जलवायु संकट: अग्रिम मोर्चे वाले देशों के लिये समय बीता जा रहा है

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने गुरूवार को कहा है कि दुनिया के पास वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने का लक्ष्य हासिल करने के लिये समय ख़त्म हो ता जा रहा है, जबकि जलवायु प्रभावित देशों के लिये ये जीवन-मृत्यु का मामला है और ये देश जलवायु संकट के अग्रिम मोर्चे पर हैं.
Our climate is changing and weather becoming more extreme - heat, floods and drought.We need to invest in weather, hydrological and climate services to adapt.Leaders of the Alliance for #Hydromet Development on why we must step up #ClimateActionhttps://t.co/ysqE3nbhK4 pic.twitter.com/lymCwrThuq
WMO
यूएन महासचिव ने जलवायु सम्बन्धित आपदाओं से नियमित रूप से प्रभावित 48 देशों के पहले जलवायु सम्मेलन में बोलते हुए कहा कि इन देशों को ये आश्वासन चाहिये कि उन्हें वित्तीय और तकीनीक सहायता मिलेगी.
उन्होंने कहा, “भरोसा बनाने के लिये, विकसित देशों को स्पष्ट करना होगा कि वो विकासशील दुनिया को, जलवायु वित्त के रूप में हर साल 100 अरब डॉलर की रक़म किस तरह मुहैया कराएंगे, जैसाकि एक दशक पहले वादा किया गया था.”
यूएन प्रमुख ने कहा कि दुनिया को फिर से इसके पैरों पर खड़ा करने के लिये, सरकारों के बीच सहयोग बहाल करना और महामारी से, जलवायु सक्षम तरीक़े से उबरने के लिये, बहुत कमज़ोर हालात वाले देशों की सटीक मदद की जानी होगी.
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने गुरूवार को, विश्व मौसम संगठन (WMO) द्वारा प्रकाशित एक नई रिपोर्ट का स्वागत किया जिसमें दिखाया गया है कि मौसम के पूर्वानुमान बताने वाली तकनीकों में बेहतरी करके, पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ स्थापित करके, और जलवायू सूचना – हाइड्रोमेट के ज़रिये, हर वर्ष अनुमानतः 23 हज़ार लोगों की ज़िन्दगियाँ बचाई जा सकती हैं.
ऐसा करके हर वर्ष लगभग 162 अरब डॉलर की रक़म का फ़ायदा होगा.
यूएन महासचिव ने प्रथम हाइड्रोमैट रिपोर्ट प्रकाशित होने के मौक़े पर कहा कि जलवायु परिवर्तन के मद्देनज़र ये सेवाएँ, मज़बूती व क्षमता निर्माण के लिये बहुत ज़रूरी हैं.
उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि लघु द्वीपीय विकासशील देशों और कम विकसित देशों में बुनियादी मौसम आँकड़ों की उपलब्धता के क्षेत्र में बहुत अन्तर मौजूद है और जलवायु वित्त से उन्हें सबके ज़्यादा लाभ होना चाहिये.
विश्व मौसम संगठन के अनुसार अनेक आपदाओं की पूर्व चेतावनी देने वाली प्रणालियों में संसाधन निवेश करने से, उन पर आने वाली लागत की तुलना में, कम से कम दस गुना ज़्यादा फ़ायदा होगा और ऐसा किया जाना चरम मौसम की घटनाओं के ख़िलाफ़ क्षमता और मज़बूती विकसित करना बहुत ज़रूरी है.
इस समय केवल 40 प्रतिशत देशों के पास, प्रभावी पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ मौजूद हैं.