कोविड-19: दुनिया भर में टीकाकरण के लिये, कोवैक्स के सामने पाँच प्रमुख चुनौतियाँ

संयुक्त राष्ट्र समर्थित कोवैक्स योजना का उद्देश्य, वर्ष 2021 के अन्त तक, दुनिया के निर्धनतम देशों की लगभग एक चौथाई यानि 25 प्रतिशत आबादी तक, कोरोनावायरस की वैक्सीन की लगभग दो अरब खुराकें पहुँचाना है. इस ऐतिहासिक प्रयास में कामयाबी हासिल करने के रास्ते में, कौन सी मुख्य चुनौतियाँ हैं जिन पर पार पाने की ज़रूरत है?
कोविड-19 महामारी का ख़ात्मा करने के लिये, वैक्सीन एक मुख्य औज़ार और पूरे कार्यक्रम का अहम हिस्सा हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस संकट के आरम्भ से ही ये तर्क दिया है कि दुनिया भर में महामारी के तेज़ी से फैलाव को देखते हुए, ना केवल धनी देशों के लोगों को, बल्कि दुनिया भर में सभी जन को वैक्सीन की सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिये, समन्वित प्रयासों की ज़रूरत है.
इसी चिन्ता से जन्म हुआ वैश्विक कोवैक्स सुविधा का, जोकि एक मात्र ऐसी वैश्विक पहल है जो देशों की सरकारों और औषधि निर्माताओं के साथ मिलकर, दुनिया भर में, कोविड-19 की वैक्सीनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये काम कर रही है. इनमें उच्च आय वाले और निम्न आय वाले, सभी देश शामिल हैं.
कोवैक्स के सामने मौजूद चुनौतियों के बारे में जानने के लिये, यहाँ प्रस्तुत हैं पाँच मुख्य बिन्दु, और उनका सामना कैसे किया जा सकता है...
महामारी के शुरुआती समय में ही, यूनीसेफ़ ने लगभग 50 करोड़ सीरिंजों का भंडार, उन देशों से बाहर के भंडारगृहों में तैयार किया जहाँ, इन सीरिंजों का उत्पादन किया जाता है. यूनीसेफ़ की उस दूरदृष्टि के लाभ मिले: देशों ने सीरिंजों के निर्यात पर नियन्त्रण स्थापित किये, इनकी क़ीमतों में उछाल आया, और आपूर्ति सीमित हो गई.
अनेक देशों ने वैक्सीन के निर्यात पर भी नियन्त्रण लगा दिये, जिससे विश्व स्वास्थ्य संगठन को “वैक्सीन राष्ट्रवाद” के ख़िलाफ़ आगाह भी करना पड़ा. इससे विज्ञापन व विपणन को प्रोत्साहन मिलता है और इसका असर क़ीमतें बढ़ने के रूप में होता है, और अन्ततः महामारी और ज़्यादा लम्बे समय तक खिंचती है. इस स्थिति को रोकने के लिये प्रतिबन्धों की ज़रूरत है, ताकि इनसानी व आर्थिक तकलीफ़ें ख़त्म की जा सकें.
वैक्सीन की ख़ुराक लोगों की बाँहों तक पहुँचाने के लिये, एक जटिल वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की ज़रूरत है. वैक्सीन बनाने के लिये आवश्यक तत्वों से लेकर, काँच के उपकरण और प्लास्टिक ढक्कन व नलियों से लेकर सीरिंजों तक. ऐसे हालात में, इनमें से किसी एक उत्पाद या उपकरण के निर्यात पर प्रतिबन्ध या नियन्त्रण लगाने से, वैक्सीन की उपलब्धता में, व्यापक बाधा खड़ी हो सकती है.
