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ज़हरीली लपटों से वातावरण पर दुष्प्रभाव - फ़सल अवशेष जलाने की महंगी क़ीमत 

भारत के पंजाब राज्य में एक किसान फ़सल के अवशेष जलाने की तैयारी कर रहा है.
© CIAT/Neil Palmer
भारत के पंजाब राज्य में एक किसान फ़सल के अवशेष जलाने की तैयारी कर रहा है.

ज़हरीली लपटों से वातावरण पर दुष्प्रभाव - फ़सल अवशेष जलाने की महंगी क़ीमत 

जलवायु और पर्यावरण

पतझड़ का मौसम आने वाला है, और अनेक देशों में फ़सल की कटाई के बाद पराली (फ़सल अवशेष) जलाने का समय भी नज़दीक आ रहा है. किसानों द्वारा नई फ़सल की तैयारी के लिये अपनाए जाने वाले इन तरीक़ों से वायु प्रदूषण की समस्या और भी ज़्यादा गम्भीर रूप धारण कर लेती है.

विश्व के अनेक देशों में लोगों को हर साल शहरी वातावरण में, कोहरे व धुँए की मोटी चादर (स्मॉग/Smog) फैल जाने की समस्या का सामना करना पड़ता है. 

किसान, पिछली फ़सल के कृषि अपशिष्ट को जला कर, नई फ़सल के लिये तैयारी करते हैं, मगर यह वातावरण में ज़हरीले धुँए के फैलाव का भी कारण बन जाता है. 

कृषि योग्य भूमि में व्यापक पैमाने पर पराली जलाए जाने से वायु प्रदूषण की समस्या गम्भीर रूप धारण करती है. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि वायु प्रदूषण के कारण हर वर्ष 70 लाख लोगों की मौत होती है, जिनमें साढ़े छह लाख बच्चे हैं.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की मेज़बानी में संचालित जलवायु व स्वच्छ वायु गठबन्धन सचिवालय की प्रमुख हेलेना मॉलिन वाल्डेस ने बताया, “हम जिस हवा में साँस लेते हैं, उसकी गुणवत्ता को बेहतर बनाना हमारे स्वास्थ्य व कल्याण के लिये परम आवश्यक है.” 

“यह खाद्य सुरक्षा, जलवायु कार्रवाई, ज़िम्मेदार उत्पादन और खपत के लिये भी अहम है, और समानता की बुनियाद है.”

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वायु गुणवत्ता के प्रति गम्भीर हुए बिना, टिकाऊ विकास के लिये 2030 एजेण्डा पर बात नहीं की जा सकती है.

मंगोलिया में प्रदूषण का स्तर बहुत ज़्यादा है. स्कूल बस का इन्तज़ार करता एक बच्चा.
UNICEF/Mungunkhishig Batbaatar
मंगोलिया में प्रदूषण का स्तर बहुत ज़्यादा है. स्कूल बस का इन्तज़ार करता एक बच्चा.

काला कार्बन

बहुत से किसानों का मानना है कि फ़सल के अवशेषों को जलाना, भूमि को साफ़ करने, मिट्टी को उर्वर बनाने और अगली फ़सल की तैयारी करने का सबसे कारगर व किफ़ायती तरीक़ा है. 

मगर, इन लपटों और उसकी वजह से जंगलों में फैलने वाली आग, दुनिया में काले कार्बन (Black carbon) के फैलाव का सबसे बड़ा कारण है, जो कि मानव व पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिये ख़तरा है. 

ब्लैक कार्बन PM2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) का एक घटक है, जो कि बेहद महीन प्रदूषक होते हैं और फेफड़ों व रक्तप्रवाह में गहराई तक उतर जाते हैं. 

PM2.5 की वजह से हृदय और फेफड़ों की बीमारी, स्ट्रोक व कुछ प्रकार के कैंसर से मौत होने का जोखिम बढ़ जाता है. इन कारणों से हर वर्ष लाखों लोगों की असमय मौत हो जाती है. 

बच्चों में PM2.5 की वजह से मनोवैज्ञानिक और व्यवहार सम्बन्धी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं. बुज़ुर्गों में इसे आमतौर पर अल्ज़ाइमर्स, पार्किन्सन बीमारी और डिमेन्शिया (मनोभ्रंश) से भी जोड़ कर देखा जाता है. 

बताया गया है कि वायु प्रदूषण के कारण श्वसन तंत्र पर भी बुरा असर पड़ता है, जिससे कोविड-19 महामारी का जोखिम भी बढ़ जाता है.

ब्लैक कार्बन को अल्प-अवधि का जलवायु प्रदूषण भी माना जाता है. 

