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इन्सुलिन सुलभता बढ़ाने और डायबिटीज़ मौतों की संख्या घटाने के लिये ग्लोबल कॉम्पैक्ट 

इण्डोनेशिया के जयापुरा में एक स्वास्थ्यकर्मी महिला के रक्त में शुगर की जाँच करते हुए.
UNICEF/Shehzad Noorani
इण्डोनेशिया के जयापुरा में एक स्वास्थ्यकर्मी महिला के रक्त में शुगर की जाँच करते हुए.

इन्सुलिन सुलभता बढ़ाने और डायबिटीज़ मौतों की संख्या घटाने के लिये ग्लोबल कॉम्पैक्ट 

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने डायबिटीज़ (मधुमेह) की विकराल होती चुनौती की पृष्ठभूमि में सस्ती इन्सुलिन की उपलब्धता व पहुँच को बढ़ाने के लिये, अपने प्रयास तेज़ किये हैं. इस जीवनदायी दवा की खोज के 100 वर्ष पूरे होने के मौक़े पर, ‘ग्लोबल डायबिटीज़ कॉम्पैक्ट’ पेश किया गया है जिसका एक अहम उद्देश्य, उन निम्न व मध्य आय वाले देशों में गुणवत्तापूर्ण इन्सुलिन की सुलभता सुनिश्चित करना है जहाँ फ़िलहाल, इसकी माँग को पूरा कर पाना मुश्किल है.    

इस पहल की घोषणा ऐसे समय में की गई है जब डायबिटीज़ के कारण जल्द होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है. इसके मद्देनज़र, देशों से, इस बीमारी से निपटने और ज़रूरतमन्दों के लिये उपचार सुलभ बनाने की अहमियत को रेखांकित किया गया है. 

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डायबिटीज़ पीड़ित लोगों की संख्या पिछले 40 वर्षों में बढ़कर चार गुनी हो गई है. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने बुधवार को कहा कि डायबिटीज़ से मुक़ाबला करने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पहले से कहीं ज़्यादा स्पष्ट है. 

“यह एकमात्र ऐसा बड़ा ग़ैर-संचारी रोग है, जिसमें जल्दी मौत होने का जोखिम, कम होने के बजाय बढ़ रहा है.”

“और कोविड-19 से गम्भीर रूप से संक्रमित व अस्पतालों में भर्ती लोगों में एक बड़ी संख्या उनकी है जो डायबिटीज़ के मरीज़ हैं.”

विश्व भर में, 42 करोड़ से अधिक लोग मधुमेह के साथ जीवन गुज़ार रहे हैं. रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ने की यह ऐसी अवस्था है जिससे हृदय, रक्त धमनियों, आँखों, गुर्दों और स्नायुतन्त्रों को नुक़सान पहुँचता है.

सबसे अधिक मामले, ‘टाइप टू’ डायबिटीज़ के दिखाई देते हैं, जोकि अक्सर शरीर में इन्सुलिन के प्रति प्रतिरोध बढ़ने की वजह से पैदा होता है. 

इन्सुलिन शरीर में रक्त शुगर को नियंत्रित करने वाला हारमोन है. 

इन्सुलिन की बढ़ती माँग 

ग्लोबल कॉम्पैक्ट में अनेक प्राथमिकताओं पर ध्यान केन्द्रित किया गया है.

इनमें सबसे अहम, डायबिटीज़ निदान के औज़ारों और दवाओं तक पहुँच का दायरा बढ़ाने को सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है. इनमें, निम्न और मध्य आय वाले देशों में इन्सुलिन की सुलभता बढ़ाना भी शामिल है. 

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के अनुसार, वयस्कों में लगभग 50 फ़ीसदी आबादी में ‘टाइप टू’ डायबिटीज़ का पता नहीं चल पाता है.  

इसके अतिरिक्त, इस अवस्था में रहने वाले लोगों की आधी संख्या को ज़रूरत के हिसाब से इन्सुलिन नहीं मिल पाता, जिससे उनकी मौत होने, अंग-विच्छेदन और दृष्टिहीनता का शिकार होने जोखिम बढ़ जाता है. 

इन्सुलिन के लिये बाज़ार में तीन कम्पनियों का दबदबा रहा है. मगर दो वर्ष पहले, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दवा की पूर्व-योग्यता के लिये एक पायलट कार्यक्रम शुरू किया है, जिससे हालात बदल सकते हैं. 

प्री-क्वालीफ़िकेशन यानि पूर्व-योग्यता प्रक्रिया के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि इस्तेमाल की जाने वाली दवाएँ, गुणवत्ता, सुरक्षा और कारगरता के वैश्विक मानकों पर खरी हों. 

यूएन एजेंसी ने उम्मीद जताई है कि अन्य विनिर्माताओं द्वारा निर्मित इन्सुलिन का प्री-क्वालीफ़िकेशन होने से गुणवत्तापूर्ण इन्सुलिन की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी होगी. इससे विशेष रूप से उन देशों को लाभ होगा जहाँ फ़िलहाल माँग को पूरा कर पाना मुश्किल है. 

सस्ते दामों पर उपलब्धता

इस बीच, इन्सुलिन, डायबिटीज़ की दवाओं व अन्य निदान औज़ारों के विनिर्माताओं के साथ विचार-विमर्श किया जा रहा है, जिससे सस्ते दामों पर माँग पूरी करना सम्भव होगा.

कॉम्पैक्ट का एक अन्य अहम उद्देश्य वैश्विक स्तर पर क़ीमतें निर्धारित किया जाना है, जिसके ज़रिये क़ीमतों और फ़ायदों का ध्यान रखते हुए, डायबिटीज़ देखभाल के लिये नए लक्ष्य हासिल किये जाएंगे.

प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के दायरे में मधुमेह रोकथाम व उपचार को शामिल किये जाने के लिये जो संकल्प लिये गए हैं, उन्हें साकार करने के लिये सरकारों को प्रोत्साहित किया जाएगा. 

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी में ग़ैर-संचारी रोगों के विभाग में निदेशक डॉक्टर बेन्ते मिक्केलसन ने बताया कि कॉम्पैक्ट के ज़रिये मुख्य पक्षकारों व उन लोगों को संगठित करने का प्रयास किया जा रहा है, जोकि इस अवस्था के साथ जीवन जीते हैं. 

ये प्रयास एक ऐसे साझा एजेण्डा के लिये आगे बढ़ाने हैं जिनसे नए समाधानों की दिशा में आगे बढ़ा जाए.

नए कॉम्पैक्ट को ‘वैश्विक डायबिटीज़ सम्मेलन’ के दौरान पेश किया गया था, जिसका आयोजन यूएन स्वास्थ्य एजेंसी और कैनेडा सरकार ने टोरण्टो विश्वविद्यालय के सहयोग से किया था.