जलवायु कार्रवाई में आदिवासी समुदायों की भागीदारी को प्रोत्साहन

हर वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाने वाला ‘विश्व के आदिवासी लोगों के लिये अन्तरराष्ट्रीय दिवस’, जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से मुक़ाबला करने की कार्रवाई में इन समुदायों के महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित किये जाने का भी एक अवसर है.
आदिवासी लोग वैश्विक आबादी का क़रीब छह फ़ीसदी हैं और उनका दीर्घकाल से प्रकृति के साथ समरसतापूर्ण सम्बन्ध रहा है.
विश्व की 80 फ़ीसदी जैवविविधता के संरक्षण में, उनकी अहम भूमिका है और जलवायु संकट के अनेक समाधान उनके पास मौजूद हैं.
जलवायु परिवर्तन मामलों पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था (UNFCCC) की कार्यकारी सचिव पैट्रीशिया ऐस्पिनोसा का कहना है कि आदिवासी लोगों को जलवायु परिवर्तन की चुनौती के समाधान का हिस्सा बनाना होगा.
“ऐसा इसलिये, चूँकि उनके पास अपने पूर्वजो का पारम्परिक ज्ञान है. उस ज्ञान की अहमियत को ना कमतर आँका जा सकता है और ना ही आँका जाना होगा.”
बताया गया है कि पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य हासिल करने, जलवायु सहनक्षता को मज़बूती देने और वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये, आदिवासी समुदायों के अधिकारों का सम्मान और जलवायु नीतियों में उनकी भागीदारी बढ़ाई जानी होगी.
इसके मद्देनज़र, पेरिस में वर्ष 2015 में जलवायु सम्मेलन के दौरान स्थानीय समुदायों और आदिवासी लोगों के लिये एक प्लैटफ़ॉर्म (Local Communities and Indigenous Peoples Platform / LCIPP) स्थापित किया गया था.
इस पहल की मदद से, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रियाओं में आदिवासी लोगों की आवाज़ों को ज़्यादा असरदार ढंग से शामिल किये जाने के प्रयास किये गए.
LCIPP के एक कार्यसमूह की सह-प्रमुख हिण्डाउ ओमारू इब्राहिम ने बताया, “पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये, आदिवासी लोगों की अर्थपूर्ण भागीदारी का अर्थ है, साथ मिलकर निर्णय लेना.”
“हमें राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय जलवायु नीतियों के विकास में बराबर के साझीदार बनना होगा.”
यूएन के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान, LCIPP ने इस वर्ष मई-जून में राष्ट्रीय जलवायु नीतियों में आदिवासियों की भागीदारी के मुद्दे पर एक कार्यक्रम आयोजित किया.
इस कार्यक्रम में अफ़्रीकी क्षेत्र का एक उदाहरण प्रस्तुत किया गया, जिसमें चाड, बुरकिना फ़ासो, बेनन और निजेर में आदिवासी समुदायों को स्थानीय सरकारों के साथ कार्य करने का अवसर मिला.
इसके तहत राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई संकल्पों जैसे, महत्वपूर्ण जलवायु नीति दस्तावेज़ विकसित करने में आदिवासी समुदायों ने भी योगदान किया.
इस प्रक्रिया में आदिवासी लोगों के लिये अफ़्रीका समन्वय समिति के (IPACC) का भी सहयोग मिला, जो कि आदिवासी समुदायों के लिये दुनिया में सबसे बड़ा संगठन है.
यह 21 अफ़्रीकी देशों में आदिवासी लोगों के 135 संगठनों का एक नैटवर्क है.
एक अन्य उदाहरण भी साझा किया गया जो दर्शाता है कि किस तरह, उत्तरी लैपलैण्ड के आदिवासी सामी लोगों ने फ़िनलैण्ड की सरकार के साथ मिलकर देश के जलवायु परिवर्तन क़ानून में अपने संरक्षण व अधिकार सुनिश्चित किये.
साथ ही, उन्होंने फ़िनलैण्ड की मध्यकालिक जलवायु कार्रवाई योजना तैयार करने में भी सहयोग दिया है.
कार्यक्रम के दौरान पेश सर्वोत्तम उपायों पर जल्द ही, एक सारांश दस्तावेज़ प्रकाशित किया जाएगा.
इसका उद्देश्य, ग्लासगो में इस वर्ष नवम्बर में होने वाले जलवायु सम्मेलन (कॉप-26) से पहले, जलवायु कार्रवाई में आदिवासी लोगों व स्थानीय समुदायों की भागीदारी बढ़ाने के लिये प्रयासों की गति बढ़ाना है.
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