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दक्षिण सूडान: आज़ादी के 10 वर्ष बाद भी बच्चों के लिये निराशा व हताशा के हालात

दक्षिण सूडान के जूबा में नील नदी से पानी भरकर लाने के लिये, एक बच्चा ख़ाली बर्तन ले जाते हुए.
© UNICEF/Phil Hatcher-Moore
दक्षिण सूडान के जूबा में नील नदी से पानी भरकर लाने के लिये, एक बच्चा ख़ाली बर्तन ले जाते हुए.

दक्षिण सूडान: आज़ादी के 10 वर्ष बाद भी बच्चों के लिये निराशा व हताशा के हालात

मानवीय सहायता

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष - यूनीसेफ़ ने मंगलवार को कहा है कि दक्षिण सूडान द्वारा आज़ादी हासिल करने के 10 वर्ष बाद भी, अब और ज़्यादा बच्चों को, पहले से कहीं ज़्यादा मानवीय सहायता की सख़्त ज़रूरत है.

यूनीसेफ़ ने, 9 जुलाई को दक्षिण सूडान की स्वतंत्रता की 10वीं वर्षगाँठ के मौक़े पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में पाया है कि लगभग 45 लाख बच्चों व किशोरों को सहायता की तत्काल ज़रूरत है. ये संख्या पूरे देश के बच्चों की लगभग दो तिहाई है.

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यूएन बाल एजेंसी का कहना है कि दक्षिण सूडान में बाल मृत्यु की दर दुनिया में सबसे ज़्यादा है और हर 10 में से एक बच्चा, 5 वर्ष की उम्र पूरी नहीं कर पाता है.

कुपोषण और शिक्षा तक सीमित पहुँच सहित अन्य अनेक बड़ी चिन्ताएँ भी मौजूद हैं.

हताशा और निराशा

यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरिएटा फ़ोर ने कहा है, “वर्ष 2011 में दक्षिण सूडान के बच्चों और परिवारों ने अपने देश का वजूद बनने पर जो उम्मीद और आशावाद महसूस किया था, वो अब हताशा और निराशा में तब्दील हो गया है.”

उन्होंने कहा, “दक्षिण सूडान में 10 वर्ष की उम्र के बहुत से बच्चों का बचपन अब हिंसा, संकट और अधिकार हनन से भर गया है.”

यूनीसेफ़ ने ध्यान दिलाते हुए कहा है कि विश्व के इस नवीनतम देश ने ना केवल हिंसा और संघर्ष के दौर देखे हैं, बल्कि बार-बार आती बाढ़, सूखा और चरम मौसम की अन्य घटनाएँ भी देखी हैं जोकि जलवायु परिवर्तन का नतीजा हैं.

गहरे होते आर्थिक संकट ने भी तकलीफ़ें और ज़्यादा बढ़ा दी हैं.

इन कारणों से देश में अत्यन्त गम्भीर खाद्य असुरक्षा की स्थिति बन गई है और दुनिया का बदतरीन मानवीय संकट पैदा हो गया है.

अलबत्ता, हाल में एक शान्ति समझौता हुआ जोकि आंशिक रूप से ही लागू हो सका, वो भी बच्चों और किशोरों के सामने दरपेश चुनौतियों को आसान करने में नाकाम रहा.

बाल अधिकारों का हनन

दक्षिण सूडान में यूनीसेफ़ की एक बाल रिपोर्टर क्रिस्टीन सायदा ने जिनीवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में एक पाक्षिक प्रैस वार्ता में पत्रकारों को बताया, “दक्षिण सूडान में बाल अधिकारों का सम्मान नहीं किया जाता: स्कूली शिक्षा हासिल करने का अधिकार, भरपेट भोजन खाने का अधिकार, संरक्षा का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार... ऐसे बहुत से अधिकार हैं जो हमें दिये ही नहीं जा रहे हैं.”

“दक्षिण सूडान में बच्चे बहुत से संकटों का सामना कर रहे है जिनमें बच्चों का अपहरण, मवेशियों पर छापेमार हमले, साम्प्रादायिक संघर्ष, विस्थापन, देश में हिंसा, लैंगिक हिंसा. बाढ़ और हिंसा ने तो बच्चों के लिये चीज़ें और भी मुश्किल बना दी हैं जिससे उच्च स्तर का कुपोषण बढ़ रहा है.”

कुपोषण एक शीर्ष चिन्ता

यूनीसेफ़ ने कहा है कि दक्षिण सूडान में कुल मिलाकर क़रीब 83 लाख लोगों को मानवीय सहायता की ज़रूरत है. 

देश में खाद्य असुरक्षा के इस उच्च स्तर ने ख़ास चिन्ता पैदा कर दी है, और यूनीसेफ़ का अनुमान है कि इस वर्ष देश में लगभग 14 लाख बच्चों को अत्यन्त गम्भीर कुपोषण का सामना करना पड़ेगा, जोकि वर्ष 2013 के बाद से सबसे ज़्यादा संख्या होगी.

लगभग तीन लाख बच्चों द्वारा कुपोषण के बदतरीन रूप का सामना करने का अनुमान है और अगर उनका इलाज नहीं किया गया तो उनकी मौत होने का भी ख़तरा है.

इस बीच दक्षिण सूडान में स्कूली शिक्षा से वंचित रहने वाले बच्चों की संख्या, अनुपात के अनुसार, विश्व में सबसे ज़्यादा है.