म्याँमार: सैन्य तख़्तापलट के छह महीने बाद भी, मानवीय स्थिति बदतर हो रही है

म्याँमार में सेना द्वारा इस वर्ष एक फ़रवरी को तख़्तापलट करके सत्ता हथियाए जाने को, छह महीने का समय हो गया है, जिस दौरान गहराते राजनैतिक, मानवाधिकार और मानवीय संकट के बढ़ते प्रभाव पर गहरी चिन्ताएँ भी व्यक्त की गई हैं जिनके कारण देश के लोगों का जीवन व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है.
म्याँमार में संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष सहायता अधिकारी, कार्यवाहक मानवीय सहायता व रैज़िडैण्ट कॉर्डिनेटर (आरसी) रामनाथन बालाकृष्णन ने यूएन न्यूज़ के साथ ख़ास इण्टरव्यू में ये बात कही है.
#Myanmar humanitarian update:▶️Over 220,000 people displaced by conflicts & insecurity since 1 February. ▶️Thousands more impacted by recent floods. ▶️Humanitarian response is ongoing, but constrained due to access challenges & lack of funds.More: https://t.co/QAnvlV5zS2 pic.twitter.com/Aka4ZMcJVO
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उन्होंने विस्तार से बताया कि सेना द्वारा सत्ता हथियाए जाने के बाद, किस तरह देश भर में, लोग गम्भीर रूप से प्रभावित हुए हैं.
उन्होंने कहा, “देश में स्थिति को अब अस्थिरता और बिगड़ती सामाजिक-आर्थिक व ख़राब होते सुरक्षा हालात के रूप में परिभाषित किया जा रहा है. इस स्थिति के कारण, देश में कोविड-19 संक्रमण की भीषण तीसरी लहर नज़र आ रही है.”
देश में संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारी ने, अनेक नस्लीय अल्पसंख्यकों के बहुमत वाले प्रान्तों में, देश की सैन्य सत्ता के विरोध में जारी सशस्त्र प्रतिरोध को रेखांकित करते हुए कहा कि अभी तक 2 लाख से भी ज़्यादा लोगों को अपने घर छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ा है. इनमें शान, चिन और काचिन प्रान्त शामिल हैं.
रामनाथन बालाकृष्णन ने कहा कि सैन्य तख़्तापलट से पहले, राख़ीन प्रान्त में संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायता कार्यक्रम के तहत, लगभग एक लाख लोगों तक पहुँचने का लक्ष्य था, जिनमें देश के भीतर ही विस्थापित हुए ऐसे लोग भी शामिल थे जिन्हें आपात सहायता की ज़रूरत थी, लेकिन इस संख्या में काफ़ी बढ़ोत्तरी हो गई है.
उन्होंने कहा कि सैन्य तख़्तापलट के बाद, अतिरिक्त 2 लाख लोगों की, मानवीय सहायता के तुरन्त ज़रूरतमन्दों के रूप में पहचान की गई है, और ऐसे ज़्यादातर लोग यंगून व मण्डाले के शहरी इलाक़ों में थे.
गहराते संकट और बिगड़ती सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण, हर दिन हज़ारों लोग मानवीय सहायता के दायरे में धकेले जा रहे हैं.
रामनाथन बालाकृष्णन ने भी संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ द्वारा बच्चों के ख़राब हालात पर व्यक्त की गई चिन्ता दोहराते हुए, सेना द्वारा नागरिक विरोध प्रदर्शनों पर, बड़े पैमाने पर किये जा रहे घातक बल प्रयोग की तीखी भर्त्सना की.
उन्होंने बताया कि निकट भविष्य पर नज़र डालें तो म्याँमार में, संयुक्त राष्ट्र की प्राथमिकताओं में एक ये भी है कि देश में लाखों लोग, भुखमरी के दायरे में ना धकेल दिये जाएँ.
“दैनिक जीवन में काम आने वाली उपभोक्ता वस्तुओं के दामों में काफ़ी बढ़ोत्तरी देखी गई है जो बहुत से लोगों के लिये काफ़ी ज़्यादा है... इसके कारण, बहुत से लोग सस्ती और आसानी से उपलब्ध होने वाली भोजन वस्तुएँ ख़रीदने को मजबूर हैं और परिणामस्वरूप उनकी ख़ुराकों में पोषण की मात्रा कम हो गई है.”
उन्होंने चेतावनी भरे शब्दों में कहा कि म्याँमार में, स्वास्थ्य व्यवस्था, कोरोनावायरस स्वास्थ्य संकट और चिकित्सा कर्मचारियों व सुविधाओं पर हो रहे हमलों के कारण, बहुत दबाव का सामना कर रही है. इसके साथ-साथ कुछ स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाए जाने के कारण भी, देश भर में बुनियादी सेवाएँ बाधित हुई हैं.
म्याँमार में, शीर्ष यूएन अधिकारी रामनाथन बालाकृष्णन ने, देश के लोगों के साथ एकजुटता प्रकट करते हुए ज़ोर देकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र, देश के लोगों की इच्छा का सम्मान करने के लिये संकल्पबद्ध है.
उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार हनन के मामलों पर आवाज़ उठाने और म्याँमार के लोगों तक, जीवनदायी मानवीय सहायता पहुँचाते रहने के लिये संकल्पबद्ध है.”
“साथ ही कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने के लिये भी आवश्यक सहायता मुहैया कराई जाती रहेगी.”