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सशस्त्र संघर्षों का बच्चों पर विनाशकारी असर - यूएन की नई रिपोर्ट

ताइज़ शहर के अल गमालिया इलाक़े में दो बच्चे अपने घर वापिस लौटे हैं. 2017 में उन्हें अपने परिवार के साथ जान बचाने के लिये भागना पड़ा था.
UNOCHA/Giles Clarke
ताइज़ शहर के अल गमालिया इलाक़े में दो बच्चे अपने घर वापिस लौटे हैं. 2017 में उन्हें अपने परिवार के साथ जान बचाने के लिये भागना पड़ा था.

सशस्त्र संघर्षों का बच्चों पर विनाशकारी असर - यूएन की नई रिपोर्ट

शान्ति और सुरक्षा

बच्चों और सशस्त्र संघर्ष पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव की वार्षिक रिपोर्ट दर्शाती है कि वर्ष 2020 में 19 हज़ार से ज़्यादा लड़के-लड़कियों को सीधे तौर पर, एक या उससे अधिक अधिकार हनन के गम्भीर मामलों की पीड़ा झेलनी पड़ी है.  

इनमें बाल सैनिकों के रूप में उनकी भर्ती व इस्तेमाल किया जाना, जान से मारना व अपंग बनाना, बलात्कार व यौन हिंसा का शिकार बनाना और अगवा किया जाना है. 

अधिकार हनन के कुल मामलों की संख्या 26 हज़ार 425 आंकी गई है, जोकि एक बेहद ऊँचा स्तर है. 

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सशस्त्र संघर्ष व टकराव के माहौल में, कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभावों से बच्चों के लिये हालात और विकट हुए हैं, संयुक्त राष्ट्र के लिये ज़रूरतमन्दों तक पहुँच पाना पहले से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है.   

यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि वर्जीनिया गाम्बा ने कहा, “वयस्कों के युद्धों ने लाखों लड़कों और लड़कियों को 2020 में बचपन से फिर दूर कर दिया है.”

“यह उनके लिये तो पूरी तरह से तबाहीपूर्ण है ही, उन पूरे समुदायों के लिये भी है, वे जहाँ रहते हैं, और इससे टिकाऊ शान्ति के लिये अवसर बर्बाद होते हैं.”

उन्होंने कहा कि अतीत को मिटाया नहीं जा सकता है, मगर इन बच्चों के भविष्य के फिर से निर्माण और इन गम्भीर अधिकार हनन के मामलों की रोकथाम के लिये प्रयासों व संसाधनों को सुनिश्चित किया जा सकता है. 

रिपोर्ट बताती है कि आठ हज़ार 400 से अधिक बच्चों की मौजूदा सशस्त्र संघर्षों में या तो मौत हो गई या फिर वे अपंग हो गए. अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, यमन और सोमालिया में सबसे अधिक संख्या में बच्चे पीड़ित हैं.  

चुरा लिया गया बचपन

बाल सैनिकों के रूप में भर्ती किये जाने से वर्ष 2020 में लगभग सात हज़ार बच्चे प्रभावित थे, और ऐसे अधिकाँश मामले काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य, सोमालिया, सीरिया और म्याँमार में दर्ज किये गए हैं. 

अधिकार हनन के मामलों में सबसे तेज़ वृद्धि (90 प्रतिशत) अगवा किये जाने के मामलों में देखने को मिली है. बलात्कार और यौन हिंसा के अन्य रूपों में 70 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. 

वर्ष 2020 में हर चार बाल पीड़ितों में से एक पीड़ित लड़की है. 

यूएन की विशेष प्रतिनिधि ने कहा कि आँकड़े दर्शाते हैं कि सशस्त्र संघर्ष के दुष्प्रभाव लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करते. 

सोमालिया, डीआरसी, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया में कुल पुष्ट मामलों के 60 प्रतिशत से अधिक मामले दर्ज किये गए हैं. 

“यह बेहद चिन्ताजनक है कि स्कूलों के ख़िलाफ़ अनेक हिंसक हमलों का मक़सद लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने से रोकना था.”

रिपोर्ट के मुताबिक, सशस्त्र संघर्ष से प्रभावित लड़के-लड़कियों की मदद करने और अधिकार हनन के मामलों पर विराम लगान के प्रयासों में कोरोनावायरस संकट की वजह से चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं.

रक्षा के संकल्प को प्रोत्साहन

इसके बावजूद, अफ़ग़ानिस्तान, मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, नाइजीरिया, फ़िलिपीन्स, दक्षिण सूडान और सीरिया में युद्धरत पक्षों के साथ सम्वाद स्थापित करने में ठोस प्रगति हुई है.

कुल मिलाकर, युद्धरत पक्षों ने बच्चों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिये 35 से ज़्यादा नए संकल्प लिये हैं. इनमें म्याँमार और दक्षिण सूडान में दो नई कार्ययोजनाएँ पर हस्ताक्षर शामिल हैं. 

इसके अलावा, सशस्त्र गुटों और बलों ने 12 हज़ार से अधिक बच्चों को, यूएन और सशस्त्र संघर्ष में शामिल पक्षों के बीच सम्पर्क व सम्वाद के बाद रिहा कर दिया. 

संयुक्त राष्ट्र और विभिन्न सरकारों के बीच छँटनी प्रक्रिया में उम्र की अहर्ता के कारण, बड़ी संख्या में बच्चों को बाल सैनिकों के रूप में भर्ती किये जाने से रोकना सम्भव हुआ है.