी होगी. मगर फिर भी ये चिकित्सा सामग्री ज़रूरत के मुक़ाबले बहुत कम है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी की प्रवक्ता डॉक्टर मार्गरेट हैरिस ने कहा है कि बुनियादी सेवाएँ जारी रखने के लिये, विमान उड़ानें लगातार चलाए जाने की ज़रूरत है.
उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि अफ़ग़ानिस्तान पर तालेबान का नियंत्रण होने से पहले, क़रीब एक करोड़ 22 लाख लोगों को, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के शिकार बताया गया था, इसलिये देश में ज़रूरी सामान पहुँचाया जाना बहुत अहम और ज़रूरी है.
संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी मामलों की एजेंसी (UNHCR) ने भी जिनीवा में पत्रकारों से बातचीत में, अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी देशों से वो पुकार फिर दोहराई कि वो देश से सुरक्षा की ख़ातिर भागने वाले लोगों के लिये अपनी सीमाएँ खुली रखें.
एजेंसी के प्रवक्ता एण्ड्रेज़ महेकिक ने कहा कि देश के भीतर ही लगभग 35 लाख लोग विस्थापित हैं और उनमें से बहुत से लोग, पाकिस्तान या ईरान में दाख़िल होना चाहते हैं, मगर उनके पास ज़रूरी दस्तावेज़ों की कमी हो सकती है.
उन्होंने बताया कि पाकिस्तान में दाख़िल होने वाले बहुत से अफ़ग़ान लोगों ने, अभी अपनी ये मंशा ज़ाहिर नहीं की है कि क्या वो वहाँ शरण या पनाह हासिल करना चाहते हैं. इसके बावजूद उनके सामने अन्तरराष्ट्रीय संरक्षण वाली ज़रूरतें हैं और वो पासपोर्ट और वीज़ा के बिना, सीमा पार नहीं कर पाएंगे.
प्रवक्ता ने कहा, “इसलिये, हम अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी देशों से आग्रह करते हैं कि वो अपनी सीमाएँ खुली रखें और जो लोग ख़तरों से बचकर सुरक्षा की तलाश में हैं, उन्हें दाख़िल होने की इजाज़त दें.”
यूएन शरणार्थी एजेंसी के प्रवक्ता ने, कई दशकों तक, अफ़ग़ान शरणार्थियों को अपने यहाँ पनाह देने के लिये, पाकिस्तान की सराहना की. ध्यान रहे कि पाकिस्तान में लगभग 14 लाख अफ़ग़ान शरणार्थी मौजूद हैं.
प्रवक्ता ने कहा कि एजेंसी ये भली-भाँति समझती है कि इतनी बड़ी संख्या में शरणार्थियों को ठिकाना मुहैया कराने के कारण पेश आने वाला दबाव कितना बड़ा है, इसलिये एजेंसी, मानवीय सहायता ज़रूरतें पूरी करने के प्रयास बढ़ाने में, देश की सरकार की मदद करने को हमेशा तैयार है.
15 अगस्त को, देश में तालेबान का नियंत्रण स्थापित होने के बाद से, देश के नागरिकों के मानवाधिकार हनन मामलों की चिन्ताजनक ख़बरें मिली हैं जिनके मद्देनज़र, तमाम लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान किये जाने की पुकारें लगाई गई हैं, जिनमें लड़के और लड़कियों के मानवाधिकार भी शामिल हैं.
अफ़ग़ानिस्तान की लगभग 45 प्रतिशत आबादी 15 वर्ष से कम उम्र की है, इस तथ्य के मद्देनज़र, संयुक्त राष्ट्र की दो वरिष्ठ मानवाधिकार विशेषज्ञों ने, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया है कि देश के बच्चों के बेसहारा नहीं छोड़ दिया जाए.
सशस्त्र संघर्षों में फँसे बच्चों के अधिकारों पर, विशेष प्रतिनिधि वर्जीनिया गाम्बा और बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा के मामलों पर विशेष प्रतिनिधि नजत माआला माजिद ने कहा है, “अफ़ग़ानिस्तान में, बच्चों को नुक़सान से बचाने और उनकी आवाज़ों व ज़रूरतों पर ध्यान देना, अफ़ग़ानिस्तान में टिकाऊ शान्ति और विकास के लिये बहुत अहम है.”
इन दोनों मानवाधिकार विशेषज्ञों ने लड़कियों के अधिकारों के बारे में विशेष रूप से चिन्ता व्यक्त की है, जिसमें यौन और लिंग आधारित हिंसा और शिक्षा प्राप्ति के अधिकार शामिल हैं.
उन्होंने तालेबान से ये भी आग्रह किया है कि वो मानवीय सहायता सामग्री और उसकी आपूर्ति करने वाले कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करें, व उनके अधिकारों का सम्मान करें.
ज़मीन पर मौजूद यूएन कर्मचारियों के अनुसार, देश भर में लगभग एक करोड़ बच्चों को, जीवित रहने के लिये मानवीय सहायता की ज़रूरत है.
उनका कहना है, “अफ़ग़ानिस्तान के बच्चे, पहले ही बहुत तकलीफ़ें सहन कर चुके हैं.”