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नागासाकी: परमाणु निरस्त्रीकरण आवाज़ों के लिये यूएन का पूर्ण समर्थन

जापान के नागासाकी शान्ति पार्क में, हाइपोसेण्टर स्मारक (यूएन फ़ोटो)
UN /Eskinder Debebe
जापान के नागासाकी शान्ति पार्क में, हाइपोसेण्टर स्मारक (यूएन फ़ोटो)

नागासाकी: परमाणु निरस्त्रीकरण आवाज़ों के लिये यूएन का पूर्ण समर्थन

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने, 76 वर्ष पहले, 9 अगस्त को, जापान के नागासाकी शहर पर किये गए परमाणु हमले में जीवित बचे लोगों के शक्तिशाली अनुभवों और हौसले वाली आपबीतियों के प्रति फिर से अपना पूर्ण समर्थन व्यक्त व पुष्ट किया है. इन जीवित बचे लोगों द्वारा चलाई गई मुहिम की बदौलत ही, परमाणु शस्त्रों के ख़िलाफ़ ताक़तवर वैश्विक आन्दोलन चलाने में ठोस मदद मिली है.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने नागासाकी परमाणु बम हमले की वर्षगाँठ के अवसर पर, नागासाकी शान्ति स्मारक को दिये अपने सन्देश में कहा कि वो ‘हिबाकूशा’ की स्वार्थहीन गतिविधियों से बहुत प्रभावित और विनम्र महसूस करते हैं.

हिबाकूशा, अगस्त 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु बम हमलों में जीवित बचे लोगों द्वारा गठित संगठन व आन्दोलन का नाम है.

यूएन प्रमुख का ये सन्देश, उनकी तरफ़ से, निरस्त्रीकरण मामलों के लिये संयुक्त राष्ट्र की उच्च प्रतिनिधि इज़ूमी नाकामीत्सू ने पेश किया. 

सन्देश में उन्होंने कहा है, “एक बहुत विशाल और दर्दनाक मानव त्रासदी में, आपका साहस, मानवता के लिये आशा की एक मशाल है.”

“हम ये सुनिश्चित करने के लिये, संयुक्त राष्ट्र के पूर्ण समर्थन की पुष्टि करते हैं कि दुनिया के लोग, आपकी आवाज़ सुनें, विशेष रूप से युवा पीढ़ी के लोग.”

राख के ढेर से...

यूएन प्रमुख ने नागासाकी शहर के लोगों से कहा है कि उन्होंने राख के ढेर से, एक सांस्कृतिक नगर का निर्माण किया है. 

ध्यान रहे कि अगस्त 1945 को, अमेरिका द्वारा किये गए परमाणु बम हमलों में, हिरोशिमा और नागासाकी शहर राख के ढेर में तब्दील हो गए थे. ये परमाणु बम हमले, द्वितीय विश्व युद्ध के अन्तिम दिनों के दौरान किये गए थे.

यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने प्रभावित जीवितों को सन्देश में कहा, “आपके गतिवान शहर में आधुनिकता और प्रगति की झलक नज़र आती है, जबकि आप, किसी अन्य शहर को, इसी तरह की त्रासदी व विनाश का सामना करने से बचाने के लिये, अथक काम व प्रयास भी कर रहे हैं.”

लेकिन उन्होंने साथ ही आगाह करते हुए ये भी कहा कि एक अन्य परमाणु हथियार का प्रयोग होने की आशंकाएँ इस समय उतनी ही ख़तरनाक हद तक सम्भव नज़र आती हैं, जितनी, अमेरिका और सोवियत संघ के बीच, शीत युद्ध की चरम सीमा के दौरान थीं.

यूएन महासचिव ने कहा, “देशों के बीच, और भी ज़्यादा शक्तिशाली शस्त्र बनाने और उनके इस्तेमाल की सम्भावनाओं का दायरा बढ़ाने की होड़ लगी हुई है. युद्ध के समय जैसी नारेबाज़ियों और भड़काऊ बयानबाज़ी की आवाज़ बहुत ऊँची है, जबकि बातचीत की आवाज़ ख़ामोश है.”

आशा के आधार

उन्होंने कहा कि इन चिन्ताजनक परिस्थितियों के बावजूद, इस वर्ष हुए दो धटनाक्रमों में, उम्मीद के लिये ज़मीन नज़र आती है, जोकि अमेरिका और रूस की तरफ़ से सामने आए हैं. 

वो हैं कि परमाणु युद्ध में किसी की भी जीत नहीं हो सकती और ये युद्ध कभी होने ही नहीं चाहिये. साथ ही, शस्त्र नियंत्रण बातचीत में शामिल होने के लिये संकल्प भी नज़र आए हैं.

दूसरा सकारात्मक घटनाक्रम ये हुआ है कि परमाणु शस्त्र निषेध सन्धि, अब लागू हो गई है, जिसमें, परमाणु हथियारों द्वारा प्रस्तुत ख़तरों व जोखिमों के बारे में, देशों के वाजिब और जायज़ डर नज़र आते हैं.

यूएन प्रमुख ने कहा कि परमाणु अप्रसार सन्धि से सम्बद्ध पक्षों को आगामी दसवें समीक्षा सम्मेलन के दौरान, परमाणु शस्त्रों के ख़िलाफ़ नियमों की फिर से पुष्टि करनी होगी और परिणाणु हथियार उन्मूलन के लिये ठोस क़दम उठाने होंगे.

उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों की ये ज़िम्मेदारी है कि वो परमाणु हथियारों के उन्मूलन के लिये इच्छा व्यक्त करने के साथ-साथ ठोस कार्रवाई भी करें. और हम सभी को एक साथ मिलकर, एक अन्य नागासाकी जैसी परमाणु त्रासदी होने से रोकनी होगी.