चूँकि निर्यात नियन्त्रण के कारण, अनेक तरीक़ों से आपूर्ति सीमित हो सकती है, निर्धन देशों के लिये अपनी आबादी की संरक्षा सुनिश्चित करने के लिये ये विकल्प ज़्यादा बेहतर होगा कि अपने यहाँ ही इस वैक्सीन का उत्पादन करें.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोवैक्स पहल और कोविड-19 वैक्सीन के लिये संचार प्रमुख डियान ऐबड-वेरगैरा का कहना है, “संगठन देशों को, वैक्सीन उत्पादन प्रौद्योगिकी और क्षमता हासिल करने और उसे टिकाऊ बनाने के प्रयासों में मदद करता है.”
“वैक्सीन उत्पादन का विस्तार वैश्विक स्तर पर होने से निर्धन देशों को, धनी देशों के दान पर कम निर्भर रहना पड़ेगा.”
कोवैक्स पहल का हिस्सा बनने वाले देशों के पास, परिवहन विमानों से वैक्सीन की खेप उतारकर, शीतल भंडारगृहों तक पहुँचाने की ज़रूरत वाला ढाँचा तो उपलब्ध है, मगर, उससे अगला चरण ज़्यादा जटिल हो सकता है.
यूनीसेफ़ के वैश्विक कोवैक्स समन्वयक गियान गाँधी का कहना है, “कोवैक्स के तहत वैक्सीन की खेप हासिल करने वाले पहले देश घाना में, ख़ुराकें वितरित करने का अच्छा रिकॉर्ड रहा है, मगर पूर्व फ़्रेंच पश्चिम अफ्रीका महासंघ के देशों में, वैक्सीन ख़ुराकें अलग-अलग करके उन्हें अपने क्षेत्रों में, क़स्बों और गाँवों तक पहुँचाने की व्यवस्था बनाने के लिये संसाधनों का इन्तज़ाम कर पाना, कठिन साबित हुआ है. इसका मतलब है कि अधिकतर निर्धनतम देशों में, ख़ुराकें, केवल बड़े शहरी केन्द्रों तक ही वितरित की जा रही हैं.
गियान गाँधी का कहना है, “हम ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि कोई भी इससे बाहर ना रह जाए, मगर लघु अवधि में, शहरी इलाक़ों में टीकाकरण किये जाने का ये मतलब है कि वैक्सीन कम से कम शहरी इलाक़ों में अग्रिम मोर्चों पर मुस्तैद उन स्वास्थ्य व अन्य कर्मियों तक तो पहुँचाने को प्राथमिकता दी जा रही है जो घनी आबादी के बीच रहने के कारण, ज़्यादा जोखिम का सामना करते हैं.”
वैक्सीन का वितरण तेज़ करने, और शहरी भंडारगृहों से दूरदराज़ के इलाक़ों तक वैक्सीन पहुँचाने का एक रास्ता है – नक़दी.
डियान ऐबड-वेरगैरा का कहना है, “धन की उपलब्धता, लगातार एक चिन्ता है, यहाँ तक कि महामारी से निपटने के प्रयासों में भी. कोवैक्स के 190 सदस्य देशों को वैक्सीन की उपलब्धता जारी रखने के लिये, वर्ष 2021 में, कम से कम तीन अरब 20 करोड़ डॉलर की आवश्यकता होगी. जितनी जल्दी ये रक़म उपलब्ध होगी, उतनी ही तेज़ी से वैक्सीन, लोगों की बाँहों तक पहुँच सकेगी.”
योरोपीय संघ, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे कुछ पक्षों व देशों के योगदान की बदौलत, वैक्सीन के लिये धन की कमी का दायरा कुछ हद तक पूरा किया जा सका है. अलबत्ता, वैक्सीन के वितरण के लिये धन की कमी होना, और भी ज़्यादा समस्यात्मक है.
यूनीसेफ़ का अनुमान है कि फ्रिज, शीतलन, स्वास्थ्यकर्मियों के प्रशिक्षण, वैक्सीन लगाने वालों का ख़र्च, व शीतल परिवहन ट्रकों वग़ैरा पर होने वाली लागत का ख़र्च उठाने के लिये, 92 निर्धनतम देशों की ज़रूरतें पूरी करने के लिये, अतिरिक्त दो अरब डॉलर की रक़म की ज़रूरत होगी.
