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बच्चों का भविष्य बचाने के लिये तात्कालिक कार्रवाई की आवश्यकता

कोविड-19 के कारण ज़्यादा से ज़्यादा बच्चों का स्कूल छोड़कर, बाल श्रम की ओर धकेले जाने का ख़तरा बढ़ गया है.
UN Photo/Martine Perret
कोविड-19 के कारण ज़्यादा से ज़्यादा बच्चों का स्कूल छोड़कर, बाल श्रम की ओर धकेले जाने का ख़तरा बढ़ गया है.

बच्चों का भविष्य बचाने के लिये तात्कालिक कार्रवाई की आवश्यकता

एसडीजी

भारत में अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की निदेशक, डागमार वॉल्टर ने ज़ोर देकर कहा है कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के दूरगामी प्रभावों से बच्चों की रक्षा करने और बाल मज़दूरी के क्षेत्र में हुई प्रगति को व्यर्थ होने से बचाने के लिये तत्काल कार्रवाई की ज़रूरत है.  

यूएन श्रम एजेंसी की वरिष्ठ अधिकारी ने 12 जून को, 'बाल श्रम के ख़िलाफ़ विश्व दिवस' से पहले, भारत के 'द हिन्दू' अख़बार में प्रकाशित अपने लेख में यह बात कही है.

विश्व भर में, 15 करोड़ से अधिक बच्चे बाल श्रम के लिये मजबूर हैं, जिनमें सात करोड़ से ज़्यादा बच्चे जोखिमपूर्ण कार्यों कर रहे हैं.

भारत में 2011 की जनगणना दर्शाती है कि 5-14 वर्ष आयु वर्ग में एक करोड़ से अधिक बच्चे मज़दूरी कर रहे हैं.

डागमार वॉल्टर के मुताबिक बाल श्रम पर कोविड-19 महामारी के वास्तविक प्रभावों को अभी आँका जाना बाक़ी है, मगर यह स्पष्ट है कि बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं और उनके माता-पिता के पास कामकाज नहीं है.

उन्होंने कोविड-19 से उपजी चुनौतियों का उल्लेख करते कहा कि महामारी से होने वाले आर्थिक संकुचन और तालाबन्दी ने एशिया के सभी देशों को प्रभावित किया है, जिससे उद्यमों और श्रमिकों के लिये आय में कमी आई है.

बड़ी संख्या में लौटे प्रवासी कामगारों ने सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को और बढ़ा दिया है.

यूएन एजेंसी निदेशक ने लिखा है कि भारत में महामारी से पहले ही आर्थिक वृद्धि की रफ़्तार धीमी हो रही थी और बेरोज़गारी बढ़ रही थी.

इसके बाद तालाबन्दी ने स्थिति को और ख़राब कर दिया है, जिससे बाल श्रम को ख़त्म करने की दिशा में हुई प्रगति पर जोखिम पैदा हो गया है.

भारत में अन्तररष्ट्रीय श्रम संगठन की निदेशक, डागमार वॉल्टर
ILO India
भारत में अन्तररष्ट्रीय श्रम संगठन की निदेशक, डागमार वॉल्टर

“बढ़ती आर्थिक असुरक्षा, सामाजिक संरक्षा की कमी और कम घरेलू आय के साथ, ग़रीब परिवारों के बच्चों को पारिवारिक आय में योगदान करने के लिये जोखिम भरे कार्यों में धकेला जा रहा है.”

उन्होंने चिन्ता जताई कि स्कूलों के बन्द होने और दूरस्थ शिक्षा की चुनौतियों के कारण, अगर सकारात्मक और तत्काल कार्रवाई नहीं की गई, तो इन बच्चों की स्कूल वापसी की बहुत कम गुंजाइश रह जाएगी.

शिक्षा जारी रखने के लिये बड़ी संख्या में स्कूल और शैक्षणिक संस्थान, ऑनलाइन प्लैटफ़ॉर्म की ओर बढ़ रहे हैं, इसलिये डिजिटल खाई को पाटना भी एक चुनौती है.

भारत सरकार के आँकड़े दर्शाते हैं कि वर्ष 2017-18 में महज़ 24 फ़ीसदी घरों के पास इण्टरनेट की सुविधा थी. ग्रामीण परिवारों में यह अनुपात 15 प्रतिशत और शहरी परिवारों के लिये 42 प्रतिशत था.

उन्होंने कहा कि मौजूदा चुनौतियों के बावजूद सभी हितधारकों के संकल्प, नीति और उपायों की मदद से हालात को सुधारा जा सकता है.

इस क्रम में उन्होंने, सरकारों, नियोक्ताओं, ट्रेड यूनियनों, समुदाय आधारित संगठनों और बाल श्रमिकों के परिवारों को शामिल करते हुए रणनीतिक साझेदारी और सहयोग के माध्यम से बेहतर पुनर्निर्माण पर बल दिया है.

इस वर्ष, बाल श्रम के ख़िलाफ़ विश्व दिवस के अवसर पर  बाल श्रम के विषय में नए वैश्विक अनुमानों को पेश किया जाएगा.

उन्होंने बताया कि बच्चों को काम के अस्वीकार्य रूपों से बचाने की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ, महामारी के असर को कम करने के लिये भी प्रयास किये जाएँगे.

डागमार वॉल्टर ने कहा कि वर्ष 2025, तक बाल श्रम को उसके सभी रूपों में समाप्त करने की दिशा में एक मज़बूत गठबंधन बनाना होगा, जैसा कि टिकाऊ विकास एजेण्डा के आठवें लक्ष्य (8.7) पर देशों के बीच सहमति भी है.

संयुक्त राष्ट्र ने 2021 को बाल श्रम के उन्मूलन के लिये अन्तरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है.

यूएन श्रम एजेंसी की निदेशक ने इस पृष्ठभूमि में सभी हितधारकों से, बाल श्रम के ख़िलाफ़ समन्वित कार्रवाई का संकल्प लेने का आहवान किया है.