जल-सम्बन्धी त्रासदियाँ बड़ी चुनौती – सुदृढ़ बुनियादी ढाँचे में निवेश पर बल

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने सचेत किया है कि वैश्विक जलवायु संकट के कारण, जल-सम्बन्धी त्रासदियाँ पहले से कहीं ज़्यादा गहन व गम्भीर हो रही हैं, जिससे ज़िन्दगियों व आजीविकाओं पर जोखिम बढ़ रहा है.
यूएन प्रमुख ने शुक्रवार को जल एवँ त्रासदियों के विषय पर आयोजित एक परिचर्चा को सम्बोधित करते हुए ध्यान दिलाया कि कई दशकों से बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ - बाढ, तूफ़ान, सूखा, सुनामी और भूस्खलन - आमतौर पर जल से सम्बन्धित रही हैं.
उन्होंने कहा कि पिछले दो दशकों में जलवायु सम्बन्धी त्रासदियाँ, पिछले 20 वर्षों की तुलना में दो गुना बढ़ी हैं जिससे चार अरब से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं.
इन आपदाओं में लाखों लोगों की जान गई है और लगभग तीन ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुक़सान हुआ है.
महासचिव गुटेरेश ने आगाह किया कि जलवायु परिवर्तन से वर्षा रूझानों में बदलाव आ रहा है, जल उपलब्धता पर असर पड़ा है, सूखे और गर्मी की अवधि बढ़ रही है और चक्रवाती तूफ़ान पहले से अधिक गहन हो रहे हैं.
“इन रूझानों से, टिकाऊ विकास के 2030 एजेण्डा को लागू कर ज़्यादा टिकाऊ, सुदृढ़ समुदायों व समाजों के निर्माण के हमारे प्रयासों के लिये विशाल चुनौतियाँ पैदा हो गई हैं.”
अनुमान दर्शाते हैं कि वर्ष 2030 तक, जलवायु सम्बन्धी त्रासदियों की वजह से, मानवीय राहत आवश्यकताओं में 50 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वैश्विक तापमान में वृद्धि को राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाओं के ज़रिये 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाना होगा.
इसके तहत, वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कमी और 2050 तक नैट कार्बन उत्सर्जन शून्य के लक्ष्य को पाना बेहद अहम होगा.
इसके समानान्तर, जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित देशों के लिये वित्तीय संसाधनों को उपलब्ध कराने की अहमियत पर बल दिया गया है ताकि अनुकूलन व सहनक्षमता प्रयासों को आगे बढ़ाया जा सके.
इस क्रम में, उन्होंने धनी देशों से हर वर्ष 100 अरब डॉलर का इन्तज़ाम करने का आग्रह किया है ताकि विकासशील देशों को ज़रूरी सहायता प्रदान की जा सके.
“हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वित्त पोषण, सबसे ज़रूरतमन्दों, विशेष रूप से, लघु द्वीपीय विकासशील देशों और सबसे कम विकसित देशों को हासिल हो सके....जो अब जलवायु संकट के कगार पर हैं.”
यूएन प्रमुख ने कोविड-19 महामारी पर जवाबी कार्रवाई और उससे उबरने के लिये रोकथाम प्रयासों व तैयारियों पर विशेष रूप से बल दिया है.
इसका अर्थ है: सहनक्षमता में निवेश, जल-प्रबन्धन की चुनौतियों से निपटा जाना, और सर्वजन के लिये जल एवँ स्वच्छता सेवाओं को सुनिश्चित करना.
महासचिव गुटेरेश ने कहा कि पुनर्बहाली प्रयासों में पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्रों और जैवविविधता का भी ख़याल रखा जाना होगा, और प्रकृति को अब तक पहुँची क्षति पर मरहम लगाना होगा.
यूएन प्रमुख के मुताबिक सुदृढ़ बुनियादी ढाँचे में निवेश, भविष्य में निवेश है.