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इस महत्वपूर्ण वर्ष में, लोगों व पृथ्वी की ख़ातिर, ज़्यादा जलवायु कार्रवाई की ज़रूरत

सेनेगल के एक गाँव में, सब्ज़ियों के एक बाग़ीचे में काम करती कुछ महिलाएँ.
© FAO/Eduardo Soteras
सेनेगल के एक गाँव में, सब्ज़ियों के एक बाग़ीचे में काम करती कुछ महिलाएँ.

इस महत्वपूर्ण वर्ष में, लोगों व पृथ्वी की ख़ातिर, ज़्यादा जलवायु कार्रवाई की ज़रूरत

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने कहा है कि विश्व को, जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार धीमी करने और बेहद कमज़ोर हालात वाले लोगों को, गम्भीर और जल्दी-जल्दी होने वाले जलवायु प्रभावों से बचाने के लिये, बहुत असाधारण कार्रवाई करने की ज़रूरत है. यूएन उप प्रमुख ने नवम्बर 2021 में ग्लासगो में होने वाले जलवायु सम्मेलन - कॉप26 की तैयारियों के तहत बुधवार को आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में ये बात कही.

ग़ौरतलब है कि विश्व भर के देशों ने, पेरिस जलवायु समझौते के ज़रिये पृथ्वी की तापमान वृद्धि को, 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर सहमति व्यक्त की है.

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यूएन उप प्रमुख आमिना जे मोहम्मद ने, इस सन्दर्भ में, जलवायु और विकास विषय पर, मन्त्री स्तरीय बैठक में कहा है, “हमें इस अति महत्वपूर्ण वर्ष में, ये लक्ष्य हासिल करने के संकल्प लेने में कोई क़सर बाक़ी नहीं छोड़नी होगी.”

नैतिक, आर्थिक व सामाजिक अनिवार्यता 

उन्होंने कम विकसित देशों और लघु द्वीपीय विकासशील देशों के लिये जलवायु वित्त पोषण की तस्वीर पेश करते हुए बताया कि इन देशों को क्रमशः 14 और दो प्रतिशत वित्तपोषण मिलता है;

हर तीन में से एक व्यक्ति, पूर्व चेतावनी प्रणालियों के लाभों से वंचित है; और जलवायु आपदा से विस्थापित होने वालों में 80 प्रतिशत संख्या महिलाओं व लड़कियों की है, फिर भी, उन्हें अक्सर निर्णय लेने वाली भूमिकाओं से अलग रखा जाता है.

आमिना जे मोहम्मद ने कहा कि ख़ुद को बदलने और ज़्यादा सहनशील बनाने की ज़रूरत, “एक नैतिक, आर्थिक और सामाजिक अनिवार्यता है”. 

“हम इन नाकामियों पर पार पाने के लिये, 2030 या 2050 तक प्रतीक्षा नहीं कर सकते.”

कार्रवाई वर्ष

यूएन उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने कहा कि देशों के लिये, पूरे वर्ष के दौरान, जलवायु आपदाओं से निपटने और यूएन महासचिव द्वारा आहवान किये गए अहम संकल्प व कार्रवाइयाँ सुनिश्चित करने के लिये, संयुक्त राष्ट्र ने कुछ ठोस और हासिल किये जाने योग्य कार्रवाइयाँ चिन्हित की हैं.

पहला क़दम ये कि दानदाताओं को, जलवायु अनुकूलन हासिल करने के लिये, वित्तीय सहायता में, जून तक, कम से कम 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करनी होगी. ये वो समय है जब ब्रिटेन, औद्योगिक देशों का जी7 सम्मेलन आयोजित करेगा. 

जलवायु सहायता की उपलब्धता सुव्यवस्थित, पारदर्शी और सरल होनी चाहिये, विशेष रूप में बेहद कमज़ोर हालात वाले देशों के लिये.

साथ ही, प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिये मौजूदा वित्तीय व्यवस्थाओं को भी बढ़ाना होगा, और सहनशीलता बढ़ाने के फ़ैसलों को, प्रोत्साहित करने के लिये भी नई व्यवस्थाएँ लागू करनी होंगी.

यूएन उपप्रमुख ने कहा कि अगला क़दम ये हो कि विकासशील देशों के पास, जलवायु जोखिम का सामना करने के लिये उपकरण मौजूद हों जोकि उनके तमाम नियोजन, बजट और ख़रीदारी रणनीतियों में शामिल हो सके.

उन्होंने कहा, “जोखिम न्यूनीकरण, स्थानान्तरण और प्रबन्धन के लिये, जोखिम के बारे में सटीक जानकारी होना बहुत अहम है.”

एक अन्य क़दम के तहत, कमज़ोर हालात वाले और जलवायु व्यवधान के अग्रिम मोर्चों वाले देशों, नगरों और समुदायों में, स्थानीय और क्षेत्रीय नेतृत्व वाले अनुकूलन व सहनशीलता बढ़ाने की पहलों को समर्थन दिया जाना चाहिये. 

आमिना जे मोहम्मद ने कहा, “हमें ऐसे प्रयासों को समर्थन देना होगा जिनमें आदिवासियों, महिलाओं और युवाओं जैसे स्थानीय कर्ताओं की आवाज़ों को, ऐसे निर्णयों में कहीं ज़्यादा वज़न मिले, जो उन्हें सबसे ज़्यादा प्रभावित करते हैं.”