दास व्यापार के अन्त के बावजूद, 'श्वेत वर्चस्ववादी विचार अब भी जीवित'
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने क्षोभ जताया है कि पार-अटलाण्टिक दास व्यापार का अन्त, दो शताब्दी पहले हो जाने के बावजूद, उसे बल प्रदान करने वाली श्वेत वर्चस्ववाद की धारणा अब भी जीवित है. गुरुवार, 25 मार्च, को दासता एवँ पार-अटलाण्टिक दास व्यापार के पीड़ितों के स्मरण में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर यूएन प्रमुख ने सर्वजन के लिये शान्ति व गरिमामय जीवन सुनिश्चित करने की पुकार लगाई है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने यूएन महासभा में एक स्मरण कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा, “हमें इस नस्लवादी झूठ की विरासत का अन्त करना होगा.”
गुरुवार को आयोजित इस कार्यक्रम के ज़रिये अफ़्रीकी मूल के उन लाखों लोगों को याद किया गया, जिन्हें दासता और पार-अटलाण्टिक दास व्यापार की क्रूर प्रणाली में पीड़ा उठानी पड़ी.
On Int'l Day of Remembrance of the Victims of Slavery and the Transatlantic Slave Trade, let’s not allow their appalling journey to have been for nothing.Read more about some of the last survivors in the @unescocourier: https://t.co/WLqPiBx7zn #RememberSlavery #ShareCulture pic.twitter.com/hHDMk0KJbg
UNESCO
यूएन प्रमुख ने दासता की क्रूरताओं को सहन करने वाले लोगों की सहनक्षमता को ध्यान दिलाते हुए कहा कि दास व्यापार, शोषण की एक ऐसी वैश्विक प्रणाली थी, जोकि 400 वर्ष तक मौजूद रही.
उन्होंने बताया कि दासता के दुखदायी और लगातार मौजूद दुष्प्रभावों को दूर किये जाने की ज़रूरत है, जिसके लिये नए सिरे से संकल्प लिया जाना होगा, और सभी के लिये शान्ति व गरिमा के साथ रहने के अवसर सुनिश्चित करने होंगे.
महासचिव गुटेरेश के अनुसार दासता-पीड़ितों के असीम योगदानों को पहचानने की आवश्यकता है, जिन्होंने संस्कृति, शिक्षा और अर्थव्यवस्थाओं को समृद्ध बनाया.
“इतिहास के प्रति सजगता और हमारी मौजूदा दुनिया पर इसके असर को पहचान कर, हम पार-अटलाण्टिक दास व्यापार के पीड़ितों की स्मृति का सम्मान करते हैं.”
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हर किसी को नस्लवाद, अन्याय व विषमता से निपटने और समावेशी समुदायों व अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण की आवश्यकता है.
यूएन महासभा के प्रमुख वोल्कान बोज़किर ने दासता-पीड़ितों की पीड़ाओं को बयाँ करते हुए कहा कि उनसे आज़ादी, गरिमा और पहचान को छीन लिया गया.
“पार-अटलाण्टिक दास व्यापार के डेढ़ करोड़ पीड़ितों के वंशजों को ना सिर्फ़ अपने पूर्वजों के दुख व पीड़ा को झेलना है, बल्कि एक ऐसी दुनिया में रास्ता बनाना है, जो उनके द्वारा तो बनाया गया, लेकिन उनके लिये नहीं.”
महासभा अध्यक्ष ने उन लोगों की मिलीभगत का भी उल्लेख किया, जिन्होंने इस प्रणाली का फ़ायदा तो उठाया लेकिन दमन के शिकारों के समर्थन में खड़े नहीं हुए.
दासता के आधुनिक रूप
वर्ष 2016 में चार करोड़ से ज़्यादा लोग दासता के आधुनिक रूपों का शिकार बताए गए हैं, इनमें 71 फ़ीसदी महिलाएँ व लड़कियाँ हैं.
“यह स्तब्धकारी है कि आज, दास बनाए गए हर चार में से एक पीड़ित बच्चे हैं.”
व्यापक पैमाने पर रोज़गार ख़त्म होने, निर्धनता बढ़ने, प्रवासन के नियमित मार्ग बन्द होने, और श्रम मानकों की परख कमज़ोर पड़ने की वजह से आधुनिक दासता का अन्त करने के प्रयासों के लिये ख़तरा है.
कोविड-19 के कारण चुनौतीपूर्ण हालात में, बड़ी संख्या में लोगों को उन रोज़गारों की ओर धकेला जा सकता है, जहाँ उन्हें आसानी से शोषण का शिकार बनाया जा सकता है.
महासभा प्रमुख ने सतर्कता बरतने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है और कहा है कि अन्यायों से मुँह फेरने के बजाय, हर किसी को अपना दायित्व निभाना होगा.