2030 तक अरबों लोगों के जल व स्वच्छता सेवाओं से वंचित होने का जोखिम

संयुक्त राष्ट्र की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर तुरन्त भारी मात्रा में रक़म का इन्तज़ाम नहीं किया गया तो दुनिया भर में वर्ष 2030 तक अरबों लोगों के सामने जीवनदायक स्वच्छ पानी, स्वच्छता और साफ़-सफ़ाई सेवाओं की क़िल्लत का जोखिम मंडरा रहा होगा.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनीसेफ़ की गुरूवार को जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर में हर 10 में से तीन लोगों को, कोविड-19 महामारी के दौरान भी, अपने घरों पर स्वच्छ पानी और साबुन से हाथ धोने की सुविधा उपलब्ध नहीं थी.
Latest estimates reveal that 3 in 10 people worldwide could not wash their hands with soap and water at home during the COVID-19 pandemic. @WHO https://t.co/favuo4F5L5
UNICEF
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है, "कोविड-19 महामारी और अन्य संक्रामक बीमारियों के फैलाव को रोकने के उपायों में हाथ स्वच्छता एक सर्वाधिक प्रभावशाली रास्ता है, फिर भी दुनिया भर में करोड़ों लोगों को, पानी की सुरक्षित और भरोसेमन्द आपूर्ति उपलब्ध नहीं है."
वर्ष 2000 से 2020 के दौरान घरों में पीने के पानी, स्वच्छता और साफ़-सफ़ाई की स्थिति पर संयुक्त निगरानी कार्यक्रम रिपोर्ट में, अलबत्ता, वैश्विक स्तर पर इन सुविधाओं की उपलब्धता के बारे में कुछ अच्छे संकेत भी दिये गए हैं.
रिपोर्ट में दिखाया गया है कि वर्ष 2016 से 2020 के बीच, घरों में, सुरक्षित तरीक़े से प्रबन्धित पीने के पानी की उपलब्धता 70 प्रतिशत से बढ़कर 74 प्रतिशत हो गई; स्वच्छता सेवाएँ 47 प्रतिशत से बढ़कर 54 प्रतिशत हुई; और साबुन और पानी के साथ हाथ धोने की सुविधाएँ 67 प्रतिशत से बढ़कर 71 प्रतिशत हुईं.
और पहली बार, बहुत से लोगों ने बेहतर स्वच्छता वाली और असरदार अपशिष्ट प्रबन्धन वाले साधनों का प्रयोग किया.
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरिएटा फ़ोर का कहना है, "इन जीवनदायक सेवाओं का दायरा बढ़ाने के हमारे प्रयासों में आज तक हुई प्रभावशाली प्रगति के बावजूद, ख़तरनाक हद तक बढ़ती ज़रूरतें, हमारी कार्यक्षमता को पीछे छोड़ रही हैं."
इन दोनों यूएन एजेंसियों ने इस क्षेत्र में दर्ज की गई प्रगति को बरक़रार रखने के लिये, तमाम देशों की सरकारों से, सुरक्षित तरीक़े से प्रतिबन्धित स्थलीय स्वच्छता उपायों को समुचित सहायता देने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है.
रिपोर्ट में ये भी स्पष्ट किया गया है कि अगर मौजूदा रुझान इसी तरह जारी रहा तो, वर्ष 2030 तक, अरबों बच्चे व परिवार, जीवनदायी जल व स्वच्छता सेवाओं से वंचित रह जाएँगे.
रिपोर्ट कहती है कि दुनिया की 81 प्रतिशत आबादी को अपने घरों पर पीने का सुरक्षित पानी उपलब्ध होगा, यानि लगभग एक अरब 60 करोड़ लोग इससे वंचित होंगे. केवल 67 प्रतिशत आबादी को स्वच्छता सेवाएँ उपलब्ध होंगी, जिसका मतलब है कि 2 अरब 80 करोड़ डॉलर आबादी इनसे वंचित होगी. और केवल 78 प्रतिशत आबादी के पास हाथ धोने की बुनियादी सेवाएँ उपलब्ध होंगी यानि लगभग एक अरब 90 करोड़ लोगों के पास ये सुविधा नहीं होगा.
डॉक्टर टैड्रॉस ने ज़ोर देकर कहा, "अगर हमें इस महामारी का ख़ात्मा करना है और ज़्यादा सक्षम व लचीली स्वास्थ्य प्रणालियाँ बनानी हैं तो जल, स्वच्छता और साफ़-सफ़ाई सेवाओं में धन निवेश किया जाना एक वैश्विक प्राथमिकता होनी चाहिये."
रिपोर्ट में व्यापक पैमाने पर बरक़रार विषमताओं की तरफ़ भी ध्यान दिलाया गया है जिनके कारण, कमज़ोर परिस्थितियों वाले बच्चों व परिवारों को सबसे ज़्यादा तकलीफ़ें उठानी पड़ती हैं.
रिपोर्ट कहती है कि प्रगति की मौजूदा रफ़्तार को देखते हुए, कम विकसित देशों को, वर्ष 2030 तक सुरक्षित तरीक़े से प्रबन्धित पानी की उपलब्धता हासिल करने के लिये, दस गुना बढ़ोत्तरी सुनिश्चित करनी होगी.
यूनीसेफ़ प्रमुख ने कहा, "महामारी शुरू होने से पहले भी, करोड़ों बच्चे और परिवार, स्वच्छ जल, सुरक्षित स्वच्छता और हाथ धोने के लिये सुलभ स्थान के अभाव से पीड़ित थे. अब समय आ गया है कि हर एक बच्चे और परिवार को, उनके स्वास्थ्य और बेहतरी की ख़ातिर, बुनियादी ज़रूरतें पूरी कराने के लिये प्रयास बहुत तेज़ किये जाएँ, और इनमें कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारियों का मुक़ाबला किया जाना भी शामिल है."
रिपोर्ट में, पहली बार महिलाओं के मासिक रजस्वला चक्र सम्बन्धी स्वास्थ्य के बारे में भी आँकड़े प्रस्तुत किये गए हैं. रिपोर्ट में दिखाया गया है कि अनेक देशों में, भारी संख्या में महिलाएँ और लड़कियाँ अपने मासिक चक्र सम्बन्धी ज़रूरतें पूरी करने से वंचित हैं.
विशेष रूप से, कमज़ोर हालात वाले समूहों में ये विषमताएँ और भी गहरी हैं जिनमें निर्धन और विकलांगता वाले समूह विशेष रूप से शामिल हैं.