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'दुनिया घिरी हुई है - मानवीय सहायता अभियानों पर संकटों के तूफ़ान में'

माली, सुरक्षा और मानवीय संकट चुनौतियों से घिरा हुआ है. वहाँ संयुक्त राष्ट्र के मिशन को, दुनिया भर में सबसे ख़तरनाक हालात वाला शान्तिरक्षा मिशन समझा जाता है.
UN Photo/Marco Dormino
माली, सुरक्षा और मानवीय संकट चुनौतियों से घिरा हुआ है. वहाँ संयुक्त राष्ट्र के मिशन को, दुनिया भर में सबसे ख़तरनाक हालात वाला शान्तिरक्षा मिशन समझा जाता है.

'दुनिया घिरी हुई है - मानवीय सहायता अभियानों पर संकटों के तूफ़ान में'

मानवीय सहायता

संयुक्त राष्ट्र की उप प्रमुख आमिना जे मोहम्मद ने शुक्रवार को सुरक्षा परिषद में कहा है कि दुनिया भर में रक्त रंजित संघर्षों और अशान्त हालात में बहुत तेज़ी देखी गई है जिनके कारण मानवीय सहायता कार्यक्रम संकटों का सामना कर रहे हैं, और संघर्षों वाले क्षेत्रों में, आम आबादी को इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ रही है.

उन्होंने यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश की तरफ़ से सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करते हुए हालात की एक बेहद उदास और ग़मगीन तस्वीर पेश करते हुए कहा कि इथियोपिया के टीगरे क्षेत्र में आम लोगों को मौत के घाट उतारा जा रहा है, मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तारियाँ हो रही हैं, लोग बन्दी बनाए जा रहे हैं, जबरन विस्थापन हो रहा है, बच्चों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर हिंसा हो रही है.

उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, यमन में घातक और क्रूर हमलों का ज़िक्र करते हुए कहा कि लगभग दो करोड़ लोग, सीधे तौर पर भुखमरी के हालात का सामना कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “हम अभूतपूर्व रूप से कठिन हालात का सामना कर रहे हैं, जहाँ मानवीय ज़रूरतें बेतहाशा बढ़ी हैं, जैसाकि पहले कभी नहीं देखा गया.”

इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र और उसके साझीदार संगठन, क़रीब 16 करोड़ लोगों की मदद करने के लिये प्रयासरत हैं और ये संख्या अभी तक की सबसे ज़्यादा है.

नहीं थमने वाले हमले

यूएन उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद के अनुसार मानवीय संकटों का तूफ़ान, बिना रुके चलते रहने वाले हमलों के कारण और भी जटिल हो रहा है और ये हमले मानवीय सहायता और चिकित्साकर्मियों पर हो रहे हैं. ऐसा मानवीय स्थान पर और भी सीमित बाधाएँ थोपने के इरादे से हो रहा है.

सीरिया के इदलिब में, विस्थापित लोगों के लिये बनाए गए एक शिविर में, पानी भर कर ले जाते हुए दो बच्चे.
OCHA/Bilal al Hamoud
सीरिया के इदलिब में, विस्थापित लोगों के लिये बनाए गए एक शिविर में, पानी भर कर ले जाते हुए दो बच्चे.

उन्होंने मंत्रियों व राजदूतों की बैठक में कहा, “महासचिव इस परिषद से आग्रह करते हैं कि नागरिक आबादी, मानवीय सहायता व चिकित्साकर्मियों की हिफ़ाज़त के लिये जो अनगिनत प्रस्ताव पारित किये गए हैं, उनका पालन करने के लिये, ये परिषद मज़बूत व तत्काल कार्रवाई करे.”

घटनाओं में बढ़ोत्तरी

आमिना जे मोहम्मद ने कहा कि गोलीबारी, शारीरिक व यौन हमले, अपहरण व अन्य तरह के हमलों के कारण मानवीय सहायता संगठन प्रभावित हो रहे हैं, और इस तरह की घटनाओं में, वर्ष 2001 के बाद से कम से कम दस गुना बढ़ोत्तरी हुई है.

उन्होंने कहा, “जब से इस परिषद ने पाँच वर्ष पहले स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्थाओं, चिकित्सा कर्मियों और मरीज़ों पर होने वाले हमलों के लिये दण्डमुक्ति का ख़ात्मा करने वाला अहम प्रस्ताव पारित किया था, तब से इन सभी पर हज़ारों हमले हुए हैं.”

इस बीच, ज़रूरमन्द लोगों तक अति आवश्यक मानवीय सहायता पहुँचाया जाना और भी ज़्यादा कठिन होने लगा है.

जानबूझकर देरी

कुछ देशों में स्थानीय अधिकारी मानवीय सहायता कर्मियों के आवागमन व राहत सामग्री के परिवहन पर पाबन्दियाँ लगाते हैं, वीज़ा और सीमाओं व जाँच चौकियों पर औपचारिकताएँ पूरी करने में देर लगाते हैं.

अन्य तरह की बाधाओं में मानवीय सहायता सामान पर टैक्स की उच्च दरें और भारी भरकम शुल्क लगाया जाना भी शामिल है.

वैस तो, हर देश को आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की ज़रूरत है, मगर ये भी सुनिश्चित करना उनकी ज़िम्मेदारी है कि आतंकवाद-निरोधक प्रयासों में, मानवीय सहायता अभियानों पर नकारात्मक असर ना पड़े.

यूएन उप प्रमुख ने ध्याद दिलाते हुए कहा कि चूँकि देशों की सरकारें ही, मानवीय सहायता सामग्री की आपूर्ति करने के लिये प्रणालियाँ बनाती हैं, इसलिये ये बहुत ज़रूरी है कि सरकारें ही इसमें सहयोग दें, ना कि बाधाएँ खड़ी करें.

प्रमुख क़दम

उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का और ज़्यादा सम्मान किये जाने की ज़रूरत है जिसके तहत सैन्य अभियानों, राजनैतिक उद्देश्यों और मानवीय सहायता प्रयासों के बीच की रेखा को धुँधला ना होने दिया जाए.

मानवीय सहायता कार्रवाई के सिद्धान्तों को बनाए रखना, राजनैतिक, सैन्य, सुरक्षा, ग़ैर-सरकारी सशस्त्र गुटों और अन्य पक्षों के साथ भरोसा क़ायम करने के लिये अति आवश्यक है.

दूसरे, मानवीय सहायता कर्मियों पर हमले रोकने के लिये, समुचित जाँच और जवाबदेही तय करना बहुत ज़रूरी है. इस तरह के हमले क़तई स्वीकार्य नहीं हैं और बहुत से हमले तो युद्धापराधों की श्रेणी में आते हैं. अगर इन हमलों के लिये दण्ड नहीं दिया जाता तो ये दोहराए भी जाते हैं.

अन्ततः, सुरक्षा परिषद को, स्कूलों व अस्पतालों पर हमले तत्काल रोके जाने के लिये, अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना होगा.