वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

भारत के 'अदृश्य पर्यावरण कार्यकर्ता' - सफ़ाई साथी

भारत के 40 लाख सफ़ाई साथी देश की कचरा प्रबन्धन प्रणाली की रीढ़ हैं.
UNDP India/Raja Venkatapathy
भारत के 40 लाख सफ़ाई साथी देश की कचरा प्रबन्धन प्रणाली की रीढ़ हैं.

भारत के 'अदृश्य पर्यावरण कार्यकर्ता' - सफ़ाई साथी

एसडीजी

भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान, प्लास्टिक कचरे में इस्तेमाल किये गए दस्तानों, मास्क व अन्य सामग्री की मात्रा बढ़ी है जिससे सफ़ाईकर्मियों के संक्रमण का शिकार होने का भी जोखिम बढ़ा है. उनके पास अक्सर ज़रूरी बचाव उपकरणों का अभाव होता है और सामाजिक संरक्षा योजनाओं तक पहुँच नहीं होती. इसके मद्देनज़र, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने ‘उत्थान’ नामक एक कार्यक्रम शुरू किया है जिसके तहत, सरकारी योजनाओं के दायरे में लाने के लिये, नौ हज़ार सफ़ाई साथियों को राष्ट्रीय पहचान पत्र हासिल करने में मदद मिली है और उनके टीकाकरण के भी प्रयास किये जा रहे हैं.

 

भारत के पूर्वी राज्य ओडिशा के कटक शहर में रहने वाली रिहाना बीबी, कचरा बीनने का काम करती हैं. 

स्वच्छता केन्द्र तक पहुँचने के लिये, वह हर दिन तीन किलोमीटर की यात्रा करती है, जहाँ कचरे को एकत्र करने के बाद, री-सायक्लिंग के लिये भेजे जाने से पहले अलग किया जाता है.

वह भारत के 40 लाख सफ़ाई साथियों में से एक हैं, जो देश में कचरा प्रबन्धन प्रणाली की रीढ़ हैं.

कोविड-19 महामारी उनके लिये और मुश्किलें लेकर आई है. पहले तो वह बिल्कुल भी कमाई नहीं कर पाईं, क्योंकि एक अनौपचारिक कामगार के रूप में, उनके पास एक वैध पहचान पत्र नहीं था. जब वह काम पर वापस गईं तो उन्हें अतिरिक्त जोखिम था.

वह कहती हैं, “आख़िरकार जब काम फिर से शुरू हुआ, तो मैं हमेशा इस डर में रहती थी कि मैं संक्रमित हो जाऊँगी. मैं अपने परिवार के लिये चिन्तित थी क्योंकि हम जो कचरा बीनते थे, उसमें इस्तेमाल में लाए गए मास्क, दस्ताने, पीपीई किटें और अन्य ख़तरनाक कचरे मिले होते थे.” 

भारत में हर साल 1.5 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है लेकिन इसका सिर्फ़ एक चौथाई ही री-सायकिल हो पाता है, जिससे कचरा-भराव क्षेत्र पर बोझ पड़ता है.

साथ ही सफ़ाई साथी जैसे आवश्यक कर्मचारियों, जिनमें ज़्यादातर महिलाएँ हैं, को सुरक्षा उपकरण या सामाजिक सुरक्षा तक प्रदान नहीं की जाती.

इसके अलावा, अपने कामकाज के स्वरूप और अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है. 

मगर, कोविड-19 ने 'आवश्यक' कामगारों की परिभाषा का पुनर्मूल्याँकन करने के लिये मजबूर किया है.

सफ़ाई साथी, स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान देते हैं. मगर, उनके काम की प्रकृति और उनके रहन-सहन की ख़राब स्थिति की वजह से उन्हें संक्रमण का सबसे ज्यादा ख़तरा होता है.

जसविंदर सिंह का कहना है कि उन्हें जिस कचरे को अलग करना था, उसमें कोविड-19 में इस्तेमाल किये गए दस्ताने, मास्क और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण समेत अन्य मेडिकल कचरा मिला हुआ था.

वे कहते हैं, "इससे बहुत परेशानी होती थी. कूड़ा ख़रीदने वाले, कचरे की वजह से कोविड-19 से संक्रमित होने से डरते थे, इसलिए हमें अलग किये गए कचरे के ख़रीददार भी नहीं मिले. कभी-कभी तो बहुत कम क़ीमत मिलती थी.” 

कंचन नेसा एक दशक से अधिक समय से सफ़ाई साथी के रूप में काम कर रही हैं. वह ग़ाज़ियाबाद के एक स्वच्छता केंद्र में प्लास्टिक कचरा अलग करने का काम करती हैं.

वह कहती हैं, “हमें जो कचरा मिलता है वह अक्सर इस्तेमाल किए गए मास्क, दस्ताने आदि के साथ मिला होता है. इससे वायरस के सम्पर्क में आने का ख़तरा बढ़ जाता है. लोग प्लास्टिक कचरे को दूसरे कचरे से अलग नहीं करते हैं. कचरे का निपटान करते समय, छोटे-छोटे उपाय किसी की बड़ी मदद कर सकते हैं. " 

महामारी पर जवाबी कार्रवाई के तहत, यूएन विकास कार्यक्रम ने ‘उत्थान’ नामक एक कार्यक्रम शुरू किया है, जिसके मायने हैं 'सहनक्षमता के साथ प्रगति.'

