बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिये समन्वित प्रयास
जैसलमेर, भारत के राजस्थान राज्य का सबसे बड़ा ज़िला है, मगर यहाँ स्वास्थ्य ज़रूरतों को पूरा करने, विशेषकर मातृत्व व प्रसव सम्बन्धी सेवाओं के लिये विशेषज्ञों की कमी एक बड़ी चुनौती रही है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने वर्ष 2013 में महिला स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये ज़िला प्रशासन व राज्य स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर प्रयास किये, जिसके सकारात्मक नतीजे दिखाई दिये हैं. इस क्षेत्र में हुई प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अधिकारियों व स्वास्थ्यकर्मियों से एक मुलाक़ात....
महिला स्वास्थ्य के पैरोकार
जैसलमेर के ज़िला कलैक्टर, आशीष मोदी ने जब कार्यभार सँभाला, तो हालात बहुत अच्छे नहीं थे और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को हासिल करने में दूरी एक बड़ी चुनौती थी.
उन्होंने एक ऐसी घटना के बारे में बताया जब एक सहायक दाई को 300 किलोमीटर दूर एक ज़िले से अपने बच्चे को लाने के लिये छुट्टी लेनी पड़ी.
उस दौरान एक महिला को प्रसव पीड़ा हुई और वैकल्पिक दाई ना होने के कारण, महिला को घर पर बच्चे को जन्म देने के लिये मजबूर होना पड़ा.
"ये ज़मीनी हक़ीकत हैं जिसका हम आए दिन सामना करते हैं."
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16) के अनुसार, ज़िले में महज़ 49 प्रतिशत प्रसव ही संस्थागत होते हैं, और एक बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की है जिनका जन्म, बिना किसी चिकित्सकीय देखरेख के घर पर होता है.
आशीष मोदी कहते हैं, "छोटे-छोटे हस्तक्षेप इन महिलाओं के लिये बहुत मददगार हो सकते हैं. हमारे प्रयास स्वास्थ्य देखभाल के विकल्प की एक प्रणाली बनाने पर केन्द्रित हैं ताकि महिलाओं को हर समय चिकित्सा सहायता उपलब्ध हो सके. यह निश्चित रूप से मातृत्व मौतों के अनुपात को कम करने में मदद करेगा."
फिलहाल, ज़िला कलैक्टर ने आदेश जारी किए हैं कि यदि कोई सहायक दाई छुट्टी पर जाती है, तो नज़दीकी उपस्वास्थ्य केन्द्र सेवाएँ प्रदान करेगा.

UNFPA ने, ज़िला कलैक्टर के इन प्रयासों में, यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है कि इस ज़िले की महिलाओं को उचित स्वास्थ्य सेवा, विशेष रूप से प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त हों.
उन्होंने कहा, "मैं बेहद भाग्यशाली हूँ कि मेरे पास ऐसे लोगों की टीम है जो जीवन बचाने के लिये समर्पित हैं और मैं, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा को सुलभ बनाने के लिए चौबीसों घण्टे लगन से काम करने के लिए UNFPA का आभारी हूँ."
सेवा का जज़्बा
26-वर्षीय डॉक्टर खेमराज, थार रेगिस्तान के रेत के टीलों के बीच बसे सैम क्षेत्र में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में चिकित्सा अधिकारी हैं. उनके व उनके साथी डॉक्टर पर 73 गाँवों के लिये, 16 स्वास्थ्य उपकेन्द्रों की ज़िम्मेदारी है.
ज़बरदस्त चुनौतियों, मानव संसाधन की कमी और कोविड-19 महामारी के बावजूद, डॉक्टर खेमराज और उनके कर्मचारियों ने अपने लक्ष्य की दिशा में काम करना कभी नहीं छोड़ा.

