कोविड के दौरान, रंगहीनता की स्थिति वाले लोगों की अन्ध विश्वासी हत्याएँ बढ़ीं

संयुक्त राष्ट्र की एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ इकपॉनवोसा इरो ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के दौरान बहुत से लोग निर्धनता के गर्त में धँस रहे हैं और उन हालात के कारण, ऐल्बीनिज़्म यानि रंगविहीनता वाले लोगों की हत्याओं की संख्या में बढ़ोत्तरी देखी गई है.
उन्होंने गुरूवार को कहा कि बहुत से लोग इस अन्धविश्वास के तहत, जादू-टोने और तंत्र-मंत्र का सहारा ले रहे हैं कि रंगविहीनता वाले लोगों के शरीर के अंगों का इस्तेमाल तरल मिश्रण में करने से सौभाग्य और धन-सम्पदा की प्राप्ति होती है.
“इस भ्रामक मान्यता के कारण शिकार होने वालो में ज़्यादा संख्या बच्चों की है.”
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद ने जुलाई महीने के आरम्भ में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित करके, डायन प्रथा के आरोप लगाकर व तंत्र-मंत्र और जादू टोने का सहारा लेने के ज़रिये होने वाले मानवाधिकार उल्लंघन की निन्दा की थी.
इस प्रस्ताव में, इस मुद्दे पर अन्तरराष्ट्रीय विचार-विमर्श आयोजित किये जाने और सिफ़ारिशें पेश किये जाने का भी आहवान किया गया.
मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि वो ये देखकर सुखद रूप में चकित तो हैं कि पिछले 6 वर्षों के दौरान, अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हासिल हुई है, “मगर अभी बहुत कुछ किये जाने की ज़रूरत है.”
उन्होंने इस सिलसिले में, अफ़्रीका में रंगहीनता मुद्दे पर एक क्षेत्रीय कार्रवाई योजना और अफ़्रीका व अन्य देशों व क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ाने के उदाहरण भी पेश किये हैं, इनमें ब्राज़ील, जापान और फ़िजी जैसे देश प्रमुख हैं.
रंगहीनता पर शोध में भी दस गुना से ज़्यादा बढ़ोत्तरी हुई है और आँकड़ों व भरोसेमन्द जानकारी की बदौलत, रंगविहीनता की स्थिति वाले लोगों के स्वास्थ्य व शिक्षा के अधिकार और विकलांगता सम्बन्धी अधिकार और नस्लभेद के बारे में भी समझ बढ़ी है.
मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि रंगहीनता से प्रभावित महिलाओं और बच्चों के अधिकारों और उन्हें, हानिकारक प्रथाओं से सुरक्षित रखने की ज़रूरत के बारे में समझ में भी बढ़ोत्तरी हुई है.
“वैसे तो हम सभी ने, इस तरह की बर्बर प्रथाओं और कृत्यों के ख़िलाफ़ लड़ाई में काफ़ी प्रगति हासिल की है, आगे का रास्ता अभी बहुत लम्बा है और मुश्किलों व कठिनाइयों भरा है.”
विशेष रैपोर्टेयर, मानवाधिकार परिषद द्वारा, किन्हीं विशिष्ट देशों में मानवाधिकार स्थिति या किन्हीं विशिष्ट मुद्दों की निगरानी करने के लिये नियुक्त किये जाते हैं.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ अपनी निजी हैसियत में काम करते है, वो संयुक्त राष्ट्र के स्टाफ़ नहीं होते हैं और ना ही उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.