पिछले साल अक्टूबर से, इस पहल ने नौ हज़ार सफ़ाई साथियों को राष्ट्रीय पहचान पत्र हासिल करने में मदद की है, जिससे वे सरकार के वित्तीय समावेशन और सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आए हैं.

अब्दुल कुद्दुस और उनका परिवार.
UNDP India/Deepak Malik
अब्दुल कुद्दुस और उनका परिवार.

यह अब्दुल कुद्दुस जैसे लोगों के लिये वरदान रहा है, जो पहचान पत्र ना होने के कारण स्वच्छता केंद्र में काम नहीं कर पा रहे थे. इससे उनके परिवार को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था.

"मैं अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाला हूँ, और मुझे डर था कि आय के बग़ैर, मेरे परिवार को भुखमरी का सामना करना पड़ेगा. हमारे काम को आज भी एक ज़रूरी सेवा नहीं माना जाता."

‘उत्थान’ की मदद से, वनिता डंके को आधार कार्ड मिल पाया.
UNDP India
‘उत्थान’ की मदद से, वनिता डंके को आधार कार्ड मिल पाया.

वनिता डंके पर अकेले ही तीन बच्चों के भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी है. वनिता, प्रामाणिक सरकारी पहचान पत्र ना होने के कारण, खाद्यान्न सब्सिडी और अनौपचारिक श्रमिकों के लिये उसके वितरण सेवा का लाभ नहीं उठा पा रही थीं.

‘उत्थान’ के माध्यम से, उन्होंनेआधार कार्ड कार्यक्रम में अपना नामान्कन करवाया है, ताकि स्वास्थ्य, शिक्षा और वित्तीय लाभों तक उनकी पहुंच हो सके.

प्लास्टिक कचरा प्रबन्धन कार्यक्रम, भारत के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय, और अन्य साझीदार संगठनों के साथ मिल कर प्लास्टिक कचरे के असर को कम करने के प्रयासों पर केंद्रित है.

यह सभी प्रकार के प्लास्टिक को एकत्र व अलग करने, और उसकी री-सायक्लिंग को बढ़ावा देता है, ताकि एक चक्रीय अर्थव्यवस्था का निर्माण किया जा सके.

यानि, जहाँ प्लास्टिक को एक बार इस्तेमाल कर फेंकने के बजाय, एक से अधिक बार उपयोग में लाया जा सके. इस साझेदारी में सफ़ाई साथियों की महत्वपूर्ण भूमिका है.

गोवा सुविधा केन्द्र की शुरुआत पर जापान सरकार, गोवा के पंजिम शहर के कॉरपोरेशन, एचडीएफ़सी बैंक और भारत में यूएनडीपी की प्रतिनिधि, शोको नाडा.
UNDP India/Raja Venkatapathy
गोवा सुविधा केन्द्र की शुरुआत पर जापान सरकार, गोवा के पंजिम शहर के कॉरपोरेशन, एचडीएफ़सी बैंक और भारत में यूएनडीपी की प्रतिनिधि, शोको नाडा.

मार्च 2021 में, यूएन एजेंसी ने जापान सरकार, गोवा के पंजिम शहर के कॉरपोरेशन और एचडीएफ़सी बैंक के सहयोग से गोवा में पहला सामाजिक सुरक्षा सुविधा केन्द्र शुरू किया है.

यह सामाजिक संरक्षा योजनाओं का संचालन करने वाले सरकारी विभागों और सफ़ाई साथियों के बीच, एक महत्वपूर्ण सेतु के रूप में कार्य करता है.

इसके ज़रिये अग्रिम पंक्ति के लगभग 150 कामगारों का टीकाकरण करने में मदद मिली है. यूएन एजेंसी स्थानीय निकायों के साथ मिलकर अधिक से अधिक सफ़ाई साथियों के टीकाकरण के लिये प्रयासरत है.

इन सुधारों से पटना की बबीता कुमारी को संतुष्टि का एहसास हुआ है. वह सफ़ाई साथियों की चैम्पियन हैं और कोविड-19 के दौरान उनके काम के लिये उन्हें स्थानीय नगरपालिका द्वारा पहचान मिली है.

यूएनडीपी, सरकार के सहयोग से, सफ़ाई साथियों के टीकाकरण में मदद कर रहा है.
UNDP India
यूएनडीपी, सरकार के सहयोग से, सफ़ाई साथियों के टीकाकरण में मदद कर रहा है.

स्वच्छता केन्द्र के कामगारों को उच्च गुणवत्ता वाले बचाव उपकरण प्राप्त हैं, और अब बबीता अपने कार्यस्थल पर सुरक्षित महसूस करती हैं व उनका समुदाय भी उनके महत्वपूर्ण योगदान की कद्र करता है.

वह कहती हैं, "इस काम ने मुझे मेरे समाज में पहचान, आजीविका और सम्मान दिया है." 

गोवा में स्वच्छता केन्द्र में कचरा अलग करते सफ़ाई साथी.
UNDP India/Raja Venkatapathy
गोवा में स्वच्छता केन्द्र में कचरा अलग करते सफ़ाई साथी.

ये लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.