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निर्बल समुदायों के विस्थापन के लिये जलवायु परिवर्तन भी एक वजह

कैमरून के पूर्वोत्तर इलाक़े मिनावाओ में, शरणार्थी जन, एक ऐसे इलाक़े में वृक्षारोपड़ करते हुए जो मानवीय गतिविधि और जलवायु परिवर्तन के कारण वन रहित हो गया
© UNHCR/Xavier Bourgois
कैमरून के पूर्वोत्तर इलाक़े मिनावाओ में, शरणार्थी जन, एक ऐसे इलाक़े में वृक्षारोपड़ करते हुए जो मानवीय गतिविधि और जलवायु परिवर्तन के कारण वन रहित हो गया

निर्बल समुदायों के विस्थापन के लिये जलवायु परिवर्तन भी एक वजह

प्रवासी और शरणार्थी

पिछले एक दशक में, हिंसक संघर्ष और टकराव की वजह से उपजे हालात की तुलना में, मौसम सम्बन्धी संकटों के कारण दोगुनी संख्या में लोगों को विस्थापन का शिकार होना पड़ा है. 

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी मामलों की एजेंसी (UNHCR) ने गुरूवार, 22 अप्रैल, को ‘अन्तरराष्ट्रीय माँ पृथ्वी दिवस’ के अवसर पर इस सिलसिले में नए आँकड़े जारी किये हैं. 

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नए आँकड़े दर्शाते हैं कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी त्रासदियाँ किस तरह ग़रीबी, भुखमरी और प्राकृतिक संसाधनों की सुलभता को प्रभावित करती हैं, जिससे हिंसा व अस्थिरता के हालात पैदा होते हैं.  

यूएन एजेंसी ने कहा, “अफ़ग़ानिस्तान से मध्य अमेरिका तक, सूखा, बाढ़ और चरम मौसम की अन्य घटनाएँ, उन लोगों को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं, जिनके पास उबरने और अनुकूलन के लिये औज़ार व साधन नहीं हैं.”

यूएन एजेंसी ने, मौजूदा हालात के मद्देनज़र, देशों से साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने का आहवान किया है ताकि करोड़ों लोगों के लिये इसका दंश कम किया जा सके. 

वर्ष 2010 से अब तक, मौसम सम्बन्धी आपात घटनाओं के कारण, औसतन, हर वर्ष दो करोड़ से ज़्यादा लोगों को पलायन के लिये विवश होना पड़ा है. 

शरणार्थी एजेंसी के मुताबिक़ लगभग 90 फ़ीसदी शरणार्थी उन देशों से आते हैं जो सबसे निर्बल हैं और जिनमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने की क्षमता का अभाव है. 

यूएन एजेंसी ने अफ़ग़ानिस्तान का उल्लेख करते हुए बताया कि यह आपदा की दृष्टि से दुनिया के सबसे सम्वेदनशील देशों में है.

देश के 34 में से लगभग सभी प्रान्त, पिछले 30 वर्षों में, कम से कम एक बार, किसी ना किसी आपदा से प्रभावित हुए हैं.

अफ़ग़ानिस्तान दुनिया के सबसे कम शान्तिपूर्ण देशों की सूची भी शामिल है, जिसकी वजह यहाँ लम्बे समय से चला आ रहा हिंसक संघर्ष है जिसमें हज़ारों लोग हताहत हुए हैं और लाखों लोग विस्थापन का शिकार हुए हैं. 

बाढ़ और सूखा

बार-बार आने वाली बाढ़ और सूखे की घटनाएँ, जनसंख्या वृद्धि के साथ हालात को और जटिल बना रही हैं. 

खाद्य असुरक्षा और जल की क़िल्लत बढ़ रही है, और शरणार्थियों व घरेलू विस्थापितों के अपने घर लौटने की सम्भावनाएँ क्षीण हो रही हैं. 

बताया गया है कि एक करोड़ 69 लाख अफ़ग़ान नागरिक, यानि देश की लगभग आधी आबादी के पास वर्ष 2021 की पहली तिमाही में पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं है.

इनमें 55 लाख लोगों को आपात हालात का सामना करना पड़ रहा है.  

वर्ष 2020 के मध्य तक, 26 लाख से ज़्यादा अफ़ग़ान नागरिक, घरेलू तौर पर विस्थापित हुए और क़रीब 27 लाख लोग अन्य, देशों में पंजीकृत शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं, मुख्यत: पाकिस्तान और ईरान में. 

अनेक त्रासदियों व हिंसक संघर्ष से जूझ रहे मोज़ाम्बीक़ को भी इन्हीं परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. 

देश में एक के बाद दूसरे चक्रवाती तूफ़ानों से, भारी बर्बादी हुई है जबकि उत्तरी हिस्से में हिंसा व ख़राब हालात के कारण लाखों लोग विस्थापित हुए हैं.