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एशिया-प्रशान्त देशों से, इनसानों व पृथ्वी को प्राथमिकता देने का आग्रह

वनुआतू के ऐपी द्वीप में कुछ बच्चे खेलते हुए. पश्चिमी प्रशान्त स्थित इस छोटे से देश में लगभग 3 लाख लोग बसते हैं.
UNICEF/Jason Chute
वनुआतू के ऐपी द्वीप में कुछ बच्चे खेलते हुए. पश्चिमी प्रशान्त स्थित इस छोटे से देश में लगभग 3 लाख लोग बसते हैं.

एशिया-प्रशान्त देशों से, इनसानों व पृथ्वी को प्राथमिकता देने का आग्रह

आर्थिक विकास

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने एशिया व प्रशान्त क्षेत्र के देशों का आहवान किया है कि वो कोविड-19 महामारी से उबरने के अपने प्रयास व रणनीति, पुराने पड़ चुके और अरक्षणीय आर्थिक ढाँचों पर आधारित ना करें. उन्होंने साथ ही ये पुकार भी लगाई  है कि विश्व की सबसे ज़्यादा आबादी वाले इस क्षेत्र में, पर्यावरण का संरक्षण हो और सभी को अवसर मिलें.

यूएन महासचिव ने एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के लिये आर्थिक व सामाजिक आयोग (ESCAP) के वार्षिक सत्र को अपने सन्देश में ध्यान दिलाते हुए कहा कि टिकाऊ विकास 2030 एजेण्डा, महामारी से मज़बूत तरीक़े से उबरने और किसी को भी पीछे नहीं छोड़ देने के प्रयासों के लिये ब्लूप्रिण्ट मुहैया कराता है.

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उन्होंने कहा, “शुरुआत होती है – सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) व सामाजिक संरक्षण, और अच्छी परिस्थितियों व आमदनी वाले कामकाज के साथ.”

यूएन प्रमुख ने जलवायु संकट का मुक़ाबला करने के लिये मज़बूत प्रयास करने व प्रकृति के साथ सुलह स्थापित करने की भी पुकार लगाई है.

इन प्रयासों में नवीकरणीय ऊर्जा, टिकाऊ खाद्य प्रणालियों और प्रकृति-आधारित समाधानों में संसाधन निवेश किया जाना भी शामिल है.

उन्होंने कहा, “भविष्य की ओर बढ़ते हुए, महामारी से उबरने की योजनाएँ, पुराने पड़ चुके, अरक्षणीय (Unsustainable) आर्थिक ढाँचों पर आधारित नहीं हो सकतीं. अर्थव्यवस्था में फिर से जान फूँकने के लिये संसाधन निवेश, असल में समावेशी व टिकाऊ विकास पर केन्द्रित होना चाहिये जिसमें इनसानों और पृथ्वी ग्रह को प्राथमिकता पर रखा जाए.”

सत्र में चर्चा मुद्दे

एशिया व प्रशान्त क्षेत्र के आर्थिक व सामाजिक आयोग का 77 वाँ सत्र, 26 से 29 अप्रैल तक चलेगा जो वर्चुअल माध्यमों से आयोजित किया गया है.

इस सत्र का मुख्य विषय यही है कि क्षेत्रीय सहयोग - महामारी से उबरने और बेहतर तरीक़े से पुनर्निर्माण करने में, किस तरह देशों की मदद कर सकता है.

क्षेत्र के कम विकसित, भूमिबद्ध विकासशील देशों और लघु द्वीपों पर, महामारी का प्रभाव भी, सत्र के चर्चा एजेण्डा में शामिल है.

इसमें वैक्सीन के समान वितरण और वित्तीय सहायता वाले कार्यक्रम, क़र्ज़ राहत और क़र्ज़ स्थगन सेवाओं पर चर्चा भी शामिल है.

आयोग के इस सत्र में, क्षेत्र में, महामारी व उसके सामाजिक और आर्थिक प्रभावों के बीच, टिकाऊ विकास के क्रियान्वयन की स्थिति पर चर्चा भी होगी.

ध्यान रहे कि क्षेत्र के अनेक देशों में, कोरोनावायरस के संक्रमण की गम्भीर लहर लगातार जारी है.

एशिया-प्रशान्त के आर्थिक व सामाजिक आयोग की स्थापना 1947 में हुई थी और यह, संयुक्त राष्ट्र के पाँच क्षेत्रीय आयोगों में सबसे बड़ा है -  भौगोलिक और जनसंख्या, दोनों ही दायरों में.

एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक व सामाजिक आयोग के 77वें सत्र का उदघाटन सत्र.
ESCAP Photo
एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक व सामाजिक आयोग के 77वें सत्र का उदघाटन सत्र.

इस आयोग के सदस्य देशों में – पूर्व में स्थित किरिबाती से लेकर पश्चिम में तुर्की तक, और उत्तर में रूस से लेकर दक्षिण में, न्यूज़ीलैण्ड तक फैले हुए हैं. इस आयोग के सदस्यों में, फ्रांस, नैदरलैण्ड, ब्रिटेन और अमेरिका भी शामिल हैं.

पुनर्बहाली के प्रमुख क्षेत्र

आयोग की कार्यकारी सचिव अरमीडा सैलसिया ऐलिसजाहबाना ने, आर्थिक पुनर्बहाली, 2030 के एजेण्डा के अनुरूप सुनिश्चित किये जाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए, देशों से, अपने स्वास्थ्य जोखिम प्रबन्धन को, सामाजिक-आर्थिक रणनीतियों में शामिल करने का आहवान किया. 

उन्होंने साथ ही, समाज के तमाम वर्गों, विशेष रूप से, अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत तबक़ों, विकलांगता वाले व्यक्तियों और वृद्धजन को, शामिल करने वाली सामाजिक संरक्षण नीतियों को तेज़ गति से आगे बढ़ाने का भी आहवान किया.

कार्यकारी सचिव ने, एक ऐसे टिकाऊ वित्त पोषण की ज़रूरत को भी रेखांकित किया जिसमें लचीली व मज़बूत अर्थव्यवस्थाओं में संसाधन निवेश करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाए.

उन्होंने, झटकों व व्यवधानों का सामना करने की सहनशीलता बढ़ाने के लिये, क्षेत्रीय व्यापार और परिवहन सम्पर्क को मज़बूत करने पर भी ज़ोर दिया.

इनके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि देशों को ये भी सुनिश्चित करना होगा कि कोविड-19 से पुनर्बहाली मज़बूत, स्वच्छ और हरित हो.