डॉक्टर खेमराज ने बताया, "परिवार नियोजन परामर्श स्वास्थ्य सेवा देना हमारे कार्य के केन्द्र में है. हमारे पास गर्भनिरोधक विकल्पों को बढ़ावा देने के लिये एक परिवार कल्याण परामर्श कक्ष है, जहाँ हम लोगों को गर्भनिरोधक के सात तरीक़ों के बार में जानकारी देते हैं और महिलाओं को अपने स्वास्थ्य और कल्याण के लिये स्वतन्त्र निर्णय लेने के लिये प्रोत्साहित करते हैं."
डॉक्टर खेमराज के मुताबिक, "हम यहाँ मातृत्व मौतों को बहुत गम्भीरता से लेते हैं. मातृत्व मौत की दुर्भाग्यपूर्ण घटना होने पर, हम घटना के 24 घंटों के भीतर अपनी समीक्षा पूरी करते हैं."
सैम के स्वास्थ्य केन्द्र में कार्यरत, रुख़मणी कौर पिछले 17 साल से प्रसव कक्ष में काम कर रही हैं.
शुरुआती वर्षों में, स्वास्थ्य केन्द्र को प्रसव कक्ष के लिये आवश्यक उपकरण, दवाओं और बुनियादी ढाँचे के मामले में गम्भीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा.
वर्ष 2007 के बाद से, स्थिति में लगातार सुधार हो रहा है. केन्द्र में अब शिशुओं के लिये फ़ोटोथेरेपी, नई माताओं के लिये स्तनपान परामर्श, प्रसवोत्तर देखभाल और प्रसव के बाद परिवार नियोजन परामर्श का प्रावधान है.
रुख़मणी गर्व के साथ कहती हैं कि UNFPA के समर्थन व समन्वय और चिकित्सा अधिकारियों व नर्सों के नियमित प्रशिक्षण के ज़रिये, प्रसव के दौरान देखभाल सेवाओं की गुणवत्ता, महत्वपूर्ण उपकरणों और दवाओं की उपलब्धता, और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के बुनियादी ढाँचे में ज़बरदस्त सुधार हुआ है.

"हम अपने प्रशिक्षण को बहुत गम्भीरता से लेते हैं जिसके कारण चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को सम्भालने की हमारी क्षमता बढ़ी है."
वो बताती है, "घर पर प्रसव की घटनाओं में काफ़ी गिरावट आई है, क्योंकि महिलाएँ अब संस्थागत प्रसव का विकल्प चुन रही हैं. मातृत्व मौतें शून्य हैं."
"मैं प्रसवपूर्व देखभाल पर सलाह देती हूँ, गर्भवती महिलाओं को टिटनेस के टीके लगाती हूँ और प्रसवोत्तर देखभाल के बारे में भी बताती हूँ."
सहायक दाई लिच्छमा मीणा भी इसी टीम की सदस्य हैं और इस क्षेत्र में हुई प्रगति से उत्साहित हैं.
"मैंने जिन समुदायों के साथ काम किया है, उनमें मैंने कई सकारात्मक बदलाव देखे हैं. अधिकाँश महिलाएँ अब केवल दो बच्चे पैदा करना पसन्द करती हैं; वे बच्चों के बीच अन्तर रखती हैं और गर्भनिरोधकों का भी उपयोग करती हैं. वे अपने स्वास्थ्य और अपने शरीर के बारे में फ़ैसले लेना सीख रही हैं."
हर कोई मायने रखता है
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष, जैसलमेर ज़िले में किशोर लड़कियों पर लक्षित एक कार्यक्रम के लिये तकनीकी सहायता प्रदान करता है. इस योजना के तहत दो हज़ार 800 से ज़्यादा लड़कियों को, किशोर क्लबों के माध्यम से प्रजनन और अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी, एक ‘साथिन’ के द्वारा प्रदान की जाती है.
यह कार्यक्रम विशेष रूप से ऐसी स्कूल न जाने वाली किशोरियों के लिये तैयार किया गया है, जिन्हें पारिवारिक परिस्थितियों के कारण स्कूल छोड़ना पड़ता है.

