म्याँमार: सुरक्षा की ख़ातिर भागने वालों की रक्षा करनी होगी

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) और यूएन शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने म्याँमार के पड़ोसी देशों से आग्रह किया है कि वो देश में हिंसा और दमन से बचकर सुरक्षा की ख़ातिर भागने वाले लोगों को शरण और सुरक्षा मुहैया कराएँ. म्याँमार में राजनैतिक संकट गुरूवार, 1 अप्रैल को, तीसरे महीने में प्रवेश कर गया है.
देश भर में राजनैतिक अशान्ति फैलने के अतिरिक्त, कुछ सीमावर्ती इलाक़ों में भी, देश की सेना और नस्लीय सशस्त्र गुटों के बीच ताज़ा लड़ाई होने की ख़बरें हैं.
The people being forced to flee from #Myanmar should be given sanctuary in neighboring countries.They must not be returned to a place where their lives or freedom may be at risk. This principle of non-refoulement is a cornerstone of international law + is binding on all states. pic.twitter.com/YGF4ThGrOG
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इनमें, कायीन प्रान्त में हवाई हमले किया जाना भी शामिल है जिसके कारण वहाँ के लोगों को देश के ही भीतर अन्य स्थानों के लिये व सीमा पार भी भागना पड़ रहा है.
यूएन शरणार्थी एजेंसी में संरक्षा मामलों की सहायक उच्चायुक्त गिलियन ट्रिग्स ने एक प्रेस वक्तव्य में कहा है कि ये बहुत अहम है कि जिन लोगों को भी सीमा पार करनी पड़ रही है और वो किसी अन्य देशों में शरण लेना चाहते हैं, तो उन्हें यह सुरक्षा मिलनी चाहिये.
उन्होंने कहा, “जो बच्चे, महिलाएँ और पुरुष अपना जीवन बचाने की ख़ातिर भाग रहे हैं, उन्हें सुरक्षा और पनाह मिलनी चाहिये. उन्हें ऐसे स्थानों को वापिस नहीं लौटाया जाना चाहिये जहाँ उनके जीवन या आज़ादी के लिये ख़तरा हो सकता है.”
“किसी व्यक्ति को, ख़तरनाक स्थान पर वापिस जाने के लिये मजबूर नहीं करने का सिद्धान्त, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है और सभी देशों पर लागू होता है.”
म्याँमार में, 1 फ़रवरी को सेना द्वारा तख़्तापलट करके सत्ता आपने हाथों में लेने के बाद से, देश भर में हालात तेज़ी से बिगड़े हैं.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के अनुसार, सुरक्षा बलों की दमनात्मक कार्रवाई में, 510 से ज़्यादा शान्तिपूर्वक प्रदर्शनकारी मारे गए हैं और 2,600 से ज़्यादा को बन्दी बनाकर रखा गया है.
इनमें से बहुत से बन्धकों के ठिकानों की कोई जानकारी नहीं है और बहुत से लोगों को जबरन ग़ायब किया गया है.
यूएन मानवाधिकार एजेंसी के दक्षिण-पूर्व एशिया के लिये क्षेत्रीय कार्यालाय द्वारा गुरूवार को जारी एक प्रेस वक्तव्य में कहा गया है, “देश भर में, रात्रि छापे, बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ़्तार किया जाना और हत्याएँ, दैनिक घटनाक्रम बन गया है.”
“No one should face the risk of being returned to #Myanmar when their lives, safety or fundamental human rights are threatened,” @OHCHRAsia Rep. Cynthia Veliko said in a statement urging States to protect those fleeing violence, persecution. Read more 👉https://t.co/cSaz3JwjDs pic.twitter.com/fjjE3JWhrY
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प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, “सत्ता पर क़ाबिज़ सैन्य अधिकारियों ने, भारी संख्या में प्रदर्शनाकारियों को मारने के लिये, भारी हथियारों का लगातार और बढ़ाते हुए प्रयोग किया है, जिनमें रॉकेट, हथगोले, भारी मशीन गन और निशानचियों का इस्तेमाल शामिल हैं.”
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ ने इस सप्ताह के आरम्भ में कहा था कि सेना की दमनात्मक कार्रवाई में 35 बच्चों की भी मौत हुई है और अनेक अन्य गम्भीर अवस्था में घायल हुए हैं.
यूएन बाल एजेंसी के अनुसार, लाखों बच्चे, प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हिंसात्मक कार्रवाई के भयावह दृश्यों के गवाह बने हैं, जिससे उनके मानसिक व भावनात्कम स्वास्थ्य के लिये जोखिम पैदा हो गया है.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने कहा है कि उसे कुछ ऐसी जानकारी मिली है कि जो लोग सुरक्षा की ख़ातिर क्षेत्र में ही अन्य स्थानों व देशों के लिये भाग गए थे, उन्हें फिर से म्याँमार वापिस भेज दिया गया है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की – दक्षिण-पूर्व एशिया के लिये क्षेत्रीय प्रतिनिधि सिन्थिया वेलिको ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि “किसी भी व्यक्ति को म्याँमार वापिस भेज दिये जाने के ख़तरे का सामना करने को मजबूर नहीं किया जाना चाहिये, जबकि उनकी ज़िन्दगी, सुरक्षा और बुनियादी मानवाधिकारों के लिये ख़तरा हो.”
उन्होंने कहा, “अन्तरराष्ट्रीय शरणार्थी व मानवाधिकार क़ानून के बाध्यकारी प्रावधानों के प्रकाश में, हम तमाम देशों से ये सुनिश्चित करने का आहवान करते हैं कि पनाह माँगने वाले सभी लोगों को सुरक्षा मुहैया कराई जाए, जिसका उन्हें अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अन्तर्गत अधिकार है.”
“अब समय है कि हम सभी, म्याँमार के लोगों के साथ एकजुटता के साथ खड़े हों.”