अफ़ग़ानिस्तान: हिंसा पर विराम, समावेशी शान्ति प्रक्रिया की दरकार

अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि डेबराह लियोन्स ने कहा है कि अफ़ग़ान जनता की पीड़ा, विस्थापन और मौतों के सिलसिले पर अब विराम लगाया जाना होगा. उन्होंने मंगलवार को सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों को देश में मौजूदा हालात से अवगत कराते हुए कहा कि यह समय परिस्थितियों की समीक्षा करने और शान्ति मार्ग पर आगे बढ़ने के लिये ज़रूरी प्रयासों को समर्थन दिये जाने का है.
सितम्बर 2020 में अफ़ग़ान सरकार और तालिबान प्रतिनिधियों के बीच, क़तर की राजधानी दोहा में, औपचारिक शान्ति वार्ता की शुरुआत हुई थी.
अफ़ग़ानिस्तान में यूएन मिशन की प्रमुख और विशेष प्रतिनिधि डेबराह लियोन्स ने वर्चुअल रूप से सुरक्षा परिषद को जानकारी देते हुए बताया कि दोहा में दोनों पक्षों का जुटना और महत्वपूर्ण मुद्दों पर ठोस प्रगति के बारे में सुनना उत्साहजनक है.
“If the peace process is to be sustainable, the parties must look not to Afghanistan’s past, but to its future,” Special Representative Deborah Lyons said in a @UN Security Council briefing. “Any peace settlement must take into account the views and the concerns of all Afghans.” https://t.co/diDdQO4urJ
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लेकिन उन्होंने आगाह किया कि इन वार्ताओं को अफ़ग़ान जनता के वास्तविक हितों की दिशा में आगे बढ़ाने के लिये और ज़्यादा प्रयास किये जाने होंगे.
यूएन मिशन प्रमुख के मुताबिक पड़ोसी देशों से लेकर, क्षेत्रीय पक्षों और अन्तरराष्ट्रीय साझीदारों तक, हर किसी का यह दायित्व है कि उनकी कार्रवाई अफ़ग़ान जनता के सर्वोत्तम हित में हो.
दशकों से जारी संघर्ष को हर पक्ष के लिये पीड़ा, विभिन्न पक्षों के बीच भरोसे की कमी और राज्यसत्ता की परिकल्पना पर गहरे मतभेदों की वजह क़रार दिया गया है.
उन्होंने कहा, इसके बावजूद सभी पक्षों के संयम और संकल्प के साथ शान्ति सम्भव है, लेकिन इसे साकार करने के लिये हिंसा पर विराम देना होगा.
विशेष प्रतिनिधि लियोन्स ने क्षोभ जताया कि हाल ही में हुई बातचीत का नागरिक जीवन पर सकारात्मक असर नहीं हुआ है. लक्षित ढँग से क्रूर हमले अब भी हो रहे हैं.
"मुझे यह बताते हुए बेहद दुख हो रहा है कि 2021 के पहले दो महीनों में, हमने हताहत होने वाले आम लोगों की संख्या में वृद्धि होने के रूझान को देखा है."
उन्होंने कहा कि हर मृतक अफ़ग़ान नागरिक के बाद, बहुत से ऐसे लोग हैं, जो अपने पेशों को छोड़ते हैं और महसूस करते हैं कि देश भी छोड़ना होगा.
विशेष प्रतिनिधि ने कहा कि शान्ति से जुड़े सभी विषयों और देश के भविष्य पर विचार-विमर्श के लिये महिलाओं को शामिल किया जाना होगा.
डेबराह लियोन्स ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि यह 20 वर्ष पहले का अफ़ग़ानिस्तान नहीं है, और देश की आधी आबादी का जन्म 2001 में ‘बॉन समझौते’ के बाद हुआ.
ये पीढ़ी एक ऐसे माहौल में पली-बढ़ी है जहाँ शिक्षा हासिल करने की आकाँक्षा है, महिलाओं के पास आर्थिक व राजनैतिक शक्ति है, और नागरिक समाज के पास फलने-फूलने की जगह है.
"वे अपनी आवाज़ों को वार्ताओं में सुने जाने और एक शान्ति समझौते के बाद अफ़ग़ान समाज में सक्रिय व ठोस भूमिका निभाने के जन्मजात अधिकार के हक़दार हैं."
यूएन मिशन प्रमुख ने सचेत किया कि देश में मानवीय संकट गहरा रहा है – सूखे का दायरा बढ़ने और मदद में कटौती के कारण खाद्य असुरक्षा अभूतपूर्व स्तर पर है.
मानवीय राहतकर्मियों को ग़ैरक़ानूनी और ग़लत तरीक़ से निशाना बनाया जा रहा है, जिसके अफ़ग़ान ज़िन्दगियों और आजीविकाओं के लिये गम्भीर परिणाम हो सकते हैं.
इस सम्बन्ध में उन्होंने हिंसा में कमी लाए जाने और अतिरिक्त धनराशि उपलब्ध कराए जाने पर ज़ोर दिया है ताकि महत्वपूर्ण कार्यों को जारी रखा जा सके.
विशेष प्रतिनिधि ने बताया कि कोविड-19 महामारी के मोर्चे पर प्रगति दर्ज की गई है, और भारत द्वारा वैक्सीन मुहैया कराए जाने से यह आंशिक रूप से सम्भव हो पाया है.
उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय सैन्य बलों की वापसी का ज़िक्र करते हुए कहा कि आने वाले महीने देश की दशा व दिशा के लिये अहम साबित हो सकते हैं.
उन्होंने भरोसा दिलाया कि यूएन मिशन अपने सभी साझीदार संगठनों के साथ मिलकर, बहुप्रतीक्षित शान्ति को साकार करने के लिये सुसंगत ढंग से प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिये तैयार है.