साथिन अस्की ने कहा, "मुझे उनके साथ काम करना अच्छा लगता है और मैं एक बड़ी बहन की तरह महसूस करती हूँ. ख़ासकर जब मैं उन्हें ज्ञान से सशक्त और अपने जीवन में सुधार करते हुए देखती हूँ. मैं जो काम करती हूँ उससे बहुत खुश हूँ."
यह कार्यक्रम युवा लड़कियों को स्कूल, फिर वापिस आने में मदद करता है, उन्हें बाल विवाह के हानिकारक प्रभावों, किशोरावस्था के दौरान होने वाले शारीरिक परिवर्तनों और माहवारी स्वच्छता व प्रबन्धन के बारे में सलाह देता है.
दृढ़ इच्छाशक्ति
गीता बारी, जैसलमेर के आसपास के गाँवों में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, टीकाकरण और परिवार नियोजन सेवाओं के अभियान चलाती हैं.
गीता बारी, 2009 से भाकरणी के एक उपस्वास्थ्य केन्द्र में सहायक दाई के तौर पर काम कर रही हैं, और उन्होंने 150 से अधिक बच्चों के जन्म के दौरान स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की हैं.
गीता बारी कहती हैं, "मैं एक दशक से अधिक समय से काम कर रही हूँ, ताकि मेरे ज़िले की महिलाओं तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँच सकें. शुरू में महिलाएँ गर्भनिरोधक का उपयोग करने में हिचकिचाती थीं, लेकिन धीरे-धीरे, निरन्तर परामर्श के साथ, उनके दृष्टिकोण में बदलाव आया है."

गीता उपस्वास्थ्य केंद्र के परिसर में रहती हैं जिसके प्रसूति वार्ड में दो बिस्तर और एक परामर्श कक्ष है, और 145 परिवारों व 110 दम्पत्तियों का ख़याल रखती हैं.
उन्होंने बताया, "कोविड भी मुझे रोक नहीं सका. मैंने महसूस किया कि इन आवश्यक सेवाओं को जारी रखना और महिलाओं को इस चुनौतीपूर्ण समय में भी संस्थागत प्रसव और गर्भनिरोधकों का लाभ उठाने के लिये प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण था."
"इसलिए, मैंने सभी कोविड-उचित व्यवहार का पालन करते हुए, घर-घर जाकर पर्चे बाँटने की अपनी दिनचर्या जारी रखी."
गीता के निरन्तर प्रयासों और परामर्श के कारण, महिलाएँ अब दो बच्चे पैदा करने का विकल्प चुन रही हैं, अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हो गई हैं. यह बदलाव आने वाली पीढ़ी के लिये, एक बेहतर कल की मज़बूत नींव रखता है.
असीम उत्साह
डॉक्टर रबीन्द्र सांखला जैसलमेर के ज़िला अस्पताल में एकमात्र स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं. वह और उनके साथी कर्मचारी व नर्स, अस्पताल के मातृत्व विभाग में काम करते हैं.
डॉक्टर सांखला ने बताया, "मैं चौबीसों घण्टे काम करता हूँ क्योंकि मैं यहाँ एकमात्र स्त्री रोग विशेषज्ञ हूँ. हम प्रति माह लगभग 300 प्रसव और लगभग 25 सी-सेक्शन करते हैं!"
"मेरी आठ नर्सें सबसे कठिन परिस्थितियों और कठिन मामलों को कुशलता से सम्भाल सकती हैं."
यूएन एजेंसी के हस्तक्षेप और साझेदारी से, ज़िला अस्पताल में काफ़ी सुधार हुआ है. जहाँ पहले यह अस्पताल, स्वच्छता, सफ़ाई और संक्रमण निवारक मामलों में 30 प्रतशित था, अब यह आकलन बढ़कर 94 प्रतिशत हो गया है.

अनेक चुनौतियों व ज़िम्मेदारियों के बावजूद, अग्रिम मोर्चे पर डटे ये स्वास्थ्यकर्मी, ज़रूरी सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्ध हैं.
हर दिन वे उन परिस्थितियों में सुधार करने के लिये प्रयासरत हैं, जिससे महिलाओं व लड़कियों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा हासिल हो सकें और वे अपने शरीर और स्वास्थ्य के बारे में निर्णय लेने में सक्षम हो सकें.