भारत: कोविड-19 के दौरान स्वास्थ्य रक्षा के लिये सक्रिय युवा छात्राएँ
कोविड-19 महामारी की जानलेवा लहर से जूझ रहे भारत में एक दिन में संक्रमण के लाखों मामले सामने आ रहे हैं और बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही है. इन हालात में अग्रिम मोर्चे पर डटे स्वास्थ्य व अन्य सहायताकर्मी लोगों की ज़िन्दगियों की रक्षा करने में जुटे हैं. पिछले एक वर्ष में, कठिन हालात में किशोर स्कूली छात्राओं ने भी इस वायरस और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से अपने समुदायों की रक्षा करने में अपनी ज़िम्मेदारी निभाई है.
ओडिशा के कंधमाल ज़िले की 15 वर्षीय मालती इन्हीं युवा पैराकारों में हैं. मालती एक प्रशिक्षित साथी शिक्षक (Peer educator) हैं.
वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी से बचाव के ऐहतियाती उपाय के तौर पर देशव्यापी तालाबन्दी लागू होने और स्कूल बन्द हो जाने के कारण मालती को भी अपने गाँव लौटना पड़ा.
उन्होंने गाँव जाने के बाद महसूस किया कि महामारी के विषय में मिथक और भ्रामक जानकारी व्यापक स्तर पर फैली हुई हैं.
मालती ने बताया, “अपने गाँव लौटने पर, मुझे जल्द ही अहसास हुआ कि यहाँ के लोग कोविड-19 और सम्बन्धित सुरक्षा प्रोटोकॉल की गम्भीरता से अनजान थे.”
“People would ignore me, but I never let myself feel demotivated.”Young girl advocates in #Odisha🇮🇳 are stepping up to protect their communities from #COVID19, promote health & human rights.Their inspiring story of resilience, courage & determination: https://t.co/rLjVtUokV0 pic.twitter.com/6Zykf9sUtK
UNFPAIndia
“लोगों को बेहद कम जानकारी थी कि वायरस किस तरह फैलता है, इसके लक्षण क्या हैं, और ख़ुद को संक्रमण से बचाने के लिये क्या महत्वपूर्ण सावधानियाँ बरतने की ज़रूरत है.”
“गाँव के आस-पास फैल रही ग़लत सूचनाओं के कारण अफ़वाहों को भी बल मिला, जिससे लोगों के दिलों में घबराहट और चिन्ता घर कर गई.”
मालती ने अपने गाँववासियों को शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली.
"यह हम सभी के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय है, मगर, यदि हम सरकारी दिशानिर्देशों के अनुसार कोविड-19 उचित व्यवहार का पालन करें और ग़लत सूचनाओं और फ़र्ज़ी ख़बरों से खुद को बचाएँ, तो हम इससे उबर सकते हैं."
समुदाय की रक्षा
कक्षा 10 की छात्रा मालती ने वर्ष 2019 में यूएन जनसंख्या कोष (UNFPA) और अज़ीम प्रेमजी परोपकारी पहल-समर्थित एक कार्यक्रम के तहत साथी शिक्षक (Peer educator) के रूप में प्रशिक्षण हासिल किया.
तीन वर्षों तक चले इस कार्यक्रम में लक्षित निर्बल समुदायों और ओडिशा के स्कूलों में पढ़ रहे व हाशिएकरण का शिकार अन्य वंचित किशोरों को युवा नेता व साथी परामर्शदाता बनने की ट्रेनिंग प्रदान की गई.
इस कार्यक्रम का लक्ष्या किशोरों को स्वास्थ्य, पोषण और मानवाधिकारों के बारे में अहम सूचनाओं के साथ सशक्त बनाना है.
जब महामारी फैली, तो मालती ने स्वास्थ्य अधिकारियों से मिली सामग्री का अध्ययन किया और गाँव में सहायक दाइयों, नर्सों व अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर घर-घर जाकर अभियान चलाया.
उन्होंने लोगों को इस संक्रामक बीमारी और उसके लक्षणों के बारे में जानकारी देने और भ्रामक सूचनाओं से निपटने के प्रयास किए.
इसके साथ ही, हाथ की स्वच्छता बरतने, मास्क का उपयोग करने और सामाजिक दूरी का ख़याल रखने जैसे कोविड-उपयुक्त व्यवहार की अहमियत के प्रति भी लोगों को शिक्षित किया.
“इसमें कई मुश्किलें आईं...लोग मुझे नज़रअन्दाज़ कर देते थे, लेकिन मैंने अपना हौसला कम नहीं होने दिया.”
मालती ने बताया कि वो अपने शिक्षक और एक ऐसे कर्मचारी के लगातार सम्पर्क में थी, जिन्हें छात्र स्वास्थ्य व कल्याण में प्रशिक्षण प्राप्त है. वे उन्हें और अधिक मेहनत करने के लिये प्रोत्साहित करते थे.
मालती के मुताबिक, धीरे-धीरे गाँव के लोग उनकी बातों को सुनने लगे और उनके प्रयासों को मान्यता मिली.
महामारी का फैलाव हाल के हफ़्तों में और तेज़ हुआ है, जिससे मालती के प्रयास, और उनके द्वारा साझा किये गए सबक़ और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं.
मालती ने इस अवसर का उपयोग बाल-विवाह की हानिकारक प्रथा के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये भी किया.
महामारी के कारण उपजी आर्थिक कठिनाई से बाल-विवाह के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई थी. उन्होंने गाँव में कोविड-19 और बाल विवाह के मामलों पर नज़र रखने के लिये एक समूह भी बनाया.
मालती जैसे अन्य सशक्त व शिक्षित सामुदायिक पैरोकारों के प्रयासों के फलस्वरूप समुदायों में कोविड-19 के फैलाव की रोकथाम के उपायों के प्रति जागरूकता फैलाने में मदद मिली है.
माहवारी स्वच्छता
ओडिशा के क्योंझर ज़िले में छात्रा, मोनालिशा ने अपने प्रशिक्षण का उपयोग माहवारी और उससे जुड़े मिथकों के प्रति जागरूकता का प्रसार करने में किया.
मोनालिशा ने बताया कि जब वो पहले मासिक चक्र की उम्र में पहुँची तो बेहद डरी हुई थीं.
“भ्रामक जानकारी और अस्वस्थ्य तौर-तरीक़ें आम बात थी. मेरे गाँव में, मेरी माँ और सभी दोस्त उस अवधि में, एक ही कपड़े का बार-बार इस्तेमाल करते, जिससे संक्रमण हो जाता था.”
मोनालिशा ने यह छात्राओं से सीधे बात करना शुरू करते हुए यह सुनिश्चित किया कि उनके पास सटीक, कथित कलंक के बग़ैर माहवारी के प्रति सही जानकारी हो. महामारी के दौरान तालाबन्दी में भी, उन्होंने अपने समुदाय में इन प्रयासों को जारी रखा है.
साथी शिक्षक के इस समाधान को राज्य के अन्य इलाक़ों में भी बढ़ावा दिया गया है. इस कार्यक्रम के तहत 664 युवाओं को प्रशिक्षित किया गया है.
वहीं, राज्य सरकार की ओर से ढाई हज़ार से ज़्यादा युवजन को, यूएन एजेंसी के तकनीकी सहयोग के ज़रिये प्रशिक्षण मुहैया कराया गया है.
ये, पहले यहाँ प्रकाशित हो चुके लेख का सम्पादित रूप है.