अफ़ग़ानिस्तान: दो वर्षों में साढ़े पाँच हज़ार से ज़्यादा बच्चे हुए हताहत

'बच्चे और सशस्त्र संघर्ष' के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि अफ़ग़ानिस्तान में पिछले दो वर्षों के दौरान, हज़ारों लड़के-लड़कियाँ हताहत हुए हैं. यह रिपोर्ट सोमवार को ऐसे समय में जारी की गई है जब एक ही दिन पहले तालेबान ने देश में फिर से अपना प्रभुत्व स्थापित किया है.
रिपोर्ट के मुताबिक़ जनवरी 2019 से दिसम्बर 2020 की अवधि तक, पाँच हज़ार 770 बच्चों की या तो मौत हुई या फिर वे अपंग हो गए.
इस वर्ष के पहले छह महीनों में, बाल हताहतों का आँकड़ा अपने सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गया - रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि में हर तीन हताहतों में एक बच्चा है.
The 5th report of UN Secretary-General on Children & Armed Conflict in #Afghanistan is released against a backdrop of collapsing security, political situation in which hundreds of children have been killed or maimed in recent weeks➡️https://t.co/RAXy7j4sVu#ACTtoProtect #CAAC pic.twitter.com/DNqibjVKiL
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अफ़ग़ानिस्तान में बदहाल राजनैतिक व सुरक्षा हालात के बीच पिछले कुछ हफ़्तों में सैकड़ों इनसानों की मौत हुई है.
'बच्चे और सशस्त्र संघर्ष' के मुद्दे पर यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि, वर्जीनिया गाम्बा ने क्षोभ ज़ाहिर करते हुए कहा कि अफ़ग़ानिस्तान बच्चों के लिये सबसे ख़तरनाक स्थानों में है.
“पहले से ही नाटकीय हालात तेज़ी से बदल रहे हैं और मानवाधिकार हनन की चिन्ताजनक ख़बरें लगातार बढ़ रही हैं.”
“मैं सभी दुर्व्यवहारों को रोकने की अपील करती हूँ और तालेबान व अन्य पक्षों से अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून व अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के तहत दायित्वों के पालन करने का आग्रह करती हूँ.”
उन्होंने कहा कि इसके साथ-साथ राष्ट्रीय संकल्प भी निभाए जाने होंगे और सभी व्यक्तियों के जीवन व अधिकारों की रक्षा करनी होगी, जिनमें महिलाएँ व लड़कियाँ भी हैं.
बताया गया है कि 46 प्रतिशत घटनाओं के लिये सशस्त्र गुट, मुख्य रूप से तालेबान ज़िम्मेदार है, जबकि सरकारी सुरक्षा बलों व सरकार का समर्थन करने वाले गुटों को 35 प्रतिशत घटनाओं के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया है.
अन्य घटनाएँ बारूदी सुरंगों व युद्ध में इस्तेमाल किये जाने वाले अन्य विस्फोटकों के कारण हुई हैं.
संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि ने सभी पक्षों से बच्चों के जीवन की रक्षा करने के लिये ज़रूरी कार्रवाई किये जाने की पुकार लगाई है और उनके संरक्षण को प्राथमिकता देने की बात कही है.
उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा है कि लड़ाई के दौरान स्कूलों व अस्पतालों की रक्षा की जानी होगी. वर्जीनिया गाम्बा ने आगाह किया कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो इसका नुक़सान भावी पीढ़ियों को प्रभावित करेगा.
उनके अनुसार, हताहतों का आँकड़ा पहले की तुलना में, चिन्ताजनक स्तर पर है और तालेबान बच्चों के विरुद्ध हिंसा के लिये मुख्य रूप से ज़िम्मेदार है.
इन हालात में बच्चों, विशेषकर लड़कियों के भविष्य पर चिन्ता जताई गई है.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ बच्चों के अधिकारों के हनन के छह हज़ार 470 गम्भीर मामले दर्ज किये गए हैं – इनमें से लगभग आधे मामलों के लिये तालेबान ज़िम्मेदार बताया गया है.
स्कूलों व अस्पतालों पर हमलों की 297 घटनाओं की पुष्टि की गई है. स्कूलों पर होने वाले हमलों में कुछ कमी होने के बावजूद, अस्पतालों व सुरक्षा प्राप्त स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले बढ़े हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 महामारी के दौरान नाज़ुक अफ़ग़ान स्वास्थ्य प्रणाली और चुनौतियों के मद्देनज़र ये हमले, क्षोभ का विषय हैं.
इस बीच, तालेबान द्वारा लड़कियों के स्कूलों को जानबूझकर निशाना बनाए जाने पर ख़ास तौर पर चिन्ता ज़ाहिर की गई है.
यूएन प्रतिनिधि ने तालेबान और अन्य युद्धरत पक्षों से मानवाधिकारों का सम्मान करने का आहवान किया है, और लड़कियों के लिये शिक्षा का अधिकार भी सुनिश्चित किया जाना होगा.
रिपोर्ट के मुताबिक़, युद्धरत पक्षों ने लड़ाई में 260 बच्चों को भी लड़ाकों के तौर पर भर्ती किया है – इनमें अधिकांश तालेबान द्वारा किये गए हैं.
इस क्रम में, उन्होंने सभी पक्षों, विशेष रूप से तालेबान, बाल सैनिकों की भर्ती, इस्तेमाल व उन्हें अगवा किये जाने पर रोक लगाने का आग्रह किया है.
साथ ही ध्यान दिलाया है कि स्कूलों, अस्पतालों व बच्चों की रक्षा के ठोस उपाय करते हुए, अधिकार हनन के मामलों और बच्चों के हताहत होने की घटनाओं को रोका जाना होगा.