इसीलिये यूनीसेफ़ ने तत्काल ज़रूरतें पूरी करने के लिये, दानदाताओं से 51 करोड़ डॉलर की रक़म तुरन्त मुहैया कराने की मानवीय अपील जारी की है.
कोवैक्स कार्यक्रम को ऐसे कुछ देशों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है जो औषधि निर्माता कम्पनियों से, वैक्सीन की आपूर्ति के लिये सीधे सौदे कर रहे हैं. इससे कोविड-19 की वैक्सीन की उपलब्धता पर अतिरिक्त दबाव बन रहा है.
दूसरी तरफ़, कुछ धनी देशों में, वैक्सीन की, ज़रूरत से ज़्यादा आपूर्ति होने की भी स्थिति हो सकती है.
गियान गाँधी ने कहा कि वैक्सीन ख़ुराकों की अत्यधिक आपूर्ति वाले देशों से ये अनुरोध किया जा रहा है कि वो ये ख़ुराकें अन्य देशों के साथ साझा करें और कोवैक्स व यूनीसेफ़ के साथ, यथाशीघ्र तालमेल करें. क्योंकि इन ख़ुराकों की कहाँ ज़रूरत होगी, यह निर्धारित करने और वहाँ पहुँचाने के लिये, कुछ क़ानूनी, प्रशासनिक व ढाँचागत क़वायद करनी पड़ेगी.”
“अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि उच्च आय वाले देशों की तरफ़ से, अपनी ज़रूरत से ज़्यादा वैक्सीन आपूर्ति को, अन्य देशों के साथ साझा करने की कोई ख़ास इच्छा नज़र नहीं आ रही है.”
डियान ऐबड-वेरगैरा का कहना है कि इस समय ‘पहले मैं’ का नज़रिया, उनका पक्ष लेता है जो ज़्यादा क़ीमत अदा कर सकते हैं, और अन्ततः वित्तीय लागत ज़्यादा होगी... मगर ये समझना भी अहम होगा कि औषधि निर्माताओं के साथ सीधे सौदे करने से, कोवैक्स में शामिल देशों को वैक्सीन की आपूर्ति करने से नहीं रोका जा सकता...”
इस दमदार सबूत के बावजूद कि वैक्सीनों व टीकाकरण से ज़िन्दगियाँ बचाई जाती हैं, हर देश में वैक्सीनों की कारगरता के बारे में झिझक देखी जा रही है जोकि अब भी एक बड़ी समस्या है और इसका मुक़ाबला किया जाना बहुत ज़रूरी है.
ये चलन, कुछ हद तक, दरअसल, कोविड-19 के विभिन्न पहलुओं के बारे में फैली हुई भ्रामक जानकारी व अफ़वाहों के कारण बना है. इस तरह का चलन, कोरोनावायरस को एक वैश्विक स्वास्थ्य आपदा घोषित किये जाने से पहले भी मौजूद था.
संयुक्त राष्ट्र ने, मई 2020 में, वैरीफ़ाइड अभियान शुरू किया जिसका मक़सद झूठी, तोड़-मरोड़कर व भ्रामक जानकारी का मुक़ाबला करने के साथ-साथ,महामारी के बारे में भरोसेमन्द, सटीक व सही जानकारी उपलब्ध कराना है.
डियान ऐबड-वेरगैरा कहती हैं, “महामारी के पूरे समय के दौरान, हर तरफ़ भ्रामक व झूठी जानकारी फैलते देखी गई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन, इसका मुक़ाबला करने, वैक्सीनों में भरोसा पैदा करने, और विभिन्न समुदायों के साथ तालमेल बिठाने के लिये, अथक प्रयास कर रहा है.”