यूनीसेफ़ - जलवायु परिवर्तन है बाल अधिकारों का भी संकट
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि मध्य अफ़्रीका गणराज्य, चाड, नाइजीरिया, गिनी और गिनी-बिसाउ सहित 33 देशों में बच्चों पर जलवायु परिवर्तन से व्यापक रूप से प्रभावित होने का ख़तरा मंडरा रहा है.
यूनीसेफ़ की नई रिपोर्ट, ‘The Climate Crisis Is a Child Rights Crisis: Introducing the Children’s Climate Risk Index’ में जलवायु संकट को बाल अधिकारों का संकट क़रार दिया गया है.
बच्चों के लिये स्वास्थ्य, शिक्षा, संरक्षण सहित अत्यावश्यक सेवाओं पर असर के साथ साथ, उनके जानलेवा बीमारियों की चपेट में आने का भी जोखिम है.
The climate crisis is a child rights crisis.Around 1 billion children live in countries that are at extremely high-risk to the effects of the climate emergency, according to @UNICEF.The time for #ClimateAction is now.Inaction is not an option. https://t.co/bQnjiVRzOL
antonioguterres
यह पहली बार है जब किसी रिपोर्ट में बच्चों के परिप्रेक्ष्य से जलवायु जोखिम का विस्तृत विश्लेषण किया गया है.
इस रिपोर्ट में, जलवायु व चक्रवाती तूफ़ान व ताप लहरें जैसे पर्यावरणीय जोखिमों से बच्चों पर होने वाले असर और उनके लिये अत्यावश्यक सेवाओं की उपलब्धता के आधार पर देशों की सूची बनाई गई है.
यह रिपोर्ट ‘Fridays for Future’ नामक आन्दोलन के साथ मिलकर, वैश्विक जलवायु हड़ताल मुहिम की तीसरी वर्षगाँठ पर पेश की गई है, जिसे युवाओं के नेतृत्व में शुरू किया गया था.
रिपोर्ट बताती है कि क़रीब एक अरब बच्चे, अत्यधिक उच्च जोखिम वाले 33 देशों में रहते हैं.
यह विश्व में बच्चों की कुल आबादी (दो अरब 20 करोड़) की लगभग आधी संख्या है.
इन बच्चों पर विविध प्रकार के जलवायु व पर्यावरणीय झटकों का शिकार होने और जल, स्वच्छता, स्वास्थ्य देखभाल व शिक्षा जैसी अति-आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता पर ख़तरा है.
कार्रवाई का आहवान
यूएन एजेंसी की कार्यकारी निदेशक हैनरीएटा फ़ोर ने आगाह किया कि जलवायु व पर्यावरणीय जोखिमों से बच्चों के अधिकारों के लिये संकट बढ़ रहा है.
स्वच्छ वायु, भोजन की सुलभता से लेकर शिक्षा, आवास और शोषण से मुक्ति तक, यहाँ तक कि उनके जीवित रहने के अधिकार पर भी.
“तीन वर्षों तक, बच्चों ने दुनिया भर में अपनी आवाज़ बुलन्द करते हुए कार्रवाई की मांग की है.”
“यूनीसेफ़ इस बदलाव के लिये एक निर्विवाद सन्देश के साथ उनकी पुकार का समर्थन करता है – जलवायु संकट, बाल अधिकारों का भी एक संकट है.”
जलवायु जोखिम इण्डेक्स के कुछ अहम निष्कर्ष:
- 24 करोड़ बच्चों पर तटीय बाढ़ का शिकार होने का जोखिम.
- 40 करोड़ बच्चों पर चक्रवाती तूफ़ानों की चपेट में आने का जोखिम.
- 81 करोड़ से अधिक बच्चों पर सीसा प्रदूषण का जोखिम.
- 92 करोड़ बच्चों पर जल की क़िल्लत से प्रभावित होने का ख़तरा.
- 82 करोड़ बच्चों पर ताप लहरों की चपेट में आने को जोखिम.
रिपोर्ट बताती है कि 85 करोड़ बच्चे – यानि हर तीन में से एक – ऐसे इलाक़ों में रहते हैं जहाँ कम से कम चार जलवायु व पर्यावरणीय ख़तरे मौजूद हैं.
रिपोर्ट स्पष्ट करती हैं कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार देशों और उसके प्रभावों का सामना करने वाले देशों में रहने वाले बच्चों में कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है.
जलवायु दुष्प्रभावों के उच्च जोखिम का सामना कर रहे 33 देश, महज़ 9 फ़ीसदी वैश्विक CO2 उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं.
सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार 10 देशों में से महज़ एक ही, उच्च जोखिम वाले देशों की सूची में शामिल है.
यूनीसेफ़ ने इस चुनौती से निपटने के लिये देशों की सरकारों, व्यवसायों व सम्बद्ध पक्षों से निम्न उपायों की पुकार लगाई है:
- बच्चों के लिये अहम सेवाओं में जलवायु अनुकूलन व कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिये निवेश में बढ़ोत्तरी.
- जलवायु संकट के सबसे ख़राब प्रभावों की रोकथाम के लिये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती .
- अनूकूलन व जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने की तैयारी के लिये जलवायु शिक्षा व ज़रूरी कौशल विकास पर बल.
- सभी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व अन्तरराष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं व निर्णयों में युवाओं की भागीदारी.
- कोविड-19 महामारी से उबरने की प्रक्रिया के दौरान हरित, निम्न-कार्बन व समावेशी पुनर्बहाली पर ज़ोर.