इसका अस्तित्व कुछ ही दिन और हफ़्ते के लिये ही होता है, मगर, वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी पर इसका असर कार्बन डाइऑक्साइ की तुलना में 460 से 1,500 गुना अधिक होता है. 

बैंकाक में, चाओ फ्राया नदी पर, छिपते सूरज की रौशनी में, प्रदूषण की परत दिख रही है.
Unsplash/Peggy Anke
बैंकाक में, चाओ फ्राया नदी पर, छिपते सूरज की रौशनी में, प्रदूषण की परत दिख रही है.

बेहतर विकल्प

विशेषज्ञों का मानना है कि फ़सल अवशेष जलाने से, मिट्टी की उर्वरता और जल को सोखे रखने की उसकी क्षमता, 25 से 30 फ़ीसदी तक कम हो जाती है.

इसकी पूर्ति के लिये किसानों को महंगे उर्वरकों और सिंचाई प्रणाली में धन निवेश करना पड़ता है.

ब्लैक कार्बन से बारिश के रुझानों पर भी असर पड़ता है, विशेष रूप से एशिया में मॉनसून पर, और कृषि को सहारा देने के लिये ज़रूरी मौसमी घटनाओं में व्यवधान आता है.

'International Cryosphere Climate Initiative' नामक एक पहल के निदेशक पैम पीटरसन ने बताया कि जली हुई भूमि की उर्वरता कम व क्षरण की दर अधिक होती है और किसानों को इसकी पूर्ति उर्वरकों के ज़्यादा इस्तेमाल के ज़रिये करनी पड़ती है.

इस पहल के ज़रिये दुनिया भर में किसानों को आग-मुक्त फ़सल उत्पादन के तौर-तरीक़े अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है.

आग लगाने के बजाय अन्य विकल्पों के इस्तेमाल, जैसे कि अवशेषों को फिर से खेतों में इस्तेमाल करना, या फिर फ़सल अवशेष के ज़रिये ही नई बुआई करने से किसान अपनी बचत कर सकते हैं. 

उन्होंने बताया कि फ़सल के अवशषों को जलाने की लम्बे समय से जारी आदतों में बदलाव के लिये शिक्षा, जागरूकता प्रसार और किसानों में क्षमता निर्माण पर ध्यान दिया जाना होगा.

उन्होंने माना कि यह एक महत्वाकांक्षी उपक्रम है, मगर इसके दूरगाभी लाभ होंगे. ब्लैक कार्बन की वजह से हिमालय क्षेत्र में बर्फ़ और हिमनद के पिघलने की रफ़्तार तेज़ होती है. 

भारत की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक स्तर पर पहुँच जाता है.
UN News/Anshu Sharma
भारत की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक स्तर पर पहुँच जाता है.

इसके मद्देनज़र, उत्तरी भारत में खेतों के कारण होने वाले वायु प्रदूषण में कमी लाकर, बाढ़ व सूखे के ख़तरों को कम किया जा सकता है.

यह उन लोगों के लिये जीवन को बदल कर रख देने वाला एक परिवर्तन होगा, जो कि इन पर्वतों व उनसे निकलने वाली नदियों पर निर्भर हैं.

विश्वव्यापी प्रयास

जलवायु एवं स्वच्छ वायु गठबन्धन, देशों व क्षेत्रीय नैटवर्कों के साथ मिलकर पराली जलाए जाने के विकल्पों को बढ़ावा देने के लिये प्रयासरत है.

उदाहरणस्वरूप, भारत में, किसानों को फ़सल अवशेष जलाने के विकल्पों के सम्बन्ध में जानकारी व सहायता प्रदान की जाती है.

इस सिलसिले में, आग व उसके प्रभावों की निगरानी, सैटेलाइट से की जाती है, नीति-सम्बन्धी सहायता कार्यक्रमों को समर्थन दिया जाता है, किसानों को छूट जाती है और कृषि कचरे को संसाधन में तब्दील किया जाता है.

भारत के पंजाब राज्य में यह गठबन्धन, खाद्य एवं कृषि संगठन (UNFAO) के साथ मिलकर, फ़सल अवशेषों को नवीकरणीय ईंधन स्रोत में बदलने के तरीक़ों की पड़ताल कर रहा है.

इस प्रकार के कचरों के लिये एक चक्रीय अर्थव्यवस्था (circular economy) बनाकर, किसानों के लिये अपनी आय बढ़ा पाना और वायु प्रदूषण में कमी लाना सम्भव है.

यह पहले यहाँ प्रकाशित हो चुके लेख का सम्पादित व संक्षिप्त रूप है.