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वनों के लिये 'संभालें या बिगड़ने दें' लम्हा

जर्मनी में, जंगलों से झाँकती धूप की किरणें
Unsplash/Sebastian Unrau
जर्मनी में, जंगलों से झाँकती धूप की किरणें

वनों के लिये 'संभालें या बिगड़ने दें' लम्हा

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने कहा है कि प्राकृतिक दुनिया के साथ हमारे सम्बन्ध बहाल करने के प्रयासों में, वनों की केन्द्रीय भूमिका है. ये बात, उन्होंने सोमवार को, वनों पर संयुक्त राष्ट्र के फ़ोरम में कही.

संयुक्त राष्ट्र की उप प्रमुख आमिना जे मोहम्मद ने कहा कि प्रकृति के साथ अपने सम्बन्धों के मामले में, इनसान अति महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं और ये ध्यान रहे कि वनभूमि जैव-विविधता संरक्षण के साथ-साथ ताज़ा पानी के संरक्षक की भूमिका भी निभाती है.

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उन्होंने कहा, “वनों में संसाधन निवेश करना, जलवायु सहनक्षमता के साथ-साथ,  टिकाऊ और मज़बूत व लचीली पुनर्बहाली के लिये अति महत्वपूर्ण है.”

साथ ही उन्होंने ज़ोर देकर ये भी कहा कि ये बहुत ज़रूरी है कि दुनिया भर में सभी हाथ, वनों को सहारा देने के लिये, अपनी-अपनी भूमिका अदा करें. 

यूएन उप प्रमुख ने कहा कि वनों के लिये पर्याप्त वित्त पोषण किया जाना ज़रूरी है जिसमें उन देशों के लिये क़र्ज़ बोझ से राहत दिया जाना शामिल है जिनसे वन भूमि संरक्षण और टिकाऊ कृषि के लिये ज़्यादा काम करने की अपेक्षा है.

बहुमुखी वैश्विक संकट

संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष वोल्कान बोज़किर ने इस फ़ोरम को सम्बोधन में कहा कि दुनिया इस समय बहुमुखी वैश्विक संकटों का सामना कर रही है जोकि स्वास्थ्य और हमारे पर्यावरण की टिकाऊशीलता से, गहराई से जुड़े हुए हैं. ऐसे में ये चर्चा किया जाना, विशेष रूप में प्रासंगिक व सामयिक है.

वोल्कान बोज़किर ने कहा, “स्पष्ट रूप, हमारा विश्व हमसे कह रहा है कि प्रकृति के साथ हमारे सम्बन्धों में कोई समस्या है. कोविड-19 जैसी महामारी ने, मानव द्वारा अतिक्रमण गतिविधियों और प्रजातियों के लुप्त होने की रफ़्तार, वैश्विक तापमान वृद्धि से जुड़े जोखिम, दिखा दिये हैं.”

उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से, एक समाज के रूप में, हम लक्षणों पर ध्यान केन्द्रित करने के आदी हैं, और उन लक्षणों के लिये ज़िम्मेदार परिस्थितियों पर नज़र नहीं गड़ाते, और हमने, पृथ्वी के सन्देश को बहुत लम्बे समय से नज़रअन्दाज़ किया है.”

“आशा है कि हम इस मनोवृत्ति को बदलने में कुछ मदद कर सकते हैं.”

यूएन महासभा अध्यक्ष ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि 20 मई को एक उच्च स्तरीय सम्वाद आयोजित किया जाएगा जिसमें महामारी से उबरने के उपायों और मरुस्थलीकरण, भूमि क्षय और सूखा जैसी समस्याओं का मुक़ाबला करने पर भी ध्यान दिया जाएगा.

भविष्य की ओर

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के महानिदेशक क्यू डोंग्यू ने एक ऐसे नए अध्ययन का सन्दर्भ दिया जिसमें वनों की सफल पुनर्बहाली की बदौलत, जैव-विविधता को भी बहाल किया जा सकता है और प्रजातियों को लुप्त होने से भी बचाया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि अच्छी तरह से संरक्षित पर्यावास और स्वस्थ कृषि, आगे बढ़ने के लिये महत्वपूर्ण रास्ते हैं. उन्होंने वन संरक्षण में आदिवासी जन की महत्ता को रेखांकित करते हुए उनकी भूमिका को अति महत्वपूर्ण बताया.

महामिदेश क्यू डोंग्यू ने कहा, “वनों में संसाधन निवेश किया जाना, दरअसल हमारे भविष्य में निवेश है. हमें वनों की पुनर्बहाली और उनके संरक्षण के लिये अपने वैश्विक प्रयास मज़बूत करने होंगे, साथ ही वनों पर आधारित समुदायों की आजीविकाओं को सहारा देना होगा.”

“तभी हम, एक ज़्यादा न्यायसंगत, समान और टिकाऊ विश्व का साझा सपना पूरा होने की ओर बढ़ सकते हैं.”

दुनिया भर में लगभग एक अरब 60 करोड़ लोग, भोजन, आवास, ऊर्जा, औषधि और आमदनी के लिये, प्रत्यक्ष रूप में, वनों पर निर्भर हैं.
©FAO/Xiaofen Yuan
दुनिया भर में लगभग एक अरब 60 करोड़ लोग, भोजन, आवास, ऊर्जा, औषधि और आमदनी के लिये, प्रत्यक्ष रूप में, वनों पर निर्भर हैं.

वैश्विक वन लक्ष्य रिपोर्ट

इस फ़ोरम में, वर्ष 2021 की वैश्विक वन लक्ष्य रिपोर्ट भी जारी की गई जिसमें ये मूल्याँकन किया गया है कि संयुक्त राष्ट्र की 2030 वन योजना को लागू करने में, दुनिया कहाँ खड़ी है.

वैसे तो कुछ प्रमुख क्षेत्रों में प्रगति हासिल की गई है, जिनमें वृक्षारोपण और वन पुनर्हबहाली के ज़रिये, वैश्विक वन क्षेत्र को बढ़ाना शामिल है, मगर निष्कर्ष बताते हैं कि हमारे प्राकृतिक वातावरण की ख़राब होती स्थिति के कारण, इन कामयाबियों और अन्य लक्ष्यों के लिये जोखिम उत्पन्न हो रहा है.

यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने इस रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा है, “महामारी का फैलाव शुरू होने के समय में, बहुत से देश अपने वनों की पुनर्बहाली और जैव-विविधता के लिये महत्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों का दायरा बढ़ाने के लिये कड़ी मेहनत कर रहे थे.”

“इनमें से कुछ सफलताओं के लिये, प्राथमिक उष्णकटिबन्धीय वनों के बढ़ते मरुस्थलीकरण के चिन्ताजनक रुझान के कारण, जोखिम पैदा हो गया है.”