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करोड़ों महिलाएँ अन्य लोगों द्वारा नियंत्रित जीवन जीने को विवश

यूएन जनसंख्या कोष (UNFPA) की वर्ष 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग आधी महिलाएँ अपने शरीरों पर अधिकार से वंचित हैं.
© UNICEF/Richard Humphries
यूएन जनसंख्या कोष (UNFPA) की वर्ष 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग आधी महिलाएँ अपने शरीरों पर अधिकार से वंचित हैं.

करोड़ों महिलाएँ अन्य लोगों द्वारा नियंत्रित जीवन जीने को विवश

महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 57 देशों में, तकरीबन आधी महिलाओं को, अपनी स्वास्थ्य देखभाल, गर्भ निरोधक प्रयोग करने या नहीं करने, या यौन जीवन के बारे में अपनी पसन्द से फ़ैसले करने की शक्ति हासिल नहीं है. 

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की बुधवार को जारी रिपोर्ट का नाम है - 'विश्व जनसंख्या की स्थिति'.

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रिपोर्ट  में कहा गया है कि महिलाओं के लिये अपने शरीर पर अधिकारहीनता की स्थिति कोरोनावायरस महामारी के कारण और भी ज़्यादा बदतर हुई है.

इस स्थिति के कारण, रिकॉर्ड संख्या में महिलाएँ और लड़कियाँ, लैंगिक हिंसा और हानिकारक परम्पराओं व गतिविधियों के जोखिम के दायरे में पहुँच गई हैं, जिनमें कम उम्र में विवाह होना भी शामिल है.

यूएन जनसंख्या कोष की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर नतालिया कनेम का कहना है, “ये वास्तविकता कि आधी से ज़्यादा महिलाएँ इस बारे में अपने ख़ुद के फ़ैसले नहीं ले सकतीं कि उन्हें यौन सम्बन्ध बनाने हैं या नहीं, गर्भ निरोधक इस्तेमाल करने हैं या नहीं और वो ख़ुद स्वास्थ्य देखभाल हासिल कर सकती हैं या नहीं, इन सबसे हम सबको क्रोधित होना चाहिये.”

उन्होंने कहा, “सच्चाई ये है कि लाखों महिलाएँ और लड़कियाँ, ख़ुद अपने ही शरीरों पर अधिकार से वंचित हैं. उनकी ज़िन्दगियों का नियंत्रण किन्हीं और लोगों के हाथों में होता है.”

डॉक्टर नतालिया कनेम ने कहा कि अपने शरीरों पर अधिकार या शक्ति से वंचित किया जाना, महिलाओं व लड़कियों के बुनियादी मानवाधिकारों का हनन है. इस स्थिति से, विषमताएँ और ज़्यादा गहरी होती हैं और लैंगिक भेदभाव के कारण हिंसा को बढ़ावा मिलता है.

“ये दरअसल, आत्मा ही निकाल लेने जैसी स्थिति है, और इसे रोका जाना होगा.”

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि महिलाओं को अपने शरीर पर अधिकार व शक्ति का सम्बन्ध इस स्थिति से भी है कि अपने जीवन के अन्य क्षेत्रों में उन्हें कितना नियंत्रण हासिल है. इसमें स्वास्थ्य और शिक्षा, आय और सुरक्षा के क्षेत्रों में हो रही प्रगति से जुड़ी स्वायत्तता भी शामिल है.

डरावनी जानकारी

रिपोर्ट में ऐसे विभिन्न तरीक़ों का ज़िक्र किया गया है जिनके ज़रिये, ना केवल महिलाओं व लड़कियों को उनकी शारीरिक स्वायत्तता से वंचित किया जाता है, बल्कि पुरुषों और लड़कों को भी ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ता है, विकलांगता के कारण स्थिति और भी ज़्यादा बदतर हो जाती है.

रिपोर्ट में उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि विकलांगता वाली लड़कियों और लड़कों के, यौन हिंसा का शिकार होने की तीन गुना ज़्यादा सम्भावना है, उनमें भी लड़कियों को ज़्यादा जोखिम होता है.

रिपोर्ट ये भी कहती है कि दण्डात्मक क़ानूनी वातावरण, कलंक की मानसिकता, भेदभाव और हिंसा के उच्च स्तरों के कारण, उन पुरुषों को एचआईवी संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है जो पुरुषों के साथ यौन सम्बन्ध बनाते हैं, क्योंकि वो क़ानूनी कार्रवाई या अन्य नकारात्मक परिणतियों के डर से, ये गतिविधियाँ छुपकर करते हैं.

परिणामस्वरूप, उन्हें उचित स्वास्थ्य शिक्षा नहीं मिल पाती है, और ऐसे लोग स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं, जाँच और उपचार का फ़ायदा उठाने में भी झिझकते हैं.

रिपोर्ट कहती है कि लगभग 20 देशों या क्षेत्रों में ऐसे क़ानून हैं जिनके तहत तथाकथित “अपने बलात्कारी से विवाह” की इजाज़त देने वाले क़ानून प्रचलन में हैं, जहाँ ऐसा पुरुष आपराधिक मुक़दमे का सामना करने से बच जाता है जो उस महिला या लड़की से विवाह कर ले, जिसका उसने बलात्कार किया हो. 

43 देशों में ऐसा कोई क़ानून ही नहीं जिसके तहत, विवाहित जीवन में बलात्कार के मुद्दे पर ग़ौर किया जाए. 

रिपोर्ट ये भी रेखांकित करती है कि दुर्व्यवहारों के मामले, किस तरह शारीरिक स्वायत्तता के और भी ज़्यादा हनन का कारण बन सकते हैं.

मसलन, बलात्कार के किसी मामले में मुक़दमा चलाने के लिये, आपराधिक न्याय प्रणाली को, बलात्कार पीड़िता को, तथाकथित कौमार्य परीक्षण कराने की ज़रूरत पड़े जोकि ख़ुद में ही आक्रामक है.

पुरुषों को सहयोगी बनना होगा 

रिपोर्ट में ध्यान दिलाते हुए कहा गया है कि इस भयावह स्थिति का सामना करने के लिये, कोई अलग-थलग परियोजनाएँ और सेवाएँ भर चलाने से कहीं ज़्यादा किये जाने की ज़रूरत है. 

रिपोर्ट में ज़ोर देकर ये भी कहा गया है कि असल व टिकाऊ प्रगति, ख़ासतौर से लैंगिक विषमता और किसी भी तरह के भेदभाव को मिटाने और इनकी मौजूदगी वाले सामाजिक व आर्थिक ढाँचों में बदलाव लाने पर निर्भर करती है.

डॉक्टर नतालिया कनेम ने कहा, “इस अभियान में, पुरुषों को सहयोगी बनना होगा. ज़्यादा से ज़्यादा पुरुषों को, ऐसी गतिविधियों व कृत्यों से बचना होगा जिनसे महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता पर असर पड़ता है, और इस तरह से जीवन जीने के तरीक़े अपनाने होंगे, जो ज़्यादा न्यायसंगत और आनन्दकारी हों, जिससे हम सभी का फ़ायदा हो.”

उन्होंने हर किसी से, भेदभाव को चुनौती दिये जाने का आग्रह किया, चाहे वो, कहीं भी और कभी भी होता नज़र आए.