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नेपाल: नई नियुक्तियों से मानवाधिकार आयोग की स्वतन्त्रता पर असर, यूएन विशेषज्ञ

नेपाल में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का प्रवेश द्वार.
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नेपाल में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का प्रवेश द्वार.

नेपाल: नई नियुक्तियों से मानवाधिकार आयोग की स्वतन्त्रता पर असर, यूएन विशेषज्ञ

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने नेपाल के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में हाल ही में नए सदस्यों की नियुक्ति किये जाने पर गम्भीर चिन्ता जताई है. यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने मंगलवार को एक वक्तव्य जारी करके कहा कि इन नियुक्तियों से आयोग की स्वतन्त्रता, सत्यनिष्ठा और वैधता कमज़ोर हुई है.

यूएन विशेषज्ञों के मुताबिक़ नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान ‘पेरिस सिद्धान्तों’ के तहत तय मानकों का पालन नहीं किया गया.

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इन मानदण्डों के तहत, ऐसी नियुक्तियों की प्रक्रिया को खुले, पारदर्शी एवँ व्यापक विचार-विमर्श के बाद भागीदारी सुनिश्चित करते हुए पूर्ण किया जाता है.

"हमें गहरी चिन्ता है कि नियुक्ति प्रक्रिया, अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है और इससे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्वतन्त्रता, सत्यनिष्ठा और वैधता कमज़ोर होती है."

विशेष रैपोर्टेयर ने ज़ोर देकर कहा है कि इससे, कथित मानवाधिकार हनन के मामलों में नेपाल की जनता द्वारा उपयुक्त उपाय की तलाश करने की क्षमता पर असर पड़ता है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने मौजूदा नियुक्तियों से नागरिक समाज के समाज पर, डर पैदा करने वाला असर होने की आशंका जताई है.

इसके मद्देनज़र, सरकार से इन नियुक्तियों को वापिस लेने और एक नई प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का आग्रह किया गया है, जिसमें खुलेपन, पारदर्शिता, व्यापक चर्चा व भागीदारी का ध्यान रखा जाए.

बताया गया है कि नागरिक समाज के फलने-फूलने, उसके संरक्षण और शान्तिपूर्ण ढंग से एकत्र होने के अधिकार के लिये एक स्वतन्त्र और निष्पक्ष मानवाधिकार संस्था अति-महत्वपूर्ण है.

विशेषज्ञों ने कहा कि यह अन्तरिम न्याय प्रक्रिया के लिये भी अहम है, जिससे नेपाल में सशस्त्र संघर्ष के दौरान हुए अपराधों के लिये जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती है.

इन अपराधों में न्याय से इतर हत्याएँ, जबरन गुमशुदगी और यातना दिये जाने सहित अन्य मामले हैं.

विशेषज्ञों ने नेपाल सरकार को अपनी चिन्ताओं से अवगत करा दिया है.

आन्तरिक प्रक्रियाओं के पालन में नाकामी

यूएन विशेषज्ञों ने कहा है कि हाल ही में की गई नियुक्तियों में आन्तरिक क़ानूनों का भी पालन नहीं किया गया, जिनका उल्लेख नेपाल के संविधान मे किया गया है.

मंगलवार को जारी वक्तव्य के अनुसार, नेपाल के राष्ट्रपति ने 15 दिसम्बर को एक विधेयक के ज़रिये, संवैधानिक परिषद में संशोधन किया, जोकि संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्तियों की सिफ़ारिश करती है.

इनमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी शामिल है. इसके बाद, सदस्यों की न्यूनतम संख्या में उपस्थिति के बिना ही बैठक आयोजित करना और साधारण बहुमत से निर्णय लेने का रास्ता स्पष्ट हो गया.

नेपाल के क़ानून के तहत, संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्तियों की एक संसदीय सुनवाई पक्रिया के तहत पुष्टि की जाती है.

मगर, राष्ट्रपति द्वारा प्रतिनिधि सभा भंग कर दिये जाने की वजह से यह सुनवाई नहीं हो पाई.

राष्ट्रपति ने 3 फ़रवरी को पाँच नए सदस्यों की मानवाधिकार आयोग में नियुक्ति की, जबकि विधेयक की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर, देश के सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई अभी होनी है.

फ़रवरी के अन्त में, न्यायालय ने प्रतिनिधि सभा को भंग करने के, राष्ट्रपति के फ़ैसले को पलट दिया था.

इसके बावजूद, विधेयक के विरुद्ध दायर याचिकाओं और संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्तियों पर सुनवाई अभी होनी बाक़ी है.

संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने, नेपाल के मुख्य न्यायाधीश से, याचिकाओं की समीक्षा पर होने वाली सुनवाई से पीछे हटने का आग्रह किया है, ताकि किसी पूर्वाग्रह की धारणा से बचा जा सके.

मुख्य न्यायाधीश, इन नियुक्तियों की सिफ़ारिश करने वाली संवैधानिक परिषद में शामिल रहे हैं.

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतन्त्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतन्त्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिये कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.